2122 2122 2122 212
दर्द दिल के आशियाँ में इस क़दर पाले गये
आँख से लाली गई ना पांव से छाले गये
रोटियों से भूख की इतनी अदावत बढ़ गई
पेट में सूखे निवाले ठूंस के डाले गये
इस क़दर उलझे हुये हैं आलम-ए-तन्हाई में
मकड़ियां यादों की चल दी भाव के जाले गये
मुफ़लिसी की आँधियाँ थीं याद के थे खंडहर
नीव भी कमजोर थी सो टूट सब आले गये
ख़्वाब की आँखों से 'ब्रज' घटती नहीं हैं दूरियां
बात दीगर है सभी पलकों तले पाले गये…
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 30, 2018 at 4:00pm — 9 Comments
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गम-ए-दिल उठाऊँ,अज़ीमत नहीं है
मगर बच निकलने की सूरत नहीं है
सुनो बख़्श दो मुझको वादों वफ़ा से
यहाँ अब किसी की जरुरत नहीं है
परेशां रहा हूँ मैं अहल-ए-सितम से
तुम्हारी भी क़ुर्बत की नीयत नहीं है
ओ महताब तू है तो ग़ज़लें हैं रौशन
वगरना सुख़नवर की अज़्मत नहीं है
सरेआम 'ब्रज' की ग़ज़ल गुनगुनाना
ये है और क्या गर मुहब्बत नहीं है
अज़ीमत-इरादा
अहल-ए-सितम-तानाशाह…
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 8, 2018 at 1:30pm — 20 Comments
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