२१२२ १२१२ २२
हुस्न वाले सलाम करते हैं
क़त्ल यूं ही तमाम करते हैं
वो मसीहा चमन को लूट कहे
काम ये लोग आम करते हैं
आग दिल में लगाते गुल दिन में
रात तन्हाई नाम करते हैं
काम मेरा हुनर जो कर न सका
मैकदे के ये जाम करते हैं
जाम छूते मेरे हंगामा क्यूँ
शेख तो सुब्हो-शाम करते हैं
कैसे रिश्तों में वो तपिश मिलती
रिश्ते जब तय पयाम करते हैं
उनको बुलबुल…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on May 28, 2015 at 5:06pm — 19 Comments
2122 2122 212
चाँदनी बदली को इतना भा गयी
पगली बदली चाँद को ही खा गयी
जिसको रोता देख हमने की मदद
वो ही बिपदा बन मेरे सर आ गयी
हक़ की मैंने की यहाँ है बात जब
गोली इक बन्दूक की दहला गयी
जिस घड़ी लव पे हँसी आयी मेरे
वो उसी पल अश्क से नहला गयी
जान से मारा मगर जब बच गया
आ मेरे घावों को वो सहला गयी
Added by Dr Ashutosh Mishra on May 23, 2015 at 1:43pm — 12 Comments
१२१२ ११२२ ११२२ २२
तमाम मोती हैं सागर में मगर मुझको क्या
घिरा जो तम में मेरा घर तो सहर मुझको क्या
हमें वो हीन कहें दींन कहें या मुफलिस
बशर तमाम जुदा सब कि नजर मुझको क्या
बहार आयी चमन में है ये तो तुम देखो
खिजाँ नसीब है; मैं हूँ वो शजर, मुझको क्या
जो नंगे पाँव ही चलना है मुकद्दर मेरा
बिछे हों गुल या हो खारों की डगर मुझको क्या
मेरा नसीब तो फुटपाथ जमाने से रहे
नसीब उन को महल हैं…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on May 14, 2015 at 3:33pm — 10 Comments
१२१ २२ १२१ २२ यूं कतरा कतरा शराब पीकर हैं जिन्दा अब तक जनाब पीकर सवाल मुश्किल थे जिन्दगी के मगर दिए सब जवाब पीकर ये मय लगी कडवी सच के जैसी न कह सका मैं ख़राब पीकर पहाड़ सीने पे दर्दो गम के नहीं रहा कोई दवाब पीकर जिन्हें मयस्सर न रोटियाँ… |
Added by Dr Ashutosh Mishra on May 12, 2015 at 1:54pm — 20 Comments
2122 1122 1122 22/112
हुस्न है रब ने तराशा न जुबाँ से कहिये
आप हैं बुझते दिए आप जरा चुप रहिये
आईना देख के बालों की सफेदी देखें
गाल भी लगते हैं अब आपके पंचर पहिये
आप तैराक थे उम्दा ये हकीकत है पर
बाजू कमजोर हवा तेज न उल्टे बहिये
इश्क का भूत नहीं सर से है उतरा माना
पर सही क्या है ये, इस उम्र में खुद ही कहिये ?
लोग जिस मोड़ पे अल्लाह के हो जाते हैं
आप उस मोड़ पे मत दर्दे…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on May 6, 2015 at 11:00am — 10 Comments
२१२२ २१२२ २१२२ २१२२
तुमको पत्थर में नहीं मूरत दिखाई दे रही है
नदियों की कल कल न बांधों में सुनायी दे रही है
कोई भी इल्जाम मैंने तो लगाया था नहीं फिर
वो हंसी गुल जाने क्यूँ इतनी सफाई दे रही है
चीख बस बच्चों कि ही तुमको सुनायी देती है क्यूँ
ये न देखा लाडले को माँ दवाई दे रही है
एक रोटी के लिए तरसा दिया उस माँ को तुमने
जो गृहस्ती ज़िंदगी भर की बनायी दे रही है
काम दुनिया में…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on May 2, 2015 at 10:30pm — 14 Comments
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