Added by Veerendra Jain on May 31, 2011 at 12:27am — No Comments
उखाड़ दो खूंटे ज़मीन से इबादतगाहों के ,
उतारो गुम्बद,
समेटो खम्भे,
उधेड़ दो सारे मंदिर-मस्जिदों के धागे,
मिट्टी-पत्थरों में ख़ुदा नहीं बसता,
सुकूँ…
ContinueAdded by Veerendra Jain on May 23, 2011 at 1:40pm — 10 Comments
ज़िन्दगी के कैनवास पर
जीवन का मनमोहक चित्र
बनाता है वो
रंग भी मुरीद हैं
उसकी इस कला के ,
रंग प्यार के
रंग अपनेपन के
रंग दोस्ती के
रंग करुणा…
ContinueAdded by Veerendra Jain on May 16, 2011 at 11:50am — 4 Comments
Added by Veerendra Jain on May 10, 2011 at 12:21am — 7 Comments
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