========ग्रीष्म=========
सूर्य गरजता गगन से, गिरा गर्म अंगार
धधके धूं धूं कर धरा, सूखी सरिता धार
मचले मनु मन मार, मगर मिलता क्या पानी
ठूंठ ठूंठ हर ठौर, ग्रीष्म की गज़ब कहानी
उड़ा उड़ा के धूल, लपट लू आंधी चलती
बंजर होते खेत, आह आँखें है भरती
रिक्त हुए अब कूप भी, ताल गए सब हार
सूर्य गरजता गगन से, गिरा गर्म अंगार
पेड़ पौध परजीव , पथिक पक्षी पशु प्यासे
मृग मरीचिका देख, मचल पड़ते मनु…
ContinueAdded by SANDEEP KUMAR PATEL on May 31, 2013 at 7:30pm — 19 Comments
शार्दूलविक्रीडित छंद
इस छन्द में चार चरण होते हैं। प्रत्येक चरण में १९ वर्ण होते हैं। १२ वर्णों के बाद तथा चरणान्त में यति होती है। गणों का क्रम इस प्रकार है - गुरु-गुरु-गुरु (मगण ), लघु-लघु-गुरु (सगण ), लघु-गुरु-लघु (जगण), लघु-लघु-गुरु (सगण ) गुरु-गुरु-लघु (तगण ), गुरु-गुरु-लघु (तगण ), गुरु |
माँ विद्या वर दायिनी भगवती, तू बुद्धि का दान दे |
माँ अज्ञान मिटा हरो तिमिर को, दो ज्ञान हे शारदे ||
हे माँ पुस्तक धारिणी जगत में, विज्ञान विस्तार दे…
ContinueAdded by SANDEEP KUMAR PATEL on May 29, 2013 at 7:26pm — 10 Comments
प्रेम के विशाल बटवृक्ष
जिसमें भावनाओं की गहरी
जड़ें और यकीन की
मजबूत साखें
उसमें झूमता है
इठलाता है
सब्ज़ दिल
रिवाजों और रस्मों की
तेज आँधियाँ भी
बेअसर होती हैं इस
विशाल वृक्ष के आगे
जब यकीन के मजबूत तने में
तना होता है…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on May 29, 2013 at 12:00pm — 9 Comments
हो गये सब सर कलम कुछ रोटियों के वास्ते
जैसे उगते हों शज़र बस आरियों के वास्ते
दौरे वहशत पूछिए मत, बढ़ रही कैसी हवस
है परेशां बाप अपनी बच्चियों के वास्ते
कुछ निवाले छीन लेते हैं गरीबों से भले
रोज़ दाना लाएं साहब मछलियों के वास्ते
देश के रक्षक उगाते बेच कर ईमान अब
नोट की फसलें सियासी इल्लियों के वास्ते
दौर है रफ़्तार का, फुर्सत नहीं खुद के लिए
व्यस्त हैं सब कागज़ी कुछ चिन्दियों के…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on May 19, 2013 at 11:18am — 33 Comments
पश्चिमी तूफां से हैं सब दर-ब-दर हम क्या कहें
आदमीयत हो गयी है बेअसर हम क्या कहें
दौर धोखों और फरेबों का चला है इस कदर
रहजनी अब कर रहे हैं राहबर हम क्या कहें
सच बयानी आजकल घाटे का सौदा हो गया
झूठ कहना हो गया है अब हुनर हम क्या कहें
जिंदगी सब जी रहे हैं जिंदगी की खोज में
है यहाँ पर कौन किसका हमसफ़र हम क्या कहें
लूटते शैतान इज़्ज़त चीखती हैं बच्चियां
पत्थरों का शहर है, पत्थर बशर हम क्या…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on May 15, 2013 at 4:12pm — 6 Comments
दरमियाने इश्क जब दुश्वारियां आने लगीं
एक दूजे में नज़र सौ खामियाँ आने लगीं
मैं ये सोचे हूँ कि कोई याद मुझको भी करे
तुम परेशां हो कि फिर से हिचकियाँ आने लगीं
माँ का दामन है या है मेरा बिछौना मखमली
गोद में जाते ही मीठी झपकियाँ आने लगी
हम अकेले रो रहे थे अपने दिल के जख्म पर
और हमारा साथ देने सिसकियाँ आने लगीं
इश्क के झोंके फरेबी खुश्बुओं से क्या मिले
“दीप” फिर नफ़रत भरी कुछ आँधियाँ आने…
ContinueAdded by SANDEEP KUMAR PATEL on May 14, 2013 at 7:00pm — 5 Comments
=====ग़ज़ल======
जो पता हो गये निशाने सब
तीर आने लगे चलाने सब
आँख खोली सुबह हक़ीकत ने
ख्वाब टूटे मेरे सुहाने सब
उनकी मासूम अदा देखें जो
थाम लेते हैं दिल दीवाने सब
कितनी तारीफ मैं करूँ उनकी
कम ही लगते हैं ग़ज़लो गाने सब
उनके दीदार जब हुए जाना
क्यूँ भटकते हैं उनको पाने सब
दौरे रुखसत में दोस्त आए हैं
बस जनाज़ा मेरा उठाने सब
झूठ आया है सामने अब तो
जान पाए…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on May 14, 2013 at 12:07pm — 9 Comments
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