1-
भाई भाई के लिए, हो जाता कुर्बान।
रिश्ता है यह खून का, ईश्वर का वरदान।।
ईश्वर का वरदान, नहीं है जिसका सानी।
पाण्डव हों या राम, सभी की यही कहानी।।
सुलझाकर मतभेद, न मन में रखें खटाई।
बुरे वक्त में काम, सिर्फ आता है भाई।।
2-
भाई का रिश्ता अमर, जैसे लक्ष्मण राम।
मगर विभीषण ने किया, इसे बहुत बदनाम।।
इसे बहुत बदनाम, और भेदी कहलाया।
देकर सारे भेद, नाश कुल का करवाया।।
तुलसी ने रच ग्रंथ, इन्हीं की महिमा गाई।
दशरथ नंदन राम, भरत लक्ष्मण…
Added by Hariom Shrivastava on May 17, 2019 at 9:40am — 4 Comments
धरती से तो आसमान का, हो जाता अनुमान।
किंतु न खुद की छत से दिखता,खुद का कभी मकान।।
जो जमीन पर पैर जमाकर, करे लक्ष्य संधान।
वही बनाता है इस जग में, नये-नये प्रतिमान।।
(मौलिक व अप्रकाशित)
-हरिओम श्रीवास्तव-
Added by Hariom Shrivastava on May 14, 2019 at 2:00pm — 4 Comments
1~
बचपन की यादों में जब मैं, मातृ दिवस पर लौटा।
पाया खुद के ही मुखड़े पर, नकली एक मुखौटा।।
लौट गया मैं गाँव अचानक, माँ से करने बातें।
माँ तो वहाँ न थी लेकिन थीं, यादों की बारातें।।
2~
माता माता मन्दिर जाती, रखे हाथ पर लोटा।
सीढ़ी चढ़ने में साड़ी का, लेती सदा कछोटा।।
माँ के पीछे-पीछे चलकर, हम बच्चे भी जाते।
माता को चुपचाप देखते, माता से बतियाते।।
3~
माँ ने अपनी खातिर माँ से, कभी नहीं कुछ माँगा।
उन मधुरिम यादों को हमने, क्योंकर खूँटी…
Added by Hariom Shrivastava on May 13, 2019 at 11:30am — 2 Comments
1~
भवन और सड़कें पुल-पुलियाँ,मजदूरों की माया।
ईंटे पत्थर ढोते-ढोते, सिकुड़ी इनकी काया।।
श्रम के कौशल से भारत में, ताजमहल बन पाया।
लेकिन मजदूरों के हिस्से, हाथ कटाना आया।।
2~
भूख मिटाने की खातिर ही, श्रम करतीं महिलाएँ।
यदाकदा मजदूरी करते, बाल श्रमिक भी पाएँ।।
शिक्षा से वंचित रह जातीं, इनकीं ही संतानें।
मगर नीति निर्धारक शिक्षा, सौ प्रतिशत ही मानें।।
3~
सबकी खातिर महल अटारीं, जो मजदूर बनाते।
भूमिहीन होकर बेचारे, बेघर ही रह…
Added by Hariom Shrivastava on May 9, 2019 at 9:28pm — 2 Comments
Added by Hariom Shrivastava on May 8, 2019 at 10:30am — 2 Comments
1-
राह बताते और को, स्वयं लाँघते भीत।
जग का यही विधान है,यही आज की रीत।।
यही आज की रीत, सभी को प्रवचन देते।
लेकिन वही प्रसंग, अमल में कभी न लेते।।
खुद करते पाखंड, दूसरों को भरमाते।…
ContinueAdded by Hariom Shrivastava on May 2, 2019 at 11:01pm — 6 Comments
खेती में घाटा हुआ, कृषक हुए मजबूर।
क्षुधा मिटाने के लिए, बने आज मजदूर।।
बने आज मजदूर, हुए खाने के लाले।
चले गाँव को छोड़, घरों में डाले ताले।।
खाली है चौपाल, गाँव में है सन्नाटा।
फाँसी चढ़े किसान, हुआ खेती में घाटा।।
2-
बिकने को बाजार में, खड़ा आज मजदूर।
फिर भी देश महान है, उनको यही गुरूर।।
उनको यही गुरूर,नहीं अब रही गरीबी।
वह खुद हुए धनाड्य,साथ में सभी करीबी।।
नेता शासक वर्ग, सभी लगते घट चिकने।
लेते आँखें मूँद, खड़ा है मानव…
Added by Hariom Shrivastava on May 1, 2019 at 3:11pm — 8 Comments
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