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Rahila's Blog – June 2017 Archive (4)

***असली कीमत***(लघुकथा)राहिला

उस जबरदस्त भूकंप के शांत होने पर शुभा ने खुद को अपनी नन्ही बिटिया के साथ जाने कितने ही नीचे मलवे में दबा पाया।भाग्य से छत का एक बड़ा सा हिस्सा कुछ ऐसे गिरा कि एक गार सी बन गयी।और चंद सांसे उधार मिल गयी ।दोनों सहमी सी ,आपस में सिमटी हुई मदद की उम्मीद में एक दूसरे का सहारा बनी हुई थीं।लेकिन जब काफी समय गुजर गया और किसी का हाथ मदद के लिए आता नहीं दिखाई पड़ा तो घोर निराशा ,डर और सामने बाहें फैलाये मौत को देख कर आंखों से बेबसी बरस पड़ी ।

"मम्मा!भूख लगी है।"नन्ही रिया ने उस का ध्यान… Continue

Added by Rahila on June 12, 2017 at 8:08pm — 7 Comments

अपवाद(लघुकथा)राहिला

पूरे गाँव से कुल पंद्रह लोग ऐसे गरीब थे जो कि उस सरकारी योजना के तहत प्रथम दृष्टिया लाभान्वित होने योग्य थे ।और अब तक सात नियम ,शर्तों में सभी खरे भी उतर गए थे।

"आठवां नियम ,अब जरा ध्यान से सुनना मैं कुछ सामान गिनवा रहा हूँ यदि ये सामान आपके घर में हो तो हाथ उठा दियो ।"सेकेट्री की आवाज पंचायत भवन में गूंजी। उसने जैसे ही कुछ समान गिनवाये ।

"अरे ओ महाराज !जो सामान तो शादी सम्मेेलन से मोड़ा खों मिलो,तो का हम अमीर हो गये वा से।"

"काका!सिरकारी नियम हैं इसमें हम का कर सकें।" इस नियम के… Continue

Added by Rahila on June 9, 2017 at 4:38am — 5 Comments

फ़ितरत(लघुकथा)राहिला

भोर की चाय और छत का वह कोना जहाँ से गुलमोहर के फूलों से लदे पेड़ दूर तक दिखाई देते थे।ये उसकी रोज की बैठक थी।एक हाथ में चाय की ट्रे और दानों की कटोरी, दूसरे हाथ में पानी का जग ।वह अपने साथ अपनी सखियों को कभी नहीं भूलती।तभी एक बड़े रौबीले ,सजीले सुते हुए पंखों वाले चिड़वे ने उसका ध्यान आकर्षित किया ।वह बड़े ही मोहक अंदाज़ में चिड़ियों के आगे पीछे चक्कर लगा रहा था।वहीं चिड़ियां भी इठला रही थीं।उज़मा को ये सब देख कर मज़ा आने लगा।

रासलीला जारी थी कि अचानक चिड़वे ने अपने ऊंचे उठे पंखों को नीचे की ओर गिरा… Continue

Added by Rahila on June 8, 2017 at 12:17am — 2 Comments

***दहलीज के उस पार***(लघुकथा)राहिला

शराबी पति से रुई की तरह धुनी जा रही कुसमा ,गाँव में आयी पुलिस की गाड़ी देख कर दौड़ पड़ी।

"बचा लो साहब !बहुत मारा ये जल्लाद हमको,इसकी ऐसन पूजा करो कि हाँथ उठाना भूल जाए ।"एक तो अचानक आई पुलिस और ऊपर से कुसमा की शिकायत ने गोविंद पर चढ़ी दारू के सुरूर को तनिक हल्का कर दिया। वह जुबान जो अभी तक तूफ़ान की गति से गालियां उगल रही थी,तालू से जा चिपकी।वह थोड़ा सहम सा गया।

"क्यों रे!ज्यादा चर्बी चढ़ गयी लगता?

एक बार की मेहमानी में सारी पिघला देंगे। सुन रहा है ना?और तू!,पुलिस वाला कुसमा की ओर देख… Continue

Added by Rahila on June 1, 2017 at 10:37pm — 14 Comments

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