सांसे जब तक चलती हैं
तब तक चलता है
सुख- दुःख का एहसास
मान -अपमान की पीडाएं
उंच -नीच , जात -पात का भेद
सम्पन्नता -विपन्नता का आंकलन
नहीं मिलने मिलाने के उलाहने
प्रतियोगिता की अंधी दौड़
एक दुसरे को मिटा डालने का षड़यंत्र
सांसे जब तक टूटती हैं
उस क्षण को
ग्लानी से भरता है मन
और छोड़ देता है तन को
बची रह जाती है
उसकी कुछ यादें
अंततः कुछ भी नहीं बचता शेष
और फिर से शुरू हो…
ContinueAdded by MAHIMA SHREE on June 3, 2012 at 9:46pm — 26 Comments
नियति तू कब तक खेल रचाएगी
क्या हम सचमुच हैं
तेरे ही कठपुतले
तू जैसा चाहेगी
वैसा ही पाठ सिखाएगी
नियति तू कब तक खेल रचाएगी
कभी कुछ खोया था
कंही कुछ छुट गया था
कभी छन् से कुछ टूट गया था
भीतर जख्मो के कई गुच्छे हैं
गुच्छो के कई सिरे भी हैं
पर उनके जड़ो का क्या
तेरा ही दिया खाद्य औ पानी था
नियति तू कब तक खेल रचाएगी
कंही कुछ मर रहा है
कंही कुछ पल रहा…
ContinueAdded by MAHIMA SHREE on June 3, 2012 at 9:29pm — 11 Comments
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