हर कदम खुशियाँ मिले, सबकी कवायद जिस लिए है
राम जाने दर्द क्यों, हर दिल में आखिर किसलिए है
भीड़ को तो आपका ही, इक इशारा चाहिए बस
पीछे-पीछे चल रहा जो, हाथ में माचिस लिए है
लोग मुझसे कह रहे थे, आदमी, इंसान है यह
गौर से देखा, तो जाना, दिल-जिगर बेहिस लिए है
मैं लडूंगा जब यहाँ, हर काम उसका भी बनेगा
साथ मेरा दे रहा, यह शख्स अबतक इसलिए है
पीठ पीछे, जो यहाँ, मेरी शिकायत कर रहा था
सामने आया तो देखा,…
ContinueAdded by Dr Lalit Kumar Singh on June 28, 2013 at 9:26am — 7 Comments
अपने मित्रों की सलाह पर कुछ परिवर्तन के साथ पुनः प्रेषित कर रहा हूँ -
जिंदगी इक छलावा के सिवा क्या है
मौत भी बस, मुदावा के सिवा क्या है
रोशनी की तड़प ही तो, अँधेरा है
हर उजाला,भुलावा के सिवा क्या है
शानो-शौकत, तमाशा है, यही जाना
बेवजह ही, दिखावा के सिवा क्या है
होश भी अब, कहीं दिखता नहीं, शायद
बद्सरंजाम लावा के सिवा क्या है
मोह में और ममता में उलझ जाना
यह किसी…
ContinueAdded by Dr Lalit Kumar Singh on June 27, 2013 at 7:00pm — 5 Comments
साधन में, सुधि में, समाधि ,संवाद में, ढूंढता हूँ संजोये नाम
कागज में, पाती में, दीये की बाती में, खोजा है बेसुध अविराम,
गैर की निगाहों में, पराजायी बाँहों में, या दिन हो या कोई शाम
जख्मों में, टीसों में,आहों में, शीशों में, हो मेरा शायद गुमनाम
डॉ. ललित
मौलिक और अप्रकाशित
Added by Dr Lalit Kumar Singh on June 27, 2013 at 5:28am — 8 Comments
खुशबू समेटने से किसका हुआ भला है
जब-जब चिता जली है, चन्दन वहाँ जला है
बैठा रहा तो मुझको खुद से गिला था यारों
जब चल पड़ा तो सबको हर पल बहुत खला है
अब है किसे पता भी, माहौल कब ये बदले
हर शख्स देखने में लगता मुझे भला है
सुन वो कहाँ रहे थे, चर्चा चली जो मेरी
बेचैन हो गए, जब, उनका कहा भला है
जिसको अजीज़ माना, यूँ दूर ही रहे सब
जब काम आ पड़ा तो फिर से खलामला…
ContinueAdded by Dr Lalit Kumar Singh on June 26, 2013 at 7:30pm — 12 Comments
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