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Amod Kumar Srivastava's Blog – June 2013 Archive (8)

रविवार ....

कल रविवार था ... 

फिर उदास, सूनी शाम थी ... 

देख रहा था

हल्की बारिश जो 

सब कुछ भिगो रही थी 

सामने पंछी रोशनदान 

मे छिपने का प्रयास कर रहे थे 

हवाएँ तेज चल रहीं थी 

जो आँधी, रुकने के बाद भी 

आँधी चलने का एहसास करा रही थी 

मैं खड़ा अपने आपको खोज रहा था 

सब कुछ फैला हुआ, तितर बितर था 

अतीत के पन्ने अब भी 

हवा मे तैर रहे थे 

कुछ गीले, कुछ फटे 

कुछ बिखरे पड़े थे 

सब कुछ ठहर गया…

Continue

Added by Amod Kumar Srivastava on June 30, 2013 at 8:00am — 10 Comments

रिश्ता

रिश्ता.... 

ख्वाब नहीं है 

ये मेरा ख्याल नहीं है 

ये तेरा सवाल नहीं है 

रिश्ता ..... 

किसी  के लिए चाँद है …

Continue

Added by Amod Kumar Srivastava on June 28, 2013 at 10:00pm — 17 Comments

तनाव...

तनाव की लिखावटें...

अक्सर अजीब होती हैं ...

काँपती सी और कुछ उलझी हुई..

उनमें कहीं कहीं शब्द छुट जाते हैं ..

कटिंग होती है..

और सहायक क्रिया नहीं होती है

सबसे अजीब होता है ..

सपनों का मरना ..…

Continue

Added by Amod Kumar Srivastava on June 26, 2013 at 4:30pm — 7 Comments

अचानक ..

क्या हुआ, कैसे हुआ ..

या हुआ अचानक ..

देखते देखते बदल गया..

स्वयं का कथानक ..

परछईओं ने भी छोड़ दिए ...

अब तो अपना दामन…

Continue

Added by Amod Kumar Srivastava on June 24, 2013 at 12:30pm — 8 Comments

सूनापन ..

रात में, मैं कतई अकेला होता हूँ..
और निर्जन अकेले में जो सभा जुटती है ..
उसमे जो कहते - कहते थकता नहीं है.
और सुनते - सुनते चीखने नहीं लगता है .
वह केवल में है होता हूँ...
क्यूंकि, मुझे अपने हिस्से करने आते हैं ..
और बांटने के सिवाय हार के और क्या है..
मेरे साथियों के पास ...
मेरे लिए कोई नहीं जी सकता ..
सब अपने लिए .. आकर जाने की तयारी करते हैं.. ..
रात में, मैं कतई अकेला होता हूँ..



"मौलिक व अप्रकाशित"

Added by Amod Kumar Srivastava on June 14, 2013 at 5:13pm — 14 Comments

सोचा न था..

यूँ तो तक़दीर ने देखे हैं मोड़ कई ...

जिंदगी यूँ ही मुड़ेगी कभी सोचा न था..

कई ज़माने से  प्यासा हूँ में यहाँ ..

ओस से प्यास बुझेगी कभी सोचा न था..

यूँ तो फिरते हैं कई लोग यहाँ ..

गुदड़ी में लाल मिलेगा कभी सोचा न था ..

किस्मत ने दी है हर जगह दगा ..

मुकद्दर यूँ ही चमकेगा कभी सोचा न था ..

खून करे हैं सभी के अरमानों के हमने..

खून मेरा भी होगा कभी सोचा न था..…

Continue

Added by Amod Kumar Srivastava on June 13, 2013 at 10:35am — 6 Comments

डायरी

आज बहुत पुरानी डायरी पर ...

उंगलियाँ चलाईं ...

जाने कहाँ से एक आवाज ..

चली आयी ..

आवाज, जानी पहचानी ...

कुछ बरसों पुरानी ..

एक हंसी,

जो दूर से हंसी जा रही थी..…

Continue

Added by Amod Kumar Srivastava on June 12, 2013 at 4:00pm — 6 Comments

कौन...??

दोस्तों को दुश्मन बनाया है किसने ..

शमशान में लाशों को पहुँचाया है किसने..



किसने किसको, किसको है देखा ..

न देखा है हमने न, देखा है तुमने...



हुयी शाम और ये रात है आयी..

किसने ये तारों की महफ़िल सजाई ...



सोचते-सोचते में सो गया हूँ ..

रात की कालिमा में मैं खो गया हूँ..



किसने इस कालिमा को लालिमा बनाया ..

किसने मुझको फिर से जगाया..



किसने किसको, किसको है देखा ..

न देखा है हमने न, देखा है तुमने... …

Continue

Added by Amod Kumar Srivastava on June 10, 2013 at 12:00pm — 8 Comments

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"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
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