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Vijay nikore's Blog – June 2019 Archive (4)

बूँद-बूँद गलती मानवता

हवस की हवायों के चक्रवात नहीं बदले

न हम बदले, न हमारी विवेकहीन सोच

खूँखार जानवर-से मानव की छाती में

ज़हरीली हवस की घनघोर लपटें

घसीट ले जाती हैं सोई मानवता को बार-बार

मृत्यु से मृत्यु, और फिर एक और

मृत्यु की गोद में

सुविचारित सोच की सरिताएँ हट गईं

डूब गया विवेक अविवेक के काले सागर में

राक्षसी-दानव-मानव ने ओढ़ा नकाब

और स्वार्थ-ग्रस्त ज़हरीले हाथों से किए

मासूम असहाय बच्चियों पर…

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Added by vijay nikore on June 24, 2019 at 5:26pm — 6 Comments

थरथरा उठती हैं आस्थाएँ

ठीक है अभी तक अनवरत

तुम मन ही मन मानो निरंतर

देवी के दिव्य-स्वरूप सदृश

अनुदिन मेरी आराधना करते रहे

और अभी भी भोर से निशा तक

देखते हो परिकल्पित रंगों में मुझको

फूलों की खिलखिलाती हँसी में…

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Added by vijay nikore on June 24, 2019 at 3:28pm — 4 Comments

सूर्यास्त के बाद

निर्जन समुद्र तट

रहस्यमय सागर सपाट अपार

उछल-उछलकर मानो कोई भेद खोलती

बार-बार टूट-टूट पड़ती लहरें ...

प्यार के कितने किनारे तोड़ 

तुम भी तो ऐसे ही स्नेह-सागर में

मुझमें छलक-छलक जाना चाहती थी

कोमल सपने से जगकर आता

हाय, प्यार का वह अजीब अनुभव !

डूबते सूरज की आख़री लकीर

विद्रोही-सी, निर्दोष समय को बहकाती

लिए अपनी उदास कहानी

स्वयँ डूब जा रही है ...

आँसू भरी हँसी लिए ओठों पर

जैसे…

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Added by vijay nikore on June 17, 2019 at 8:30pm — 4 Comments

जा रहे हम दूर-दूर

ढलते पहर में लम्बाती परछाईयाँ

स्नेह की धूप-तपी राहों से लौट आती

मिलन के आँसुओं से मुखरित

बेचैन असामान्य स्मृतियाँ

ढलता सूरज भी तब

रुक जाता है पल भर

बींध-बींध जाती है ऐसे में सीने में

तुम्हारी  दुख-भरी भर्राई आवाज़

कहती थी ...

"इस अंतिम उदास

असाध्य संध्या को

तुम स्वीकारो, मेरे प्यार"

पर मुझसे यह हो न सका

अधटूटे ग़मगीन सपने से जगा

मैं पुरानी सूनी पटरी पर…

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Added by vijay nikore on June 1, 2019 at 12:00am — 4 Comments

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