दोहे आज के .....
बिगड़े हुए समाज का, बोलो दोषी कौन ।
संस्कारों के ह्रास पर, आखिर हम क्यों मौन ।।
संस्कारों को आजकल, भला पूछता कौन ।
नंगेपन के प्रश्न पर, आखिर हम क्यों मौन ।।
नर -नारी के मध्य अब, नहीं शरम की रेख ।
खुलेआम अभिसार का, देख तमाशा देख ।।
सरेआम अब हो रहा, काम दृष्टि का खेल ।
युवा वर्ग में आम अब, हुआ अधर का मेल ।।
सभी तमाशा देखते, कौन करे प्रतिरोध ।
कल के बिगड़े रंग का, नहीं किसी को बोध ।।
कर में कर को थाम कर, चले…
ContinueAdded by Sushil Sarna on June 27, 2024 at 9:27pm — No Comments
2122 1212 112/22
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ज़ीस्त का जो सफ़र ठहर जाए
आरज़ू आरज़ू बिख़र जाए
बेक़रारी रहे न कुछ बाक़ी
फ़िक्र का दौर ही गुज़र जाए…
ContinueAdded by Ashok Kumar Raktale on June 25, 2024 at 3:30pm — 2 Comments
बुआ का रिबन
बुआ बांधे रिबन गुलाबी
लगता वही अकल की चाबी
रिबन बुआ ने बांधी काली
करती बालों की रखवाली
रिबन बुआ की जब नारंगी
हाथ में रहती मोटी कंघी
रिबन बुआ जब बांधे नीली
आसमान सी हो चमकीली
हरी लाल हो रिबन बुआ की
ट्रैफिक सिग्नल जैसी झांकी
बुआ रिबन जो बांधे पीली
याद आती है दाल पतीली
रिबन सफेद बुआ ने डाले
उड़े कबूतर दो…
ContinueAdded by मिथिलेश वामनकर on June 24, 2024 at 10:43pm — 2 Comments
1222 1222 122
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जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी में
वो फ़्यूचर खोजता है लॉटरी में
दिखाई ही न दें मुफ़्लिस जहां से
न हो इतनी बुलंदी बंदगी में
दुआ करना ग़रीबों का भला हो …
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on June 22, 2024 at 3:30pm — 5 Comments
दोहे सप्तक . . . . . सच-झूठ
अभिव्यक्ति सच की लगे, जैसे नंगा तार ।
सफल वही जो झूठ का, करता है व्यापार ।।
झूठों के बाजार में, सत्य खड़ा लाचार ।
असली की साँसें घुटें, आडम्बर भरमार ।।
आकर्षक है झूठ का, चकाचौंध संसार ।
निश्चित लेकिन झूठ की, किस्मत में है हार ।।
सच के आँगन में उगी, अविश्वास की घास ।
उठा दिया है झूठ ने, सच पर से विश्वास ।।
झूठ जगाता आस को, सच लगता आभास ।
मरीचिका में झूठ की, सिर्फ प्यास ही प्यास ।।
सत्य पुष्प पर झूठ…
ContinueAdded by Sushil Sarna on June 18, 2024 at 9:13pm — No Comments
दोहा पंचक. . . सागर
उठते हैं जब गर्भ से, सागर के तूफान ।
मिट जाते हैं रेत में, लहरों के अरमान ।।
लहर- लहर में रेत पर, मचलें सौ अरमान ।
मौन तटों पर प्रेम की, रह जाती पहचान ।।
छलकी आँखें देख कर, सूना सागर तीर ।
किसके अश्कों ने किया, खारा सागर नीर ।।
कौन बनाता है भला, सागर तीर मकान ।
अरमानों को लीलता, इसका हर तूफान ।।
देखा पीछे पर कहाँ, जाने गए निशान ।
हर वादे को दे गया, घाव एक तूफान ।।
सुशील सरना /…
ContinueAdded by Sushil Sarna on June 10, 2024 at 1:00pm — 6 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
कानों से देख दुनिया को चुप्पी से बोलना
आँखों को किसने सीखा है दिल से टटोलना ।१।
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कौशल तुम्हें तो आते हैं ढब माप तौल के
जब चाहो खूब नींद को सपनों से तोलना।२।
*
कब जाग जाये कौन सा बदज़ात जानवर
सीमा के हर कपाट को खुलकर न खोलना ।३।
*
करना हमेशा अन्न का जीवन में मान तुम
चाहे पड़े भकोसना या फिर कि चोलना।४।
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चक्का समय का घूम के लौटा है फिर वहीं
जिस में…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 8, 2024 at 5:44am — No Comments
दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
रिश्ते नकली फूल से, देते नहीं सुगंध ।
अर्थ रार में खो गए, आपस के संबंध ।।
रिश्तों के माधुर्य में, आने लगी खटास ।
मिलने की ओझल हुई, संबंधों में प्यास ।।
गैरों से रिश्ते बने, अपनों से हैं दूर ।
खून खून से अब हुआ, मिलने से मजबूर ।।
झूठी हैं अनुभूतियाँ , कृत्रिम हुई मिठास ।
रिश्तों को आते नहीं, अब रिश्ते ही रास ।।
आँगन में खिंचने लगी, नफरत की दीवार ।
रिश्तों की गरिमा…
Added by Sushil Sarna on June 7, 2024 at 8:30pm — 6 Comments
दोहा पंचक. . . . . दम्भ
हर दम्भी के दम्भ का, सूरज होता अस्त ।
रावण जैसे सूरमा, होते देखे पस्त । ।
दम्भी को मिलता नहीं, जीवन में सम्मान ।
दम्भ कुचलता जिंदगी, की असली पहचान ।।
हर दम्भी को दम्भ की, लगे सुहानी नाद ।
इसके मद में चूर वो, बन जाता सैयाद ।।
दम्भ शूल व्यक्तित्व का, इसका नहीं निदान ।
आडम्बर के खोल में, जीता वो इंसान ।।
दम्भी करता स्वयं का, सदा स्वयं अभिषेक ।
मैं- मैं को जीता सदा, अपना हरे…
Added by Sushil Sarna on June 2, 2024 at 6:56pm — No Comments
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