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Rajesh kumari's Blog – July 2012 Archive (7)

माहिया

माहिया  (12,10,12)

(1)

अम्बर पे बदरी है

देखो आ जाओ 

तरसे मन गगरी है 

(२)

सागर में नाव चली 

बिन तेरे कुछ भी 

चीजें लगती न भली  

 (३)

 चुनरी पे  नौ बूटे 

सुन तकते- तकते 

कहीं डोरी  न  टूटे 

 (४)

सूरज सिन्दूरी  ना 

मिल न सके कोई   

इतनी भी दूरी ना 

(५)

मैं माँ घर जाउंगी 

 पैर पकड़ लेना

वापस नहीं आउंगी  

 

Added by rajesh kumari on July 30, 2012 at 10:00pm — 10 Comments

वर्षा के दो रूप

वर्षा के दो रूप (मदन छंद या रूपमाला पर मेरा पहला प्रयास )

(हर पंक्ति में २४ मात्राएँ ,१४ पर यति अंत में गुरु लघु (पताका) २१२२ ,२१२२ ,२१२२ ,२१   संशोधित मदन छंद )

घनन घन बरसे बदरिया ,झूमती हर  डाल|



भीगता आँचल धरा का  ,जिंदगी खुश हाल|   



प्यास फसलों की बुझी अब, आ गए त्यौहार- 



राग मेघ मल्हार सुन-सुन, हृदय झंकृत तार||…

Continue

Added by rajesh kumari on July 24, 2012 at 2:00pm — 12 Comments

रचयिता

झींगुर की रुन झुन

रात्रि में घुंघरू का

मुगालता देती हैं

बदरी की चुनरी चंदा पर

घूंघट का आभास कराती है

नीर भरी छलकती गगरी

सागर का छलावा देती हैं

अल्हड शौख किशोरी

के गुनगुनाने का

भ्रम पैदा करते हैं

बारिश की टिप- टिप

संगीत सुधा बरसाती हैं

दामिनी की चमक

श्याम मेघों की गर्जना

विरहणी के ह्रदय की

चीत्कार बन जाती है

अन्तरिक्ष में सजनी साजन

के मिलन की कल्पनाएँ

मिलकर करती हैं जो…

Continue

Added by rajesh kumari on July 23, 2012 at 1:00pm — 8 Comments

फौजी वर्दी

सुगंध सुहानी आयेंगी  इस मोड़ के बाद 

यादें गाँव की लाएंगी  इस मोड़ के बाद 

जिस नीम पे झूला करता था बचपन मेरा 

वही डालियाँ बुलाएंगी इस मोड़ के बाद 

अब तक बसी हैं फसलें जो मेरी नज़रों में

देखो अभी लहरायेंगी इस मोड़ के बाद 

बिछुड़ गई थी दोस्ती जीवन की राहों में 

वो झप्पियाँ बरसाएंगी इस मोड़ के बाद 

नखरों से खाते थे जिन हाथों से निवाले 

वो अंगुलियाँ तरसायेंगी इस मोड़ के बाद 

मचल रही होंगी…

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Added by rajesh kumari on July 18, 2012 at 9:05am — 8 Comments

परिवर्तन वरदान या बोझ

परिवर्तन के नाम पर ,अलग -अलग है सोच 

किसी ने वरदान कहा ,इसे किसी ने बोझ ||

परिवर्तन वरदान है ,या कोई अभिशाप 

एक को बांटे खुशियाँ ,दूजे को संताप ||

विघटित करके देश के ,कई प्रांत बनवाय 

महा नगर विघटित हुए ,इक -इक शहर बसाय||

शहर- शहर विघटित हुए ,और बन गए ग्राम 

ग्रामों में गलियाँ बनी ,परिवर्तन से  धाम||

घर बाँट दीवार कहे ,परिवर्तन की खोज

बूढ़े मात -पिता कहें ,ये छाती पर सोज ||

जो नियम भगवान् रचे ,वो…

Continue

Added by rajesh kumari on July 12, 2012 at 9:00pm — 27 Comments

अश्क हथेली पे

वो ख़्वाब उज़ागर क्यूँ  किये हमने 

सौ दर्द  ज़िगर को क्यूँ दिए हमने||

 जब करनी थी बातें कई हज़ार

वो लब  चुपके से क्यूँ सिये हमने||

ख़्वाब  बुनते रहे वो ही गलीचा 

 तलवे ये जख्मी क्यूँ किये हमने ||

 ता उम्र करते रहे  उन से  वफ़ा

ये जफ़ा के घूँट  क्यूँ पिए हमने ||

 दे के जहान  भर की दुआ उनको

मिटा दिए सुख के क्यूँ ठिये हमने  

 अश्क तो पलकों में ज़ब्त हो…

Continue

Added by rajesh kumari on July 10, 2012 at 12:30pm — 22 Comments

रणभेरी

वो देखो सखी

फिर रक्ताभ हुआ  नील गगन 

बढ़ रही हिय की धड़कन

विदीर्ण हो रहा हैमेरा  मन  

बाँध  दो इन उखड़ी साँसों को ,

अपनी श्यामल अलकों से 

भींच लूँ कुछ भी ना देखूं

 मैं अपनी इन पलकों से  

झील के जल में भी देखो

लाल लहू की है  ललाई

कैसे तैर रही है देखो

म्रत्यु  दूत   की परछाई 

थाम लो मुझको बाहों में

जडवत हो रही हूँ मैं 

दे दो सहारा काँधे का

सुधबुध खो रही हूँ…

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Added by rajesh kumari on July 1, 2012 at 10:37am — 18 Comments

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