1222/ 1222/ 1222
बहुत सोचा तुम्हें आखिर भुला दूँ मैं
जले लौ तो उसे खुद ही हवा दूँ मैं
उदासी का सबब गर पूछ लें मुझसे
अज़ीयत के निशाँ उनको दिखा दूँ मैं
कभी सागर कभी सहरा कभी जंगल
यूँ क्या-क्या बेख़याली में बना दूँ मैं
हक़ीकत तो बदल सकती नहीं फिर क्यों
गुजश्ता उन पलों को अब सदा दूँ मैं
तुम्हारी कुर्बतों के छाँटकर लम्हे
किताबों का हर इक पन्ना सजा दूँ मैं
इन आँखों से…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on July 27, 2014 at 11:00am — 16 Comments
निराशा की ऊँची लहरों
और आशा के सपाट प्रवाह के बीच
मन हिचकोले खा रहा है
कभी निराशा अपने पाश में बाँध कर खींच ले जाये
कभी आशाएँ
मुझे ले जाकर किनारे पहुँचा दें
कभी सोचता हूँ
बह चलूँ लहरों के साथ
कभी लगे
बाहर आ जाऊँ इस गर्दिश से
ये किस मुकाम पर हूँ
ये कौन सा मोड़ है
पल-पल उठती रौशनी भी
भ्रमित कर दे कुछ देर को
कि रास्ता बदल लूँ
या चलता रहूँ
(मौलिक व अप्रकाशित)
Added by शिज्जु "शकूर" on July 17, 2014 at 1:02pm — 20 Comments
2122 1212 22/112
हो किसी बात पर यकीं यारो
हौसला दिल में अब नहीं यारो
इक दफ़ा शोरे इन्क़िलाब उठा
दब गई फिर सदा वहीं यारो
काफिले रौशनी के दूर हुए
छुप गया चाँद भी कहीं यारो
दिल सुलगता है मेरा रह-रह के
बैठे चुपचाप हमनशीं यारो
आबले पड़ गये हैं पैरों में
गर्म होने लगी ज़मीं यारो
आइने का बिगड़ता क्या लेकिन
तर हुई खूँ से ये ज़बीं यारो
मेरा महबूब बनके इस ग़म…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on July 15, 2014 at 4:24pm — 21 Comments
2122/ 2122/ 2122/ 212
इस ख़मोशी से कभी तो एक मुबहम शोर से
दिल धड़कने लगता है क्यूँ मेरा इतनी ज़ोर से
कौन सा है रास्ता महफूज़ जाऊँ किस तरफ़
आफ़तें तो आफ़तें हैं आयें चारों ओर से
एक झटके में बिखर जाते हैं रिश्ते टूटकर
इतना क्यूँ मुश्किल इन्हें है बाँधना इक डोर से
और कितने राज़ अँधेरा अब छुपा ही पाएगा
इक किरण उठने लगी आफ़ाक़ के उस छोर से
बेसदा टूटा है दिल मेरा ये हालत हो गई
आँसुओं के नाम पर…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on July 13, 2014 at 7:45pm — 17 Comments
22- 22- 22- 22- 22- 2
दिल को अब के शायद चैन मयस्सर हो
तेरी क़ुर्बत में जब दिन रात गुज़र हो
मेरी बातों का सीधा दिल पे असर हो
गर सुनने का इक तेरे पास हुनर हो
बरसें जब सर्द फुहारें रिमझिम-रिमझिम
क्या कहना क्या खूब सुहाना मंज़र हो
इक रौ में बहते हैं चश्मे तो भी क्या
बारिश सा बरसो तो ये आलम तर हो
मज़्मून लगे जैसे हो इक आईना
तुम एक सुखनवर हो या शीशागर हो
सन्नाटे में कोई…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on July 10, 2014 at 10:00am — 13 Comments
2122- 2122- 2122- 212
नक्श भी कोई नहीं औ' रास्ता कोई नहीं
है सफ़र में काफ़िला पर रहनुमा कोई नहीं
भीड़ चेहरे सिर्फ़ कहने के लिये मौजूद हैं
घूम के देखा मगर मुझको मिला कोई नहीं
आशनाई बस ज़रूरत की है रिश्ते नाम के
इनका अब जज़्बात से ही वास्ता कोई नहीं
नफ़रतों के ज़ह्र में डूबी ज़बाँ के तीर का
आदमीयत है निशाना दूसरा कोई नहीं
सिर्फ़ बातों से बहल जायें यहाँ कुछ लोग तो
सच सुने कोई नहीं सच देखता…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on July 8, 2014 at 4:34pm — 25 Comments
2122 1122 22
बिजलियाँ हैं न हवा सावन में
गुज़री बेआब घटा सावन में
गर्म रातें ये सहर भी बेचैन
यूँ बुरा हाल हुआ सावन में
गुल खिले हैं न शिगूफ़े हँसते
है न रंगों का पता सावन में
खेत तालाब शजर भी सूखे
आसमाँ सूख गया सावन में
मुन्तज़िर सर्द फुहारों के अब
थक गई है ये फ़िज़ा सावन में
याद आती है हवा की ठण्डक
सब्ज़रंगी वो रिदा सावन में
मुन्तज़िर= इन्तज़ार…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on July 2, 2014 at 8:11am — 16 Comments
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