For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

शिज्जु "शकूर"'s Blog – July 2014 Archive (7)

बहुत सोचा तुम्हें आखिर भुला दूँ मैं-ग़ज़ल

1222/ 1222/ 1222

बहुत सोचा तुम्हें आखिर भुला दूँ मैं

जले लौ तो उसे खुद ही हवा दूँ मैं

 

उदासी का सबब गर पूछ लें मुझसे

अज़ीयत के निशाँ उनको दिखा दूँ मैं

 

कभी सागर कभी सहरा कभी जंगल

यूँ क्या-क्या बेख़याली में बना दूँ मैं

 

हक़ीकत तो बदल सकती नहीं फिर क्यों

गुजश्ता उन पलों को अब सदा दूँ मैं     

 

तुम्हारी कुर्बतों के छाँटकर लम्हे

किताबों का हर इक पन्ना सजा दूँ मैं

 

इन आँखों से…

Continue

Added by शिज्जु "शकूर" on July 27, 2014 at 11:00am — 16 Comments

आशा और निराशा- अतुकांत

निराशा की ऊँची लहरों

और आशा के सपाट प्रवाह के बीच

मन हिचकोले खा रहा है

कभी निराशा अपने पाश में बाँध कर खींच ले जाये

कभी आशाएँ

मुझे ले जाकर किनारे पहुँचा दें

कभी सोचता हूँ

बह चलूँ लहरों के साथ

कभी लगे

बाहर आ जाऊँ इस गर्दिश से

 

ये किस मुकाम पर हूँ

ये कौन सा मोड़ है

पल-पल उठती रौशनी भी

भ्रमित कर दे कुछ देर को

कि रास्ता बदल लूँ

या चलता रहूँ

(मौलिक व अप्रकाशित)

Added by शिज्जु "शकूर" on July 17, 2014 at 1:02pm — 20 Comments

हो किसी बात पर यकीं यारो- ग़ज़ल

2122 1212 22/112

हो किसी बात पर यकीं यारो

हौसला दिल में अब नहीं यारो

 

इक दफ़ा शोरे इन्क़िलाब उठा

दब गई फिर सदा वहीं यारो

 

काफिले रौशनी के दूर हुए

छुप गया चाँद भी कहीं यारो

 

दिल सुलगता है मेरा रह-रह के

बैठे चुपचाप हमनशीं यारो

 

आबले पड़ गये हैं पैरों में

गर्म होने लगी ज़मीं यारो

 

आइने का बिगड़ता क्या लेकिन

तर हुई खूँ से ये ज़बीं यारो

 

मेरा महबूब बनके इस ग़म…

Continue

Added by शिज्जु "शकूर" on July 15, 2014 at 4:24pm — 21 Comments

दिल धड़कने लगता है क्यूँ मेरा इतनी ज़ोर से-ग़ज़ल

2122/ 2122/ 2122/ 212

इस ख़मोशी से कभी तो एक मुबहम शोर से

दिल धड़कने लगता है क्यूँ मेरा इतनी ज़ोर से

 

कौन सा है रास्ता महफूज़ जाऊँ किस तरफ़

आफ़तें तो आफ़तें हैं आयें चारों ओर से

 

एक झटके में बिखर जाते हैं रिश्ते टूटकर

इतना क्यूँ मुश्किल इन्हें है बाँधना इक डोर से

 

और कितने राज़ अँधेरा अब छुपा ही पाएगा

इक किरण उठने लगी आफ़ाक़ के उस छोर से

 

बेसदा टूटा है दिल मेरा ये हालत हो गई

आँसुओं के नाम पर…

Continue

Added by शिज्जु "शकूर" on July 13, 2014 at 7:45pm — 17 Comments

दिल को अब के शायद चैन मयस्सर हो -ग़ज़ल

22- 22- 22- 22- 22- 2

दिल को अब के शायद चैन मयस्सर हो

तेरी क़ुर्बत में जब दिन रात गुज़र हो

 

मेरी बातों का सीधा दिल पे असर हो

गर सुनने का इक तेरे पास हुनर हो

 

बरसें जब सर्द फुहारें रिमझिम-रिमझिम

क्या कहना क्या खूब सुहाना मंज़र हो

 

इक रौ में बहते हैं चश्मे तो भी क्या

बारिश सा बरसो तो ये आलम तर हो

 

मज़्मून लगे जैसे हो इक आईना

तुम एक सुखनवर हो या शीशागर हो

 

सन्नाटे में कोई…

Continue

Added by शिज्जु "शकूर" on July 10, 2014 at 10:00am — 13 Comments

है सफ़र में काफ़िला पर रहनुमा कोई नहीं-ग़ज़ल

2122- 2122- 2122- 212

नक्श भी कोई नहीं औ' रास्ता कोई नहीं

है सफ़र में काफ़िला पर रहनुमा कोई नहीं

 

भीड़ चेहरे सिर्फ़ कहने के लिये मौजूद हैं

घूम के देखा मगर मुझको मिला कोई नहीं

 

आशनाई बस ज़रूरत की है रिश्ते नाम के

इनका अब जज़्बात से ही वास्ता कोई नहीं

 

नफ़रतों के ज़ह्र में डूबी ज़बाँ के तीर का

आदमीयत है निशाना दूसरा कोई नहीं

 

सिर्फ़ बातों से बहल जायें यहाँ कुछ लोग तो

सच सुने कोई नहीं सच देखता…

Continue

Added by शिज्जु "शकूर" on July 8, 2014 at 4:34pm — 25 Comments

सावन में- ग़ज़ल

2122 1122 22

बिजलियाँ हैं न हवा सावन में

गुज़री बेआब घटा सावन में

 

गर्म रातें ये सहर भी बेचैन

यूँ बुरा हाल हुआ सावन में

 

गुल खिले हैं न शिगूफ़े हँसते

है न रंगों का पता सावन में

 

खेत तालाब शजर भी सूखे

आसमाँ सूख गया सावन में

 

मुन्तज़िर सर्द फुहारों के अब

थक गई है ये फ़िज़ा सावन में

 

याद आती है हवा की ठण्डक

सब्ज़रंगी वो रिदा सावन में

 

मुन्तज़िर= इन्तज़ार…

Continue

Added by शिज्जु "शकूर" on July 2, 2014 at 8:11am — 16 Comments

Monthly Archives

2023

2020

2018

2017

2016

2015

2014

2013

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। लम्बे अंतराल के बाद पटल पर आपकी मुग्ध करती गजल से मन को असीम सुख…"
19 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Nov 17
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Nov 17

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service