छोटी बह्र में गजल-2122, 2122
तुम मुझे अच्छी लगी हो।
मन से तुम सच्ची लगी हो।।
रोज गुल की कामना सी,
शहर की बच्ची लगी हो।
शाम की मुश्किल घड़ी में,
जीत की बस्ती लगी हो।
हुस्न की मलिका सुनो तुम,
आज फिर हस्ती लगी हो।
बाग के हर बज्म में तुम,
राग सी मस्ती लगी हो।
शोर है सागर में तूफां,
मौज की कश्ती लगी हो।
चढ़ गया छत पर पकड़ कर,
सांप सी रस्सी लगी हो।
तुम…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on July 22, 2013 at 8:51pm — 9 Comments
!!! चौपाई !!!
//प्रत्येक चरण में 16 मात्राएं, अन्त में दो गुरू या एक गुरू दो लघु होता है। जगण-121 तथा तगण-221 निषेध है//
मेघ तुम्हारा तन है काला।
मन है निर्मल गंगा वाला।!
चाल तुम्हारी गड़बड़ झाला।
बोल कड़क बिजली भय वाला।।
बरसे झम-झम हवा झकोरे।
रिसता तरल अमी वन भोरे।।
खेत खलिहान हुए विभोरे।
कृषक चले तन हल धर जोरे।।
हरषे रिम-झिम सावन जैसे।
छपरा झर-झर झरता…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on July 20, 2013 at 10:12am — 12 Comments
!!! जमीं-फलक में हैं तारें, निकल के देखते हैं !!!
1212 1122 1212 112
लहर-लहर में कशिश है, मचल के देखते हैं।
हवा हवाई सफर से, बहल के देखते है।।
नदी कहे कि सितारें भरी हैं रेत हसीं।
लहर चमक के किनारे उछल के देखते हैं।।
हवा दिशा से कहे कामना सकल शुभ हो।
मगर तुफान कहे तो संभल के देखते हैं।।
ये अग्नि-वारि गगन में, धरा भुलाए नफरत।
प्रलय से कष्ट मिले हैं, संभल के देखते हैं।।
गगन से बरसे है…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on July 17, 2013 at 8:34pm — 16 Comments
सितारों जड़ी चुनरी नित-निश
लहर दिशा महके री।
झांक रही केसर
मुख नारी,
पर्वत ओट लिए
दृग कारी।
काजल रेख दूर
तक पारी,
गाल गुलाल
मुस्कान प्यारी।
अधर बीच बिजली री !
स्वर्ण किरन ने
ली अंगड़ाई,
शबनम करती
चली रूषाई।
कल कल धुन सुन
सरिता मचले,
गिरि से गिर कर
झरना उछले।
बांह बॅधें नहि मछरी !
पानी में केसर
मुख धोए,
हर हर गंगे
बोल सुहाए।
निखरा रूप
सलोना सुन्दर,
जल रक्त…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on July 17, 2013 at 8:19am — 14 Comments
!!! दुर्मिल सवैया !!! ......8 सगण
बदरा बरसे हरषे धरती, नदिया-सर-खेत भरे जल से।
वन-बाग झकोर हवा पहिरे, फल जामुन-आम पके जल से।।
हर ओर घटा घन घोर घिरी, मन-मोर-चकोर कहे जल से।
विरही मन नारि छली मचली, नहि प्यास बुझे बरखा जल से।।
के0पी0सत्यम/ मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on July 16, 2013 at 9:27pm — 10 Comments
अन्तर्मन की लौ अति उज्ज्वल
निश-दिन प्रेम बढ़ाए, प्रकृति अमरता लाए।
गुलमोहर की चुनरी ओढ़ी
पटका अमलतास पीताम्बर
लचकारा लटकाए, झूम-झूम हरषाए।
धानी वाली साड़ी झिल-मिल
घूंघट में आभा छवि पाकर
गाल गुलाल उड़ाए, आंचल किरन सजाए।
सुन्दर सूरत प्यारी मूरत
माथे की बिन्दी चन्द्राकर
घुंघर केश मुख छाए, शबनम भाल थिराए।
अंधड़-लू से कांवरि दौड़े
सांय-सांय शहनाई संजर
डोली जिय धड़काए, मछली मन…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on July 12, 2013 at 10:00pm — 15 Comments
जीव-प्रकृति से प्यार करें,
बनकर धरा हितेश!
पहाड़ों की शिखाओं पर
हरियाली से केश
कुछ घुंघराले
कुछ लट वाले
कुछ तने-तने रेश।1
बहे पवन पुरवाई या
पछुवा चले बयार
इठलाती औ
बलखाती ज्यों
झूमें मस्त दिनेश।2
गूंजें वन में कलरव धुन
ठुमरी औ मल्हार
नृत्य उर्वशी
रम्भा करती
किरने अर्जुन वेश।3
तितली-भौरें-पाखी-जन
करें सुमन से नेह
चूम-चूम तन
कण पराग मन
मिटे तमस औ…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on July 10, 2013 at 8:20am — 14 Comments
!!! अभिनव प्यार !!!
प्रिया! जब तुम भूली,
तो मैं क्या लिखता ?
जब तुम थीं सब मेंरा था,
मैं याद भला क्या करता ?..... प्रिया! जब......
अब तुम नहीं पर प्यार तेरा,
मुझे बार बार दोहराता।
मैं भूल चला जीवन के पथ को,
स्मृति रोशन क्या करता ?...... प्रिया! जब...
पूर्ण अंधकार में इक जुगुनू,
इस झिलमिल जीवन को-
या अपनों से भूले रिश्तों का,
पथ प्रदर्शन क्या करता ?....... प्रिया! जब...
इस अभिनव प्यार संग,…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on July 3, 2013 at 7:52pm — 17 Comments
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