212 212 212 2
जिन्दगी अब सरल हो रही है
बात हर इक गजल हो रही है
दलदली हो चुकी है जमीं पर,
हर कली अब कमल हो रही है
तितलियाँ भर रहीं हैं उड़ानें
नीति बेशक सफल हो रही है
आ रहा है कहीं से उजाला
रौशनी आजकल हो रही है
मखमली हो रही हैं हवाएं
मेंढकी भी विकल हो रही है
है दरोगा बड़ा लालची वो
धारणा अब अटल हो रही है
मौलिक/अप्रकाशित.
Added by Ashok Kumar Raktale on July 28, 2016 at 11:00pm — 15 Comments
आकर साजन तू ही ले जा क्यूँ ये सावन ले जाए
अधरों पर छायी मस्ती ये क्यूँ अपनापन ले जाए
भिगो रहा है बरस-बरस कर मेघ नशीला ये काला
कहीं न ये यौवन की खुश्बू मन का चन्दन ले जाए
कड़क-गरज डरपाती बिजली पल-पल नभ में दौड़ रही
कहीं न ये चितवन के सपने संचित कुंदन ले जाए
बिंदी की ये जगमग-जगमग खनखन मेरी चूड़ी की,
बूँदों की ये रिमझिम टपटप छनछन-छनछन ले जाए
पुहुप बढाते दिल की धड़कन शाखें नम कर डोल…
ContinueAdded by Ashok Kumar Raktale on July 20, 2016 at 1:00pm — 28 Comments
२२१ २१२१ १२२१ २१२
जब छीनने छुडाने के साधन नए मिले
हर मोड़ पर कई-कई सज्जन नए मिले
कुछ दूर तक गई भी न थी राह मुड़ गई
जिस राह पर फूलों भरे गुलशन नए मिले
काँटों से खेलता रहा कैसा जुनून था
उफ़! दोस्तों की शक्ल में दुश्मन नए मिले
जितने भी काटता गया जीवन के फंद वो
उतने ही जिंदगी उसे बंधन नए मिले
अपनों से दूर कर न दे उनका मिज़ाज भी
गलियों से अब जो गाँव की आँगन नए…
ContinueAdded by Ashok Kumar Raktale on July 18, 2016 at 2:00pm — 19 Comments
२२१ २१२१ १२२१ २१२
ये रूप रंग गंध सभी शान बन गए
कुछ रोज में ही जो मेरी पहचान बन गए
नफरत के सिलसिले जो चले धूप छाँव बन
इंसानियत के शब्द भी मेहमान बन गए
तुम-तुम न रह सके न ही मैं-मैं ही बन सका
दोनों ही आज देख लो शैतान बन गए
खेमों में बँट गए हैं सभी आज इस तरह
कुछ राम बन गए कई रहमान बन गए
हद के सवाल पर या कि जिद के सवाल पर
हद भूलकर गिरे सभी नादान बन…
ContinueAdded by Ashok Kumar Raktale on July 17, 2016 at 9:35am — 5 Comments
2122 2122 2122 212
मौत है निष्ठूर निर्मम तो कड़ी है जिंदगी
जो ख़ुशी ही बाँटती हो तो भली है जिंदगी
लोग जीने के लिए हर रोज मरते जा रहे
ये सही है तो कहो क्या फिर यही है जिंदगी
दो निवालों के लिए दिनभर तपाया है बदन
या कि मानव व्यर्थ चाहत में तपी है जिंदगी
झूठ माया मोह रिश्ते सब सही लगते यहाँ
जाने कैसे चक्रव्यूहों में फँसी है जिंदगी
काठ का पलना कहीं तो खुद कहीं पर काठ है
है हँसी…
ContinueAdded by Ashok Kumar Raktale on July 9, 2016 at 7:00pm — 18 Comments
छाये नभपर घन मगर, सहमी है बरसात |
देख धरा का नग्न तन, उसे लगा आघात ||
उसे लगा आघात, वृक्ष जब कम-कम पाए,
विहगों के वह झूंड, नीड जब नजर न आए,
अब क्या कहे ‘अशोक’, मनुज फिरभी इतराए,
झूठी लेकर आस, देख घन नभ पर छाए ||
कहीं उडी है धूल तो, कहीं उठा तूफ़ान |
देख रहा है या कहीं, सोया है भगवान ||
सोया है भगवान, अगर तो मानव जागे,
हुई कहाँ है भूल , जोड़कर देखे तागे,
जीवन की यह राह, गलत तो नहीं मुड़ी है
देखे क्यों…
ContinueAdded by Ashok Kumar Raktale on July 6, 2016 at 8:59am — 2 Comments
२२१२ २२१२ २२
हमने यहीं पर ये चलन देखा
हर गैर में इक अपनापन देखा
देखी नुमाइश जिस्म की फिरभी
जूतों से नर का आकलन देखा
हर फूल ने खुश्बू गजब पायी
महका हुआ सारा चमन देखा
लिक्खा मनाही था मगर हमने
हर फूल छूकर आदतन देखा
उस दम ठगे से रह गए हम यूँ
फूलों को भँवरों में मगन देखा
होती है रुपियों से खनक कैसे
हमने भी रुक-रुक के वो फन देखा
रोशन चिरागों…
ContinueAdded by Ashok Kumar Raktale on July 2, 2016 at 6:40pm — 14 Comments
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |