मात्रा तेरह विषम में ग्यारह सम का मान
दोहा छंद सदा रचें इसका यही विधान
पाँव पाँव की बात है पूत सपूत कपूत
श्रेणी मेरी कौन सी जानू हो अभिभूत
चला दौर प्रतियोगिता आदी अंत न छोर
सुन सुन सब जन खुश हुए मैं भी भाव विहोर
प्रथम बार आया मजा दोहों की बारात
जाग जाग पढता रहा फिर हो गया प्रभात
सखा मगन बंधे बंद सजा तोरण द्वार
करें तिलक है कवि जगत स्वागत है सरकार
ज्ञानी जन मिल बैठिये मंदिर…
ContinueAdded by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on July 31, 2014 at 9:30am — 5 Comments
दोहे // प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा //
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ये मात्र दोहे हैं. चिकित्सा सलाह नहीं .
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मानस चरचा हो रही सुनो लगा कर ध्यान
भव सागर तरिहो सभी इसको पक्का जान
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मटर पराठा खा गये बैठे जितने लोग
लौकी सेवन नित करें भागें सगरे रोग
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लौकी रस इक्कीस दिन प्रातः पी लें…
ContinueAdded by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on July 28, 2014 at 1:45pm — 14 Comments
प्रतीक्षा
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प्रतीक्षा है
किसकी?
किसे है प्रतीक्षा
मन, मस्तिष्क
या आँखें
विभेद कठिन
आज तक स्मृति में है
वह सब कुछ
विस्मृत हो तो कैसे
क्या उसने भुला दिया होगा
शायद भुला सके
पर मैं नहीं भूल…
ContinueAdded by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on July 27, 2014 at 5:00pm — 12 Comments
खेती - किसानी -दोहे //प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा //
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मौसम फसल खरीफ का पानी की दरकार
खेतों में पानी नही सोती है सरकार
खेती खुद करना भली जानत है सब कोय
बटाई में जबहि दिये फल मीठा नहि होय
फसल समय से बोइये ध्यान से सुने बात
बढ़िया फसल होय सदा सुखी रहो दिन रात
खाद संतुलित डालिये मिट्टी जाँच कराय
बंजर भूमि नही बने इसका यही उपाय
खेत सुरक्षित रहे सदा चिंता करें न…
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on July 25, 2014 at 1:30pm — 4 Comments
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