For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

राज़ नवादवी's Blog – August 2012 Archive (6)

राज़ नवादवी: मेरी डायरी के पन्ने- ३४

प्यार की इक खोई नज़र आज फिर लौट आयी, झुकी आँखों का दबा दबा भंवर आज फिर याद हो आया. ज़मीन पे बिछे तोशक पे, दीवार से लगके बैठे, कँवल सी फ़ैली हथेलियों में अपनी ठोढ़ी संभाल के, अपनी लरज़ती ज़ुल्फों के काकुल के झरोखे से ज़मीन को ताकते हुए तुम किसे सोचती थीं? मैं जानता हूँ, वो मैं ही था और और थीं तो हमारे बेसाख्ता पैदा हुए प्यार के गैरमुऐयन मुस्तकबिल (अनिश्चित भविष्य) की तश्वीशात (चिंताएं)! फिक्रमंद, अपनी सतर उँगलियों से मिट्टी पे जो अबूझ से नक्श तुमने उकेरे थे, ...इक शाम मेरे साथ, आज वो ख़्वाबों…

Continue

Added by राज़ नवादवी on August 15, 2012 at 9:12pm — 5 Comments

राज़ नवादवी: मेरी डायरी के पन्ने- ३३

रात की सन्नाटगी बोलने लगी है, कानों की वीरानियाँ सुनने. कालोनी की सडकों पे तन्हाईयों के डेरे लग चुके हैं और घरों में लोग अपने अपने बिस्तर पे कटे दरख्तों की मानिंद बिछ से गए हैं. किसी किसी घर से टीवी के चलने की आवाज़ भी आ रही है, पता नहीं देखने वाला जाग भी रहा है या सो रहा है. लोग इक समूचे दिन को पीछे छोड़ आए हैं और रोज़मर्रा की तमाम कदोकाविश (भाग दौड़) जैसे उनके कपड़ों के साथ आलमीरों में टंग गई है इक रात के आराम के लिए. जूते मेज के किनारे चुपचाप पड़े हैं, उनके तस्में (फीते) लहराते अंदाज़ में…

Continue

Added by राज़ नवादवी on August 7, 2012 at 12:28am — No Comments

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- २४

ये जो शहरेवीराँ ये बस्तीएतन्हाई है  

आदमोहव्वाकी यही दौलतेआबाई है

 

चलिए रखके अपनी रफ़्तार पे काबू

ख्यालोंका शह्र है आबादीहीआबादी है  

 

कोई रोटी चाहे फूली, या न फूली हो

तवे से आखिर उतार ही दी जाती है

 

ख्वाबोंसे लाख बनाऊं घरौंदे जीने के

सफ़र लंबाहै और मुकाम इब्तेदाई है

 

तू फ़िक्रज़दा होती है तो यूँ लगता है

एक चिड़या है, बिल्ली से घबराती है

 

नसही तू तेरे नामसे वाबस्तगी सही

तुझसे…

Continue

Added by राज़ नवादवी on August 5, 2012 at 7:00pm — 4 Comments

राज़ नवादवी: मेरी डायरी के पन्ने- ३२

कोई दिन यूँ ही उदास सा बारिश का, इक नीम के दरख्त सा खड़ा, बिना परिंदों का, न ही कोई फूल महकते, न ही कोई चिड़िया चहकती, बस बारिश की बूंदों को टपकाते ख्यालों से चुप, ऊँचाइयों को छूते शज़र, पानी और नमी से झुके-झुके.  

 

सुबह से बादलों के काले सायों का आँचल ओढ़ रखा है फ़ज़ा ने, घरों ने भी जैसे खामोशी की बरसाती ओढ़ रखी है, पहचाने घर भी पराए से लगते हैं. गली में कुत्ते भी भागते छुपते शायद ही नज़र आते, लोग भी कम ही दीखते हैं नुक्कड़ की दूकानों के इर्द गिर्द, गाड़ियों ने भी गोया आज…

Continue

Added by राज़ नवादवी on August 5, 2012 at 3:30pm — 2 Comments

राज़ नवादवी: मेरी डायरी के पन्ने- ३१

ज़िंदगी क्या है? बचपन गुज़र गया, जवानी बीत गई, ज़ईफ़ी उफ़ुक़ (क्षितिज) पे आ चुकी है. बेफिक्री, नाइल्मी, मासूमी, और मौजोमस्ती के दौर अब रहे नहीं; मआशी (आर्थिक), इज्देवाजी (दाम्पत्य), इन्फिरादी (व्यक्तिगत), कुनबाई (पारिवारिक), और समाजी फिक्रों के तानेबानों में पल पल की राह ढूँढते रहते हैं. हमें किसकी तलाश रहती है, दिल क्यूँ कभी खुश तो कभी रंजोगम (दुःख और दर्द) से माज़ूर (व्यथित) होता है, इक ही सूरत को पहने माहौल कभी क्यूँ दिलकश तो कभी दिल पे गराँ (भारी) लगते हैं?

बच्चे छोटे थे…

Continue

Added by राज़ नवादवी on August 4, 2012 at 2:10pm — No Comments

राज़ नवादवी: मेरी डायरी के पन्ने- ३०

ज़िंदगी के रुपहले परदे पे हम किसी साए की तरह जी रहे हैं, कायनात से आ रही शुआ बिखर कर रंगीन हो गयी है. जब भी कुछ टूटा है, कुछ नया बना है. जब भी कहीं कुछ नया हुआ, कहीं कुछ पुराना छूट गया है. हालात में तरतीब (व्यवस्था) की तलाश की तो बेतरतीबियां ही बेतरतीबियाँ नज़र आईं और जब किसी भी हाल में गाफ़िल (बेसुध) होके जिया तो बेतरतीबियों के सिलसिले में भी इक तसलसुल (क्रम) सा बन गया. अजीब इत्तेफाक़ है कि इत्तेफाक़ भी तय लगते हैं और ये भी कि तयशुदा ज़िंदगी में इत्तेफाक़ ही इत्तेफाक़ हैं. ज़िंदगी में ये…

Continue

Added by राज़ नवादवी on August 1, 2012 at 12:20pm — 2 Comments

Monthly Archives

2019

2018

2017

2016

2013

2012

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service