For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Harash Mahajan's Blog – August 2015 Archive (5)

चाहा जिसे था दिल के बंद दरवाजे ही मिले

2212 1222 2222 12

...

चाहा जिसे था दिल के बंद दरवाजे ही मिले ,

वो दोस्ती में मुझको बस अजमाते ही मिले |



ज़ब्रो ज़फ़ा गरीबों पर जिस-जिस ने की अगर,  

हर जुर्म खुद खुदा को वो लिखवाते ही मिले |



बदनाम वो शहर में पर, काबे का था मरीज़,

हर चोट भी ख़ुशी से सब बतियाते ही मिले |



वो यार था अजीजों सा, दुश्मन भी था मगर,

हर राज-ए-दिल उसे पर हम बतलाते ही मिले |



इस दौर में जिधर भी देखो गम ही गम हुए,

ऐ ‘हर्ष’ ज़िन्दगी में वो भी आधे ही…

Continue

Added by Harash Mahajan on August 26, 2015 at 10:09pm — 8 Comments

मेरी चिंता मत न कर तू दिल की चिंता जारी रख

2222 2222 2222 222



मेरी चिंता मत न कर तू दिल की चिंता जारी रख,

कितने बलवे झेले तूने, यारों से अब यारी रख ।



उसके ज़ुल्मों से तंग आकर मर्यादा न भूलो तुम,

कर्मों का सब लेखा है ये अपना मन न भारी रख ।



जब देखो वो सरहद पर, बारूदी खेलों में मशगूल,

ताँका-झांकी बंद न होगी अपनी भी तैयारी रख ।



कब तक बिजली गर्जन कर तू बादल पर मंडरायेगी,

पापी तुझको भूलें हैं सब, अपनी भागीदारी रख ।



मैखाने में गिर कर उठना पीने वालों का दस्तूर,

गिर न… Continue

Added by Harash Mahajan on August 21, 2015 at 5:28pm — 13 Comments

दिल चाहता है तुझसे कभी, ना गिला करूँ

2212       1221      2212     12



दिल चाहता है तुझसे कभी, ना गिला करूँ,

इस ज़िन्दगी में तुझसे यही सिलसिला करूँ |



दिन भर शराब पी के हुआ,था मैं दरबदर,

अब ढूंढता हूँ चादर ग़मों की सिला करूँ |



नफरत थी जिन दिलों में, भुलाया नहीं मुझे,

दिल में बता खुदा, उनके, कैसे खिला करूँ |



अमन-ओ-अमां के साये ही जिनसे नसीब हो,

ऐसे चमन  जमी दर ज़मीं  काफिला करूँ |



तन्हा है सब सफ़र और तनहा हैं रास्ते,

अब सोचता हूँ तुझसे यहाँ ही मिला…

Continue

Added by Harash Mahajan on August 6, 2015 at 6:03pm — 13 Comments

बन गया मैं यूँ खुदा सूली पे चढ़ जाने के बाद

2122 2122 2122 212



बन गया मैं यूँ खुदा, सूली पे चढ़ जाने के बाद,

पत्थरों में पूजे मुझको, अब सितम ढाने के बाद |



बनके पत्थर देखता हूँ,  इंतिहा बुत परस्ती की,

फूल बरसाए है दुनियां, चोट बरसाने के बाद |

 

मैं था पागल इश्क में, उसको न जाने क्या हुआ,

लौ बुझा दी इस दीये की, इतना समझाने के बाद |



बे-वफाई छेदती है, नर्म दिल की परतों को,

हूर रुख्सत हो कभी दिल में वो बस जाने के बाद |



इतना रोया हूँ, मगर अब, अश्क आँखों में…

Continue

Added by Harash Mahajan on August 3, 2015 at 1:30pm — 9 Comments

किस तरह नादानियों में हम मुहब्बत कर गए

2122 2122 2122 212



किस तरह नादानियों में हम मुहब्बत कर गए,

दी सजा दुनियां ने हमको सारे अरमां मर गए |



कब तलक खारिज ये होगी हक परस्तों की ज़मीं,

महके गुलशन तो समझना कातिलों के सर गए |



बंदिशें अब बेटियों पर, आसमां को छू रहीं,

किस तरह बदला ज़माना, बरसों पीछे घर गए |



प्यार की, हर पाँव से, अब बेड़ियाँ कटने लगीं,

नफरतों में, जुल्फों से, अब फूल सारे झर गए |



लुट रही अस्मत चमन की, कागज़ी घोड़े यहाँ,…

Continue

Added by Harash Mahajan on August 1, 2015 at 1:00pm — 13 Comments

Monthly Archives

2020

2018

2016

2015

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। लम्बे अंतराल के बाद पटल पर आपकी मुग्ध करती गजल से मन को असीम सुख…"
19 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Nov 17
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Nov 17

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service