भोर होने से पहले ...
वाह
कितनी अज़ीब
बात है
सौदा हो गया
महक का
गुल खिलने से
पहले
सज गयी सेजें
सौदागरों की आँखों में
शब् घिरने से
पहले
बट गया
जिस्म
टुकड़ों में
हैवानियत की
चौख़ट पर
भर गए ख़ार
गुलशन के दामन में
बहार आने से
पहले
वाह
इंसानियत के लिबास में
हैवानियत
कहकहे लगाती है
ज़िंदगी
दलालों की मंडी में
रोज मरती है
जीने…
Added by Sushil Sarna on August 31, 2017 at 4:30pm — 12 Comments
जब से तूने ..
जब से तूने
मुझे
अपनी दुआओं में
शामिल कर लिया
मैं किसी
खुदा के घर नहीं गया
जब् से तूने
अपने लबों पे
मेरा नाम
रख लिया
मैं
तिश्नगी भूल गया
जब से तूने
मेरी आँखों को
अपने अक्स से
सँवारा हे'
मेरे लबों ने
हर लम्हा
तुझे पुकारा है
जब से तूने
निगाह फेरी है
लम्स-ए-मर्ग का
अहसास होता है
वो शख़्स
जो तुझमें कहीं
सोता था
आज
दहलीज़े…
Added by Sushil Sarna on August 30, 2017 at 3:30pm — 8 Comments
सिहरन ....
ये किसके आरिज़ों ने चिलमन में आग लगाई है।
ये किसकी पलकों ने फिर ली आज अंगड़ाई है।
होने लगी सिहरन सी अचानक से इस ज़िस्म में -
ये किसकी हया को छूकर नसीमे सहर आई है।
............................................................
ज़न्नत ...
वो उनके शहर की हवाओं के मौसम l
कर देते हैं यादों से आँखों को पुरनम l
तमाम शब रहती है ख़्वाबों में ज़न्नत -
पर्दों से हया के छलकती .है शबनम l
सुशील सरना
मौलिक एवं…
Added by Sushil Sarna on August 30, 2017 at 2:52pm — 6 Comments
लौट आओ ....
बहुत सोता था
थक कर
तेरे कांधों पर
मगर
जब से
तू सोयी है
मैं
आज तक
बंद आँखों में भी
चैन से
सो नहीं पाया
माँ
जब भी लगी
धूप
तुम
छाया बन कर
आ गए
जब से
तुम गए हो
मुझे
धूप
चिढ़ाती है
छाया में भी
बहुत सताती है
पापा
डांटते थे
जब पापा
माँ
तुम मुझे
अपनी ममता में
छुपाती थी
डांटती थी
जब माँ…
Added by Sushil Sarna on August 22, 2017 at 5:52pm — 17 Comments
एक मुट्ठी राख़ ....
न ये सुबह तेरी है न रात तेरी है l
आबगीनों सी बंदे हयात तेरी है l
इतराता है क्यूँ तू मैं की क़बा में -
एक मुट्ठी राख़ औकात तेरी है l
........................................
अंगड़ाइयों से...
उम्र जब अपने शबाब पर होती है l
तो मोहब्बत भी बेहिसाब होती है l
जवां अंगड़ाइयों से मय बरसती है -
हर मुलाक़ात हसीन ख़्वाब होती है l
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on August 17, 2017 at 4:38pm — 2 Comments
नज़र की हदों से .....
अग़र
तेरे बिम्ब ने
मेरे स्मृति पृष्ठ पर
दस्तक
न दी होती
मैं कब का
तेरी नज़र की
हदों से
दूर हो गया होता
शायद
रह गया था
कोई क्षण
अधूरी तृषा लिए
तृप्ति के
द्वार पर
अगर
तेरी तृषा के
स्पंदन ने
मेरी श्वासों को
न छुआ होता
सच
मैं कब का
तेरी नज़र की
हदों से
दूर हो गया होता
शायद
लिपटा था
कोई मूक निवेदन
अपनी…
Added by Sushil Sarna on August 13, 2017 at 9:17pm — 12 Comments
नज़र की हदों से .....
अग़र
तेरे बिम्ब ने
मेरे स्मृति पृष्ठ पर
दस्तक
न दी होती
मैं कब का
तेरी नज़र की
हदों से
दूर हो गया होता
शायद
रह गया था
कोई क्षण
अधूरी तृषा लिए
तृप्ति के
द्वार पर
अगर
तेरी तृषा के
स्पंदन ने
मेरी श्वासों को
न छुआ होता
सच
मैं कब का
तेरी नज़र की
हदों से
दूर हो गया होता
शायद
लिपटा था
कोई…
Added by Sushil Sarna on August 13, 2017 at 9:00pm — 2 Comments
ज़िंदगी...
ज़िंदगी का
हासिल
है
मौत
क्या
मौत का
हासिल
है
ज़िंदगी ?
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on August 11, 2017 at 8:39pm — 6 Comments
क्षणिक सुख ...
कितने
दुखों से
भर दिया
बज़ुर्गों का दामन
वर्तमान के
क्षणिक सुख की
सोच ने
सैंकड़ों झुर्रियों में
छुपा दिया
बज़ुर्गों के सुख को
वर्तमान के
क्षणिक सुख की
सोच ने
मानवीय संवेदनाओं के
हर बंध अनुबंध
बिसरा डाले
वर्तमान के
क्षणिक सुख की
सोच ने
ममता की अनुभूति
जो भूले न
आज तक
उन्हें
कन्धों तक का
मोहताज़ बना दिया
वर्तमान के…
Added by Sushil Sarna on August 8, 2017 at 6:37pm — 6 Comments
शर्मीले लब ……….
ये मोहब्बत भी
अज़ब शै है ज़माने में
उम्र गुज़र जाती है
समझने
और समझाने में
हो जाती हैं
सांसें चोरी
खबर नहीं होती
नींद नहीं आती बरसों
उनके इक बार मुस्कुराने में
डूबे रहते हैं पहरों
इक दूजे के ख़्यालों में
गुज़र जाती शब्
इक दूजे से बतियाने में
राहे मोहब्बत में
जाने ये कैसे मुक़ाम आते हैं
दो ज़िस्म
इक जान हो जाते हैं
मैं और तुम के अहसास
कहीं फ़ना हो जाते हैं
मख़मली लम्हे…
Added by Sushil Sarna on August 5, 2017 at 3:39pm — 8 Comments
डुगडुगी बजती रही.......
1.
गरजे घन घनघोर
प्रलय चहुँ ओर
तृण बहे
तन बहे
करके
सब को अशांत
फिर
वृष्टि का तांडव
हो गया
शांत
2
बुझ गयी
कुछ क्षण जल कर
माचिस की तीली सी
जंग लड़ती
साँसों से
असहाय काया
अस्थि कलश में
सिमट गयी
मुट्ठी भर राख में
साँसों की
माया
3
तालियों के शोर
चिलचिलाती धूप
करतब दिखाती बच्ची
रस्सी से गिर पड़ी
साँसों से संघर्ष…
Added by Sushil Sarna on August 4, 2017 at 5:26pm — 4 Comments
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