गुरु लघु और लघु गुरु, आपस में है मेल
चूक हुई तों समझिये, बिगड़े सारा खेल
खीरे सा मत होइये , गर्दन काटी जाय
दुनिया से तुम तो गये, स्वाद न उनको आय
इन्द्र देव नाखुश हुए, धरती सूखी जाय
फसल बाजरा तिल करें , दूजा न अब उपाय
जग में संगत बडन की, करो सोच सौ बार
जोड़ी सम होती भली , खाओ कभी न मार
चौबे जी दूबे बने, पीटत अपना माथ
छब्बे बनने थे चले, कुछ नहि आया हाथ
मोबाइल ले हाथ में , बाला करती चैट
गिटपिट…
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on August 12, 2014 at 10:00pm — 6 Comments
रंग बिरंगी पुतलियाँ, नयनन रही लुभाय
चित्त्तेरे भगवान् की, देखो महिमा गाय
पुतलियाँ निष्काम सदा, प्रेम से सराबोर
मानव फिर क्यों बन गया, कपटी लम्पट चोर
कठपुतलियाँ प्राण रहित, मानव में है जान
इनको नचाता मानव, मानव को भगवान
निरख निरख ये पुतलियाँ, मन है भाव विहोर
हाथों मेरे डोर है , मेरी प्रभु की ओर
रंग बिरंगी पुतलियाँ, मन को खूब लुभाय
नशा विहीन समाज हो , नाच नाच कह जाय
कठपुतले बन तो गये, पाकर तेरा रंग …
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on August 4, 2014 at 4:00pm — 10 Comments
बीच बाजारे हम खड़े , पाप पुण्य ले साथ
पुण्य डगर मैं बढ़ चलूँ , छोड़यो न प्रभु हाथ
पांडव बलहीन सदा, साथ न हो जब भीम
घर सूना कन्या बिना, अंगना बिना नीम
अंगना में लगाइये, तुलसी पौधा नीम
रोग रहित जीवन सदा, राखत दूर हकीम
व्यसन बुरे सब होत हैं, जानत हैं सब कोय
दूर रहें इनसे सदा , जीवन मंगल होय
दुर्दिन कछु दिन ही भले , मिलता जीवन ज्ञान
मित्र शत्रु और नारी की, हो जाती पहचान
बंधन ऐसा हो प्रभू , टूटे न कभी डोर…
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on August 3, 2014 at 5:00pm — 10 Comments
मुक्ति- बंधन //कुशवाहा //
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पिंजरे में कैद पंछी
निहारता आसमान को
बाहर आने को बेताब
बंधन
अस्वीकार्य
दीवार को पकड
इधर उधर
झांकता
राश्ते की तलाश
आसान नही
मुक्ति/ बंधन
क्रोधित असहाय
चिल्लाता
घायल बदन / घायल आत्मा
छिपता भी तो नहीं
रिसता लहू
गवाह
जंग- ए- आजादी का
खिसियाहट झल्लाहट
बेबसी
फडफडाहट
गति देती
उड़ जाने को
जिंदगी भी तों…
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on August 2, 2014 at 2:45pm — 6 Comments
दोहे // प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा //
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माँ वंदन नित है सदा, किरपा दया निधान
अज्ञानी मै बहुत बड़ा, दे दो मुझको ज्ञान
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क्षीर सागर शयन किये, लक्ष्मी पति हरिनाथ
सुरमुनि यशोगान करें, जोड़े दोनों हाथ
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नवरात्री की अष्टमी , देवी पूजो आय
चरण शरण जगदम्बिका, घर घर बजे बधाय
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आशीष आपको सदा,…
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on August 1, 2014 at 9:17am — 23 Comments
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