For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Featured Blog Posts – August 2013 Archive (10)

ग़ज़ल : रखना ख्याल

रखना ख़याल शह्र का मौसम बदल न जाय

जुल्मत कहीं चराग़ की लौ को निगल न जाय

आमादा तो है नस्लकुशी पर अमीरे शह्र

डरता भी है कि उसका पसीना उबल न जाय

अजदाद से मिला जो…

Continue

Added by Sushil Thakur on August 31, 2013 at 9:39am — 16 Comments

काठ की हांडी

काल के चूल्हे पर

काठ की हांडी

चढ़ाते हो बार बार .

हर बार नयी हांडी

पहचानते नहीं काल चिन्ह को

सीखते नहीं अतीत से .

दिवस के अवसान पर

खो जाते हो

तमस के…

Continue

Added by Neeraj Neer on August 31, 2013 at 9:07am — 26 Comments

हँसते मौसम कभी आते जाते रहे

2 1 2 2   1 2 2 1   2 2 1 2



हँसते मौसम यूँ ही आते जाते रहे

गम के मौसम में हम मुस्कुराते रहे



यादें परछाइयाँ बन गयीं आजकल

हमसफ़र हम उन्हें ही बताते रहे



कल तेरा नाम आया था होंठों पे यूँ

जैसे हम गैर पर हक़ जताते रहे



दिल के ज़ख्मों को वो सिल तो देता मगर

हम ही थे जो उसे आजमाते रहे



तल्ख़ बातें ही अब बन गयीं रहनुमाँ

मीठे किस्से हमें बस रुलाते रहे



चल दिये हैं सफ़र में…

Continue

Added by sanju shabdita on August 24, 2013 at 5:00pm — 25 Comments

सुखद स्मृतियाँ

दुमहले के ऊँचे वातायन से

हलके पदचापों सहित  

चुपके से होती प्रविष्ट

मखमली अंगों में समेट

कर देती निहाल

स्वयं में समाकर एकाकार कर लेती

घुल जाता मेरा अस्तित्व

पानी में रंग की तरह

अम्बर के अलगनी पर

टांग दिए हैं वक्त ने काले मेघ

चन्द्रमा आवृत है , ज्योत्सना बाधित

अस्निग्ध हाड़ जल रहा

सीली लकड़ियों की तरह

स्मृति मञ्जूषा में तह कर रखी हुई हैं

सुखद स्मृतियाँ.....

.. नीरज कुमार…

Continue

Added by Neeraj Neer on August 24, 2013 at 3:30pm — 23 Comments

सावन गीत (राजेश कुमार झा)

सांवरी सुन सांवरी

आई मधुर मधुश्रावणी



नभ मीत हृद पर दामिनी

नव ताल से इठला रही

या दिगंबर को उमा

अपनी झलक दिखला रही



सुन सौरभे, हर-गौर,…

Continue

Added by राजेश 'मृदु' on August 12, 2013 at 4:00pm — 19 Comments

नज़्म - सिगरेट सी ज़िन्दगी

उँगलियों के बीच फँसी

सिगरेट की तरह

कब से सुलग रही है ज़िन्दगी

सैकड़ों ख्वाब हैं,

कश-दर-कश, धुआँ बनकर

भीतर पहुँच रहे हैं..

ज्यादातर का तो

दम ही घुटने लगता हैं

और भाग जाते हैं लौटती साँसों के साथ ।

पर कुछेक हैं,

जो छूट गए हैं भीतर ही कहीं

पड़े हुए हैं चिपक कर, टिककर..

इन दिनों एक-एक कर मैं

उन्हीं ख़्वाबों को

मुकम्मल करने में लगा हूँ.



मिलूँगा फिर कभी

कि अभी ज़रा जल्दी में हूँ

मेरी सिगरेट ख़त्म होने को… Continue

Added by विवेक मिश्र on August 3, 2013 at 3:09pm — 26 Comments

आलेख/ आधुनिकता बनाम पुश्तैनी

             इस आधुनिक और भागमभाग जिंदगी में यदि किसी चीज़ का अकाल पड़ा है तो वो समय है कोई किसी से बिना मतलब मिलना नहीं चाहता यदि आप किसी से मिलना चाहो तो उसके पास टाइम नही है। और मजबूरी वश या अनजाने में यदि मिलना भी पड़ जायें तो मात्र दिखावटी प्यार व चन्द रटी रटाई बातें करने के बाद मौका मिलते ही “आओ ना कभी ” कह कर बात खत्म करने की कोशिश की जाती है और सामने वाला भी तुरन्त आपकी मंशा समझ कर टाइम ही नही मिलता का नपा तुला जवाब देकर इतिश्री कर लेता है। लगता है जैसे एक…

Continue

Added by D P Mathur on August 3, 2013 at 9:23am — 13 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
गीत : फूल चम्पा के सब खो गए

फूल चम्पा के सब खो गए

जब से हम शह्र के हो गए

रात फिर बेसुरी धुन बजाती रही

दोपहर भोर पर मुस्कुराती रही

रतजगों की फसल

काटने के लिए

बीज बेचैनी के बो गए

प्रश्न पत्रों सी लगने लगी जिंदगी

ताका झाकी का मोहताज़ है आदमी

आयेगा एक दिन

जब सुनेंगे यही

लीक पर्चे सभी हो गए

मौल श्री से हैं झरते नहीं फूल अब 

गुलमोहर के तले है न स्कूल अब

अब न अठखेलियाँ

चम्पई उंगलियाँ

स्वप्न आये न फिर जो…

Continue

Added by Rana Pratap Singh on August 1, 2013 at 9:23pm — 36 Comments

बेदर्द मौसम में

तुम्हें रोने की आज़ादी

तुम्हें मिल जाएंगे कंधे

तुम्हें घुट-घुट के जीने का

मुद्दत से तजुर्बा है



तुम्हें खामोश रहकर

बात करना अच्छा आता है

गमों का बोझ आ जाए तो

तुम गाते-गुनगुनाते हो

तुम्हारे गीत सुनकर वो

हिलाते सिर देते दाद...

इन्ही आदत के चलते ये

ज़माना बस तुम्हारा है

कि तुम जी लोगे इसी तरह

ऎसे बेदर्द मौसम में

ऎसे बेशर्म लोगों में.....



इसी तरह की मिट्टी से

बने लोगों की खासखास…

Continue

Added by anwar suhail on August 1, 2013 at 9:00pm — 9 Comments

पावस के कुछ दोहे-

पावस के कुछ दोहे-

तुम तक ले आईं हमें,पकड़ पकड़ कर हाथ

सुधियाँ तो चलतीं गयीं, पुरवाई के साथ.

मैं हूँ तट का बांसवन,तू नादिया की धार

तूफ़ानों ने कर दिए,मिलने के आसार.

सुधियों के उपवन खिले,उस पर बरसा मेह

फागुन फागुन…

Continue

Added by राजेश शर्मा on August 1, 2013 at 9:00pm — 16 Comments

Featured Monthly Archives

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
5 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
5 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
22 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
22 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
22 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
22 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
22 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
22 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
22 hours ago
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दिनेश जी, बहुत धन्यवाद"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service