Added by Rahila on September 22, 2016 at 12:22pm — 14 Comments
वह सात दिन लगातार चलते हुए आखिर अपने घर तक पहुँच ही गयी।लेकिन अपने घास पूस के टपरे में कदम रखने से पहले ही उसकी हिम्मत जबाब दे गयी और वह धम्म में जमीन पर ऐसी गिरी की लाख कोशिशों के बाद भी उठ ना सकी।आज ही के दिन उसके घर वालो ने उसे गैरों के हवाले किया था।पूरे रस्ते वह कितना रोई ।उस जैसी कई थी उस गाड़ी में ,श्यामा भी।
"बस कर गौरा!मत रो.., जब अपनों ने ही अपना नहीं समझा तो किस की जान को रो रही हो।"
"तू बता श्यामा!क्या ये अन्याय नहीं है?जिस उम्र में हमें उन की,अपने घर की, सबसे ज्यादा…
Added by Rahila on September 3, 2016 at 9:35am — 21 Comments
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