कल माँ का श्राद्ध है
पन्द्रहवाँ श्राद्ध
कल उनकी बहु उठेगी
पौ फटते ही पूरा घर करेगी
गंगाजल के पानी से साफ
सुबह सुबह ठंडे गंगाजल मिले पानी से
नहायेगी भी, पहनेगी उनकी दी हुयी साड़ी
जो उसे पसन्द भी नहीं थी...
फिर पूरा घर बुहारेगी
बनायेगी तरह तरह के पकवान
जो भी माँ को पसन्द थे
पूजा में नतमस्तक हो बैठेगी मन लगा कर
अपने हाथों से खिलायेगी
गाय को पूरी खीर
कौओं को हांक लगा कर बुलायेगी छत पर
फिर खिलायेगी छोटे छोटे कौर…
Added by Abha saxena Doonwi on September 20, 2016 at 3:00pm — 13 Comments
अब हृदय में वेदना ही का सृजन है,
भीड़ में कहीं खो गया यह मेरा मन है ।
पतझड़ों सी हर खुशी लुटने लगी है,
सच, बहारों ने उजाड़ा फिर चमन है।
जब बहारों ने किया स्वागत हमारा,
प्रीत-पथ के पांव में कंटक चुभन है।
अब उगेंगे पेड़ जहरीली जमीं पर,
आदमी का विषधरों जैसा चलन है।
ये हवा तूफान की रफ्तार सी है,
इसमें हर मासूम के अरमां दफन हैं।
याद रहता है कहाँ, कोई किसी को,
हालात से है जूझता हर तन और मन है ।…
Added by Abha saxena Doonwi on September 17, 2016 at 10:00am — 9 Comments
दरवाजों पर ताले रखना
चाबी जरा संभाले रखना।
ठंडी होगयी चाय सुबह की
पानी और उबाले रखना।
संसद में घेरेंगे तुझको
तू भी प्रश्न उछाले रखना।
गाँवों का सावन है फीका
नीम पर झूले डाले रखना।
चिडियों की चीं चीं खेतों में
कुछ गौरैयाँ पाले रखना|
दूर ना होना अपनों से तू
रिश्ते सभी संभाले रखना।
...आभा
अप्रकाशित एवं मौलिक
…
ContinueAdded by Abha saxena Doonwi on September 14, 2016 at 1:00pm — 6 Comments
पहाड़ी के बीच
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ऊँची नीची पहाड़ी पगडंडियों में
बल खाती घुमावदार सड़कों के बीच
दिखती है एक चाय की दुकान
यह दुकान होती है
छोटे मोटे मकानों में
किसी भी पगडंडी पर
किसी खोखे जैसी दुकान
उस में चाय भी बनती है
आलू प्याज के बनते हैं पकौड़े भी
यहाँ कभी कभी टहलते हुये
होते हैं लोग इकट्ठा
करतें हैं अपने ऊँची चोटी पर बसे गाँव की बातें
इसी बीच इन्हीं दुकानों पर
वे कर लेते…
ContinueAdded by Abha saxena Doonwi on September 13, 2016 at 11:00pm — 7 Comments
चाँद की शक्ल में आ जाओ सहर होने तक,
ईद हो जाये मेरी आठ पहर होने तक.
तुमको आवाज़ भी देती तो बताओ…
ContinueAdded by Abha saxena Doonwi on September 13, 2016 at 5:00pm — 6 Comments
सवेरे सवेरे.....
आज आटा गूंधते समय
अचानक उठ आये
छोटी उंगली के दर्द ने
याद दिलाया है मुझे
सुबह गुस्से में जो कांच का
गिलास जमीन पर फेंका था तुमने
उसी काँच के गिलास को
उठाते वक्त चुभा था
काँच के गिलास का वह टुकड़ा,मेरी उँगली में
लाल खून भी अब तो
झलकने लगा है उंगली में
सोच रही हूँ
अब कैसे गूंधूंगी आटा
फिर बायें हाथ से ही
समेटने लगी हूँ
उस आधे गुंधे हुये आटे को
तुम्हें क्या मालूम
हर हाल मे ही
सहना…
Added by Abha saxena Doonwi on September 12, 2016 at 3:10pm — 5 Comments
बह्र ~ 1222-1222-122
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन
मतला ...
नहीं ये आँख में आंसू ख़ुशी के
ये आंसू हैं किसी मुफलिस दुखी के
ग़ज़ल कैसे लिखूं मैं लिख न पाती,
नहीं है लफ्ज़ मिलते शायरी के.
नहीं आदत है हमको तीरगी की ,
जियें कैसे बता बिन रौशनी के.
बहुत ग़मगीन हैं दिल की फिज़ायें,
किसे किस्से सुनाएँ बेबसी के.
कहे हमने नहीं अल्फाज दिल के,
गुजर ही जायेंगे दिन जिन्दगी के.
अगर “आभा…
ContinueAdded by Abha saxena Doonwi on September 11, 2016 at 8:30am — 2 Comments
रंग बिरंगे हाइकु
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1.
ग्रीष्म की रुत
सांकल सी खटकी
पीली लू आयी
२.
लिखती रही
रंगीन सा हाइकू
रात भर मैं
३.
सफ़ेद छोने
बर्फ के सिरहाने
फाये रुई के
...आभा
Added by Abha saxena Doonwi on September 10, 2016 at 12:32pm — 3 Comments
चले बराती मेघ के ,गरज तरज के साथ |
ओलों ने नर्तन किये ले हाथों में हाथ |1|
आँखों में जब आ गए अश्रु की तरह मेघ |
रोके से भी न रुके तीव्र है इनका वेग |2|
सूर्य किरण हैं कर रहीं नदिया में किल्लोल |
चमक दमक से हो रहा जीवन भी अनमोल |3|
आभा
अप्रकाशित एवं मौलिक
Added by Abha saxena Doonwi on September 10, 2016 at 8:00am — 5 Comments
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