For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Featured Blog Posts – September 2013 Archive (11)

दोहा -५ प्रेम पीयूष

सुन्दर प्रिय मुख देखकर, खुले लाज के फंद।

नयनों से पीने लगा, भ्रमर भाँति मकरन्द !!१

प्रेम जलधि में डूबता ,खोजे मिले न राह !

विकल हुआ बेसुध हृदय, अंतस कहता आह!!२

प्रेम भरे दो बोल मधु,स्वर कितने अनमोल !

कानों में सबके सदा ,मिश्री देते घोल !!३

रवि के जाते ही यहाँ ,हुई मनोहर रात !

चाँद निखरकर आ गया,मुझसे करने बात !!४

अधर पंखुड़ी से लगें ,गाल कमल के फूल !!

ऐसी प्रिय छवि देखकर, गया स्वयं को…

Continue

Added by ram shiromani pathak on September 30, 2013 at 6:30pm — 32 Comments

ग़ज़ल- सारथी || बहुत चर्चा हमारा हो रहा है ||

बहुत चर्चा हमारा हो रहा है

इशारों में इशारा हो रहा है /१  

लकीरें हाथ की बेकार हैं सब 

समझिये बस गुजारा हो रहा है /२ 

न जाने रूह पर गुजरी है क्या क्या 

बदन का खून खारा हो रहा है /३ 

गगन के तारे क्यूँ जलने लगे हैं

कोई जुगनू सितारा हो रहा है /४  

तुम अपनी धड़कनों को साधे रखना 

तुम्हारा दिल हमारा हो रहा है/५ 
.............................................
बह्र : १२२२ १२२२ १२२ 
*सर्वथा मौलिक व अप्रकाशित 

Added by Saarthi Baidyanath on September 18, 2013 at 6:00pm — 36 Comments

ग़ज़ल:ना जाने हक़ीक़त है वहम है की फ़साना

मंज़िल पे खड़ा हो के सफ़र ढूँढ रहा हूँ

हूँ साए तले फिर भी शजर ढूँढ रहा हूँ

औरों से मफ़र ढूँढूं ये क़िस्मत कहाँ मेरी?

मैं खुद की निगाहों से मफ़र ढूँढ रहा हूँ 

दंगे बलात्कार क़त्ल-ओ-खून ही मिले

अख़बार मे खुशियों की खबर ढूँढ रहा हूँ

शोहरत की किताबों के ज़ख़ायर नही मतलूब

जो दिल को सुकूँ दे वो सतर ढूँढ रहा हूँ

ना जाने हक़ीक़त है वहम है की फ़साना 

वाक़िफ़ नही मंज़िल से मगर ढूँढ रहा हूँ

ये हिंदू का शहर है…

Continue

Added by saalim sheikh on September 18, 2013 at 5:32pm — 14 Comments

ग़ज़ल

1 2 1 2 / 2 2 1 2 / 1 2 1 2 / 2 2 1 

 

न रंज करना ठीक है, न तंज करना ठीक 

जो दौर बीता उससे यूँ, न फिर गुज़रना ठीक.

 

कि आखिरी सच मौत, इससे क्यों हमें हो खौफ़

यूँ डर के इससे हर घड़ी, न रोज़ मरना ठीक .

 

हर्फे आखिरी है जो खुदा ने लिख भेजा किस्मत में,

बने जो आका फिरते, उनसे क्यों हुआ ये डरना ठीक.

 

कोशिश ही बस में तेरे, खुदा के हाथ अंजाम, 

भला लगे तो अच्छा है, बुरा भी वरना ठीक. 

 

लाजिम है वज़न बात…

Continue

Added by shalini rastogi on September 18, 2013 at 5:30pm — 20 Comments

अनुभव

अनुभव

 

 

आज फिर दिन क्यूँ चढ़ा डरा-डरा-सा

ओढ़  कर काला  लिबास  उदासी  का ?

 

घटना ? कैसी घटना ?

कुछ भी तो नहीं घटा

पर लगता  है  ...   अभी-अभी अचानक

आकाश अपनी प्रस्तर सीमायों को तोड़

शीशे-सा  चिटक  गया,

बादल गरजे, बहुत गरजे,

बरस न पाये,

दर्द  उनका .. उनका  रहा ।

सूखी प्यासी धरती, यहाँ-वहाँ फटी,

ज़ख़मों की दरारें .....   दूर-दूर तक

 

घटना ?  .... कैसी घटना…

Continue

Added by vijay nikore on September 17, 2013 at 12:00pm — 22 Comments

कौन रोता है , यहाँ?

अर्द्ध रजनी है , तमस गहन है,

आलस्य घुला है, नींद सघन है.

प्रजा बेखबर,  सत्ता मदहोश है,

विस्मृति का आलम, हर कोई बेहोश है.

ऐसे में कौन रोता है , यहाँ?

 

रंगशाला रौशन है, संगीत है, नृत्य है,

फैला चहुँओर ये कैसा अपकृत्य है.

जो चाकर है, वही स्वामी है

जो स्वामी है, वही भृत्य है .

ऐसे में कौन रोता है , यहाँ?

 

बिसात बिछी सियासी चौसर की

शकुनी के हाथों फिर पासा है .

अंधे, दुर्बल के हाथों सत्ता…

Continue

Added by Neeraj Neer on September 15, 2013 at 4:30pm — 16 Comments

एक शाम --( कविता )

एक शाम

उदास सी थी

निस्तेज , निशब्द , निस्पंदित

निहारती सी

दूर तलक शून्य मे।  

कर्तव्य विहीन, कर्म विहीन

अचेतन जड़ हो गए जो

पुकारती सी

दूर तलक शून्य मे ।

नेपथ्य से कुछ सरसराहट

वैचारिक या मौन

विजयी पर प्रसन्न नहीं

श्रोता सी

दूर तलक शून्य मे ।

अन्तर्मन के क्रंदन को

छिपा मुख मण्डल पर खेलती जो

अलौकिक आभा थी

दूर तलक शून्य मे ............... ।  

 

 

अप्रकाशित…

Continue

Added by annapurna bajpai on September 13, 2013 at 5:39pm — 26 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
जो ख़्वाबों में बसा लूँ तो .......(गज़ल) //डॉ० प्राची

१२२२...१२२२ 

नज़र दर पर झुका लूँ तो 

मुहब्बत आज़मा लूँ तो 

तेरी नज़रों में चाहत का 

समन्दर मैं भी पा लूँ तो 

बदल डालूँ मुकद्दर भी 

अगर खतरा उठा लूँ तो 

सियह आरेख हाथों का 

तेरे रंग में छुपा लूँ तो 

तेरी गुम सी हर इक आहट 

जो ख़्वाबों में बसा लूँ तो 

तुम्हारे संग जी लूँ मैं  

अगर कुछ पल चुरा लूँ तो 

न कर मद्धम सी भी हलचल 

मैं साँसों को…

Continue

Added by Dr.Prachi Singh on September 13, 2013 at 9:30am — 55 Comments

ग़ज़ल - इल्म की रोशनी नहीं होती !

ग़ज़ल –

२१२२   १२१२   २२

इल्म की रोशनी नहीं होती ,

ज़िन्दगी ज़िन्दगी नहीं होती |

 

एक कोना दिया है बच्चों ने ,

और कुछ बेबसी नहीं होती |

 

रंग आये कि सेवई आये ,

तनहा कोई ख़ुशी नहीं होती |

 

दिल के टूटे से शोर होता है ,

ख़ामुशी ख़ामुशी नहीं होती |

 

सारे चेहरे छुपे मुखौटों में ,

दिल में भी सादगी नहीं होती |

 

माँ के आँचल से दूर हैं बच्चे ,

बाप से बंदगी नहीं होती…

Continue

Added by Abhinav Arun on September 13, 2013 at 5:30am — 44 Comments

एक कोमल एहसास

याद है !!

जब तुम्हारा जन्म हुआ था

एक नर्म तौलिये में लपेट

मुझे तुम्हारी एक

झलक दिखलाई थी

तुम्हे देखते ही

भूल गयी थी दर्द सारा

खों गयी थी

गुलाब की पंखुड़ियों जैसी सूरत में

कितना प्यारा था स्पर्श तुम्हारा

नर्म

बिलकुल रुई के फाहों जैसा

खुश थी छू के तुम्हे



तुम मद मस्त नींद में

लग रहा था

लम्बा सफ़र तय किया है तुमने

कितने दिनों के थके हो जैसे

 

जब तुमने

आँखें खोली पहली बार

इस नयी दुनिया को देखने की…

Continue

Added by Meena Pathak on September 5, 2013 at 8:27pm — 47 Comments

Featured Monthly Archives

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
6 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
6 hours ago
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
9 hours ago
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
9 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दिनेश जी, बहुत धन्यवाद"
9 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम जी, बहुत धन्यवाद"
9 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम जी सादर नमस्कार। हौसला बढ़ाने हेतु आपका बहुत बहुत शुक्रियः"
9 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service