For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Sanjiv verma 'salil''s Blog – October 2010 Archive (16)

मुक्तिका: यादों का दीप -- संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:



यादों का दीप



संजीव 'सलिल'

*

हर स्मृति मन-मंदिर में यादों का दीप जलाती है.

पीर बिछुड़ने से उपजी जो उसे तनिक सहलाती है..



'आता हूँ' कह चला गया जो फिर न कभी भी आने को.

आये न आये, बात अजाने, उसको ले ही आती है..



सजल नयन हो, वाणी नम हो, कंठ रुद्ध हो जाता है.

भाव भंगिमा हर, उससे नैकट्य मात्र दिखलाती है..



आनी-जानी है दुनिया कोई न हमेशा साथ रहे.

फिर भी ''साथ सदा होंगे'' कह यह दुनिया भरमाती है..



दीप… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on October 28, 2010 at 10:08am — 2 Comments

मुक्तिका: सदय हुए घन श्याम -- संजीव 'सलिल'

मुक्तिका





सदय हुए घन श्याम





संजीव 'सलिल'

*

सदय हुए घन-श्याम सलिल के भाग जगे.

तपती धरती तृप्त हुई, अनुराग पगे..



बेहतर कमतर बदतर किसको कौन कहे.

दिल की दुनिया में ना नाहक आग लगे..



किसको मानें गैर, पराया कहें किसे?

भोंक पीठ में छुरा, कह रहे त्याग सगे..



विमल वसन में मलिन मनस जननायक है.

न्याय तुला को थाम तौल सच, काग ठगे..



चाँद जुलाहे ने नभ की चादर बुनकर.

तारों के सलमे चुप रह बेदाग़… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on October 28, 2010 at 10:06am — 1 Comment

मुक्तिका: आँख में संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:



आँख में



संजीव 'सलिल'

*

जलती, बुझती न, पलती अगन आँख में.

सह न पाता है मन क्यों तपन आँख में ??



राम का राज लाना है कहते सभी.

दीन की कोई देखे मरन आँख में..



सूरमा हो बड़े, सारे जग से लड़े.

सह न पाए तनिक सी चुभन आँख में..



रूप ऊषा का निर्मल कमलवत खिला

मुग्ध सूरज हुआ ले किरन आँख में..



मौन कैसे रहें?, अनकहे भी कहें-

बस गये हैं नयन के नयन आँख में..



ढाई आखर की अँजुरी लिये दिल… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on October 25, 2010 at 9:34am — 1 Comment

नवगीत: नफरत पाते रहे प्यार कर ----- संजीव 'सलिल'

नवगीत:



नफरत पाते रहे प्यार कर



संजीव 'सलिल'

*

हर मर्यादा तार-तार कर

जीती बाजी हार-हार कर.

सबक न कुछ भी सीखे हमने-

नफरत पाते रहे प्यार कर.....

*

मूल्य सनातन सच कहते

पर कोई न माने.

जान रहे सच लेकिन

बनते हैं अनजाने.

अपने ही अपनापन तज

क्यों हैं बेगाने?

मनमानी करने की जिद

क्यों मन में ठाने?

छुरा पीठ में मार-मार कर

रोता निज खुशियाँ उधार कर......

*

सेनायें लड़वा-मरवा

क्या चाहे… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on October 22, 2010 at 1:30am — 4 Comments

दोहा सलिला: जिज्ञासा ही धर्म है -------संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला:



जिज्ञासा ही धर्म है



संजीव 'सलिल'

*

धर्म बताता है यही, निराकार है ईश.

सुनते अनहद नाद हैं, ऋषि, मुनि, संत, महीश..



मोहक अनहद नाद यह, कहा गया ओंकार.

सघन हुए ध्वनि कण, हुआ रव में भव संचार..



चित्र गुप्त था नाद का. कण बन हो साकार.

परम पिता ने किया निज, लीला का विस्तार..



अजर अमर अक्षर यही, 'ॐ' करें जो जाप.

ध्वनि से ही इस सृष्टि में, जाता पल में व्याप..



'ॐ' बना कण फिर हुए, ऊर्जा के… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on October 18, 2010 at 11:30pm — 1 Comment

विशेष लेख- भारत में उर्दू : संजीव 'सलिल'

विशेष लेख-



भारत में उर्दू :





संजीव 'सलिल'



*



भारत विभिन्न भाषाओँ का देश है जिनमें से एक उर्दू भी है. मुग़ल फौजों द्वारा आक्रमण में विजय पाने के बाद स्थानीय लोगों के कुचलने के लिये उनके संस्कार, आचार, विचार, भाषा तथा धर्म को नष्ट कर प्रचलित के सर्वथा विपरीत बलात लादा गया तथा अस्वीकारने पर सीधे मौत के घाट उतारा गया ताकि भारतवासियों का मनोबल समाप्त हो जाए और वे आक्रान्ताओं का प्रतिरोध न करें. यह एक ऐतिहासिक सत्य है जिसे कोई झुठला नहीं सकता. पराजित… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on October 18, 2010 at 9:56am — 3 Comments

चंद अश'आर: तितलियाँ --- संजीव 'सलिल'

तितलियाँ



तितलियाँ जां निसार कर देंगीं.

हम चराग-ए-रौशनी तो बन जाएँ..

*

तितलियों की चाह में दौड़ो न तुम.

फूल बन महको तो खुद आयेंगी ये..

*

तितलियों को देख भँवरे ने कहा.

भटकतीं दर-दर, न क्यों एक घर रहीं?



कहा तितली ने मिले सब दिल जले.

कौन है ऐसा जिसे पा दिल खिले?.

*

पिता के आँगन में खेलीं तितलियाँ.

गयीं तो बगिया उजड़ सूनी हुई..

*

बागवां के गले लगकर तितलियाँ.

बिदा होते हँसीं, चुप हो, रो… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on October 15, 2010 at 4:00pm — 2 Comments

लघुकथा: मोहनभोग -संजीव वर्मा 'सलिल'

लघुकथा: मोहनभोग

-संजीव वर्मा 'सलिल'

*

*

'हे प्रभु! क्षमा करना, आज मैं आपके लिये भोग नहीं ला पाया. मजबूरी में खाली हाथों पूजा करना पड़ रही है.



' किसी भक्त का कातर स्वर सुनकर मैंने पीछे मुड़कर देखा.



अरे! ये तो वही सज्जन हैं जिन्होंने सवेरे मेरे साथ ही मिष्ठान्न भंडार से भोग के लिये मिठाई ली थी फिर...?



मुझसे न रहा गया, पूछ बैठा: ''भाई जी! आज सवेरे हमने साथ-साथ ही भगवान के भोग के लिये मिष्ठान्न लिया था न? फिर आप खाली हाथ कैसे? वह मिठाई क्या… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on October 11, 2010 at 6:30pm — 3 Comments

जनक छंदी मुक्तिका: सत-शिव-सुन्दर सृजन कर ------- संजीव 'सलिल'

जनक छंदी मुक्तिका:



सत-शिव-सुन्दर सृजन कर



संजीव 'सलिल'



*

*



सत-शिव-सुन्दर सृजन कर,



नयन मूँद कर भजन कर-



आज न कल, मन जनम भर.







कौन यहाँ अक्षर-अजर?



कौन कभी होता अमर?



कोई नहीं, तो क्यों समर?





किन्तु परन्तु अगर-मगर,



लेकिन यदि- संकल्प कर



भुला चला चल डगर पर.





तुझ पर किसका क्या असर?



तेरी किस पर क्यों नज़र?



अलग-अलग जब… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on October 11, 2010 at 5:55pm — 1 Comment

हाइकु मुक्तिका: जग माटी का... संजीव 'सलिल'

हाइकु मुक्तिका:



संजीव 'सलिल'

*

*

जग माटी का / एक खिलौना, फेंका / बिखरा-खोया.



फल सबने / चाहे पापों को नहीं / किसी ने ढोया.

*

गठरी लादे / संबंधों-अनुबंधों / की, थक-हारा.



मैं ढोता, चुप / रहा- किसी ने नहीं / मुझे क्यों ढोया?

*

करें भरोसा / किस पर कितना, / कौन बताये?



लूटे कलियाँ / बेरहमी से माली / भंवरा रोया..

*

राह किसी की / कहाँ देखता वक्त / नहीं रुकता.



साथ उसी का / देता चलता सदा / नहीं जो… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on October 10, 2010 at 2:39pm — 6 Comments

मुक्तिका... क्यों है? ------- संजीव 'सलिल'

मुक्तिका...



क्यों है?



संजीव 'सलिल'

*

रूह पहने हुए ये हाड़ का पिंजर क्यों है?

रूह सूरी है तो ये जिस्म कलिंजर क्यों है??



थी तो ज़रखेज़ ज़मीं, हमने ही बम पटके हैं.

और अब पूछते हैं ये ज़मीं बंजर क्यों है??



गले मिलने की है ख्वाहिश, ये संदेसा भेजा.

आये तो हाथ में दाबा हुआ खंजर क्यों है??



नाम से लगते रहे नेता शरीफों जैसे.

काम से वो कभी उड़िया, कभी कंजर क्यों है??



उसने बख्शी थी हमें हँसती हुई जो धरती.

आज… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on October 9, 2010 at 9:00am — 3 Comments

मुक्तिका: वह रच रहा... संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:



वह रच रहा...



संजीव 'सलिल'

*

वह रच रहा है दुनिया, रखता रहा नजर है.

कहता है बाखबर पर इंसान बेखबर है..



बरसात बिना प्यासा, बरसात हो तो डूबे.

सूखे न नेह नदिया, दिल ही दिलों का घर है..



झगड़े की तीन वज़हें, काफी न हमको लगतीं.

अनगिन खुए, लड़े बिन होती नहीं गुजर है..



कुछ पल की ज़िंदगी में सपने हजार देखे-

अपने न रहे अपने, हर गैर हमसफर है..



महलों ने चुप समेटा, कुटियों ने चुप लुटाया.

आखिर में सबका… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on October 9, 2010 at 8:57am — 2 Comments

आदि शक्ति वंदना संजीव वर्मा 'सलिल'

आदि शक्ति वंदना





संजीव वर्मा 'सलिल'



*



आदि शक्ति जगदम्बिके, विनत नवाऊँ शीश.



रमा-शारदा हों सदय, करें कृपा जगदीश....



*



पराप्रकृति जगदम्बे मैया, विनय करो स्वीकार.



चरण-शरण शिशु, शुभाशीष दे, करो मातु उद्धार.....



*



अनुपम-अद्भुत रूप, दिव्य छवि, दर्शन कर जग धन्य.



कंकर से शंकर रचतीं माँ!, तुम सा कोई न अन्य..







परापरा, अणिमा-गरिमा, तुम ऋद्धि-सिद्धि शत… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on October 8, 2010 at 5:30pm — 3 Comments

सूरज से आँख मिलाता ''चिराग'' और काल के गाल पर आँसू ढुलकाती उसकी गज़लें

सूरज से आँख मिलाता ''चिराग'' और काल के गाल पर आँसू ढुलकाती उसकी गज़लें



सौजन्य से : रविकान्त<अनमोलसाब@जीमेल.कॉम>, संजीवसलिल@जीमेलॅ.कॉम



कहते हैं उसके यहाँ देर है अंधेर नहीं. काश यह सच हो. ३४ वर्षीय जवान, संभावनाओं से भरे शायर शशिभूषण ''चिराग'' का चला जाना उसके निजाम की अंधेरगर्दी की तरफ इशारा है. पूछने का मन है ''बना के क्यों बिगाड़ा रे, बिगाड़ा रे नसीबा, ऊपरवाले... ओ ऊपरवाले.'' बकौल श्री रविकान्त 'अनमोल': '' 'चिराग़' जैसा संभावनाओं का शाइर ३४ वर्ष की छोटी आयु में चला… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on October 5, 2010 at 12:00am — 1 Comment

विशेष लेख: देश का दुर्भाग्य : ४००० अभियंता बाबू बनने की राह पर -: अभियंता संजीव वर्मा 'सलिल' :-

विशेष लेख:



देश का दुर्भाग्य : ४००० अभियंता बाबू बनने की राह पर



रोम जल रहा... नीरो बाँसुरी बजाता रहा...



-: अभियंता संजीव वर्मा 'सलिल' :-



किसी देश का नव निर्माण करने में अभियंताओं से अधिक महत्वपूर्ण भूमिका और किसी की नहीं हो सकती. भारत का दुर्भाग्य है कि यह देश प्रशासकों और नेताओं से संचालित है जिनकी दृष्टि में अभियंता की कीमत उपयोग कर फेंक दिए जानेवाले सामान से भी कम है. स्वाधीनता के पूर्व अंग्रेजों ने अभियंता को सर्वोच्च सम्मान देते हुए उन्हें… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on October 4, 2010 at 8:31pm — 3 Comments

सामयिक कविता: फेर समय का........ संजीव 'सलिल'

सामयिक कविता:



फेर समय का........



संजीव 'सलिल'

*

फेर समय का ईश्वर को भी बना गया- देखो फरियादी.

फेर समय का मनुज कर रहा निज घर की खुद ही बर्बादी..

फेर समय का आशंका, भय, डर सारे भारत पर हावी.

फेर समय का चैन मिला जब सुना फैसला, हुई मुनादी..



फेर समय का कोई न जीता और न हारा कोई यहाँ पर.

फेर समय का वहीं रहेंगे राम, रहे हैं अभी जहाँ पर..

फेर समय का ढाँचा टूटा, अब न दुबारा बन पायेगा.

फेर समय का न्यायालय से खुश न कोई भी रह… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on October 1, 2010 at 12:43am — 2 Comments

Monthly Archives

2013

2012

2011

2010

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted blog posts
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service