'आत्मा' का वजन सिर्फ 21 ग्राम !
इंसानी आत्मा का वजन कितना होता है?
इस सवाल का जवाब तलाशने के लिये 10 अप्रैल 1901 को अमेरिका के…
Added by sanjiv verma 'salil' on October 21, 2012 at 8:45am — 7 Comments
कजरी गीत:
गौरा वंदना
संजीव 'सलिल'
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गौरा! गौरा!! मनुआ मानत नाहीं, दरसन दै दो रे गौरा!
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गौरा! गौरा!! तुम बिन सूना है घर, मत तरसाओ रे गौरा!
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गौरा! गौरा!! बिछ गये पलक पाँवड़े, चरण बढ़ाओ रे गौरा!
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गौरा! गौरा!! पीढ़ा-आसन सज गए, आओ बिराजो रे गौरा!
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गौरा! गौरा!! पूजन-पाठ न जानूं, भगति-भाव दो रे गौरा!
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गौरा! गौरा!! कुल-सुहाग की बिपदा, पल में टारो रे गौरा!
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गौरा! गौरा!! धरती माँ की कैयाँ हरी-भरी हो रे गौरा!…
Added by sanjiv verma 'salil' on October 18, 2012 at 11:00am — 1 Comment
लेख:
हमारे सोलह संस्कार
संजीव 'सलिल'
*
अर्थ:
'संस्कारो हि नाम संस्कार्यस्य गुणकानेन, दोषपनयेन वा' अर्थात गुणों के उत्कर्ष तथा दोषों के अपकर्ष की विधि ही संस्कार है।
शंकराचार्य के ब्रम्ह्सूत्र के अनुसार किसी वस्तु, पदार्थ या आकृति में गुण, सौंदर्य, खूबियों को आरोपित करना / बढ़ाना तथा उसकी त्रुटियों, कमियों, दोषों को हटाने / मिटने का नाम संस्कार है।
संस्कृत भाषा में प्रयुक्त क्रिया (धातु) 'कृ' के पूर्व सम उपसर्ग तथा पश्चात् 'आर' कृदंत के संयोग से बने इस शब्द…
Added by sanjiv verma 'salil' on October 16, 2012 at 10:09pm — 1 Comment
दोहा सलिला:
सूत्र सफलता का सरल
संजीव 'सलिल'
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सूत्र सफलता का सरल, रखें हमेशा ध्यान।
तत्ल-मेल सबसे रखें, छू लें नील वितान।।
*
सही समन्वय से बने, समरस जीवन राह।
सुख-दुःख मिलकर बाँट लें, खुशियाँ मिलें अथाह।।
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रहे समायोजन तभी, महके जीवन-बाग़।
आपस में सहयोग से,…
Added by sanjiv verma 'salil' on October 15, 2012 at 8:00pm — 6 Comments
मानव मणि:
नर से नारायण - स्वामी विवेकानंद
संजीव 'सलिल'
*
'उत्तिष्ठ, जागृत, प्राप्य वरान्निबोधत।'
'उठो, जागो और अपना लक्ष्य प्राप्त करो।'
'निर्बलता के व्यामोह को दूर करो, वास्तव में कोई दुर्बल नहीं है। आत्मा अनंत, सर्वशक्ति संपन्न और सर्वज्ञ है। उठो! अपने वास्तविक रूप को जानो…
Added by sanjiv verma 'salil' on October 14, 2012 at 4:51pm — 4 Comments
मुक्तिका;
बेवफा से ...
संजीव 'सलिल'
*
बेवफा से दिल लगा के, बावफा गाफिल हुआ।
अधर की लाली रहा था, गाल का अब तिल हुआ।।
तोड़ता था बेरहम अब, टूटकर चुपचाप है।
हाय रे! आशिक 'सलिल', माशूक का क्यों दिल हुआ?
कद्रदां दुनिया थी जब तक नाश्ते की प्लेट था।
फेर लीं नजरों ने नजरें, टिप न दी, जब बिल हुआ।।
हँसे खिलखिल यही सपना साथ मिल देखा मगर-
ख्वाब था दिलकश, हुई ताबीर तो किलकिल हुआ।।
'सलिल' ने माना था भँवरों को कँवल का मीत पर-
संगदिल…
Added by sanjiv verma 'salil' on October 11, 2012 at 7:59pm — 8 Comments
शब्द-तर्पण:
माँ-पापा
संजीव 'सलिल'
*
माँ थीं आँचल, लोरी, गोदी, कंधा-उँगली थे पापाजी.
माँ थीं मंजन, दूध-कलेवा, स्नान-ध्यान, पूजन पापाजी..
*
माँ अक्षर, पापा थे पुस्तक, माँ रामायण, पापा गीता.
धूप सूर्य, चाँदनी चाँद, चौपाई माँ, दोहा पापाजी..
*
बाती-दीपक, भजन-आरती, तुलसी-चौरा, परछी आँगन.
कथ्य-बिम्ब, रस-भाव, छंद-लय, सुर-सरगम थे माँ-पापाजी..
*
माँ ममता, पापा अनुशासन, श्वास-आस, सुख-हर्ष अनूठे.
नाद-थाप से, दिल-दिमाग से, माँ छाया तरु थे…
Added by sanjiv verma 'salil' on October 6, 2012 at 3:01pm — 9 Comments
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