2 2 2 2 2 2 2
-.-
पन्नो में घुल जाती हूँ
स्याही सी बह जाती हूँ
.
नाता बस मन से मेरा
भावो को कह जाती हूँ
.
जानूँ न* मैं छंद पिरोना
मन की तह बताती हूँ
.
न सुर है न लय सलीका
पाबन्दी तज जाती हूँ
.
खिलती भी हूँ सावन सी
पतझड़ सी झड़ जाती हूँ
.
सजा कर खुद को फिर से
पन्नो पर सज जाती हूँ
-.-
"मौलिक व अप्रकाशित"
Added by अलका 'कृष्णांशी' on October 23, 2016 at 9:02pm — 13 Comments
एक प्रयास
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कान्हा की मैत्री मेरा मान हुई
तुमसे जुड़ा जो नाता मेरी शान हुई
इसे जोड़ा है गिरधर ने बड़े प्रेम से
हमारी खुशियां ही मुरली की तान हुई
मैं उलझी थी शब्दो की उलझन में
तुम्हारी ख़ामोशी तुम्हारा पयाम हुई
धूप में बादल से तुम, अंधेरों में किरण सी मैं
तुम्हारी बाहें हर तूफ़ां में मेरी मचान हुई
कई दांव देखे है रिश्तों के हमने
निष्ठा हमारी लोबान हुई
बीते बरस इम्तहानों के जैसे…
ContinueAdded by अलका 'कृष्णांशी' on October 14, 2016 at 4:03pm — 6 Comments
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