मापनी २१२२ २१२२ २१२२ २१२२
आदमी गुम हो गया है आज ईंटों पत्थरों में
है कहाँ परिवार वो जो पल्लवित था छप्परों में
हँसते-हँसते जान दे दी दौर वो कुछ और ही था
ढूँढना इंसानियत भी अब कठिन है खद्दरों में
आपने हमको सुनाया गीत के मुखड़े में’ दम है…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on October 26, 2018 at 1:00pm — 15 Comments
© बसंत कुमार शर्मा
मापनी - १२२२ १२२२ १२२२ १२२२ १२२२
सदा देता, न लेता कुछ, बुरी नजरों से ताड़ो मत
शजर है घर परिंदों का, उसे तुम यूँ उजाड़ो मत
बड़ी उम्मीद होगी, मगर कुछ भी न पाओगे
सयानी है बहुत जनता, यूँ मंचों पर दहाड़ो…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on October 12, 2018 at 5:27pm — 16 Comments
मापनी - २१२२ २१२२ २१२२ २१२
चुपके’ चुपके रात में यूँ आता’ जाता कौन है
रोज आकर ख्वाब में नींदें उड़ाता कौन है
था मुझे विश्वास जिस पर दे गया धोखा वही
एक आशा फिर नई दिल में जगाता कौन है
घाव मुझको ज़िन्दगी से कुछ मिले तो हैं, मगर…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on October 9, 2018 at 9:35am — 15 Comments
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