नक्कारों में
गूंज रही फिर
तूती की आवाज
नहीं जागना
आज पहरूए
खुल जाएगा राज
लाचार कदम
बेबस जनता के
होते ही
कितने हाथ
आधे को
जूठी पत्तल है
आधे को
नहीं भात
अकदम सकदम
जरठ मेठ है
और भीरू
युवराज
भव्य राजपथ
हींस रहे हैं
सौ-सौ गर्धवराज
आओ खेलें
सत्ता-सत्ता
जी भर खेलें
फाग
झूम-झूम कर
आज पढ़ेंगें
सारी गीता
नाग
जाओ
इस नमकीन शहर से
तूती अपने…
Added by राजेश 'मृदु' on November 26, 2012 at 12:30pm — 2 Comments
Added by राजेश 'मृदु' on November 23, 2012 at 1:30pm — 12 Comments
कितना कुछ सुलगा बुझा, तेरे-मेरे बीच
ख्वाबों में भी हम मिले, अपने जबड़े भींच
कैसे फूलों में लगी, ऐसी भीषण आग
कोयल तो जलकर मरी, शेष बचे बस नाग
जबसे तुम प्रियतम गए, गूंगा है आकाश
तृन-टुनगों पर हैं पड़े, अरमानों की लाश
बिखरा-बिखरा दिन ढला, सूनी-सूनी शाम
तारों पर लिखता रहा, चंदा तेरा नाम
तुम बिन कविता क्या लिखूं, दोहा, रोला, छंद
भाव चुराते शब्द हैं, लय भी कुंठित, मंद
Added by राजेश 'मृदु' on November 5, 2012 at 12:46pm — 7 Comments
मूक हो गई
रांगा माटी
नीरव नभ
अनुनाद
रम्य तपोवन
गुमशुम-गुमशुम
झर गए पारिजात
कासर घंटे
ढाक सोचते
ढूंढ रहे
वह नाद
भरे-भरे मन
प्राण समेटे
भींगे सारी रात
कमल-कुमुदिनी
मौन मुखर हैं
कहां भ्रमर
कहां दाद
पंकिल पथ पर
हवा पूछती
कैसे ये संघात
जाओ अपने
देश को पाती
यह पता
कहां आबाद
अपनी…
ContinueAdded by राजेश 'मृदु' on November 2, 2012 at 1:28pm — 3 Comments
नीला नभ
फिर निखर गया
लौट चले
बादल के यूप
कच्चे गुड़ की
गंध समेटे
नाच रही
मायावी धूप
खिलखिल करती
कास की पंगत
कासर घंटे
अगरू धूप
फुदक रही
फिर से गौरैया
माटी सोना
चांदी धूप
Added by राजेश 'मृदु' on November 1, 2012 at 5:00pm — No Comments
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