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Ram shiromani pathak's Blog – November 2013 Archive (5)

दोहा-१०(विविधा)

व्यर्थ प्रपंचन छोड़कर,मीठी वाणी बोल! 

कर तू खुद ही न्याय अब,अंतर के पट खोल !!



धुआँ धुआँ चहुँ ओर है,घिरी अँधेरी रात !

जुगनूँ फिर भी कर रहा,उजियारे की बात !!



लोगों को क्या हो गया,करते उल्टी बात !

कहें रात को दिवस अब ,और दिवस को रात !!



शब्दों के सामर्थ्य का, ऐसा हो अध्याय।

चले लेखनी आपकी, लिखे न्याय ही न्याय॥



नीति नियम दिखते नहीं ,भ्रष्ट हुए सब तंत्र !

जिसे देखिये रट रहा ,लोलुपता का…

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Added by ram shiromani pathak on November 26, 2013 at 11:30pm — 28 Comments

दोहा- 9 (प्रेम पियूष)

पूर्ण चाँदनी रात है, अगणित तारे संग !

अब विलम्ब क्यों है प्रिये , छेड़ें प्रेम प्रसंग!!

कनक बदन पर कंचुकी ,सुन्दर रूप अनूप !

वाणी में माधुर्य ज्यों , सरदी में प्रिय धूप !!

अद्भुत क्षण मेरे लिए,जब आये मनमीत !

ह्रदय बना वीणा सरस ,गाता है मन गीत !!

प्रेम न देखे जाति को ,सच कहता हूँ यार !

यह तो सुमन सुगंध सम ,इसका सहज प्रसार !!

विरह सिंधु में डूबता ,खोजे मिले न राह !

विकल हुआ अब ताकता,मन का बंदरगाह…

Continue

Added by ram shiromani pathak on November 20, 2013 at 11:30pm — 31 Comments

सवैया(मत्तगयन्द )

चाल बड़ी मनमोहक लागत, खेलत खात फिरै इतरावै !

लाल कपोल लगे उसके अरु ,होंठ कली जइसे मुसकावै !!

भाग रहा नवनीत लिये जब, मात पुकारत पास बुलावै !

नेह भरे अपने कर से फिर ,लाल दुलारत जात खिलावै !!

****************************************************** 

राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित

Added by ram shiromani pathak on November 10, 2013 at 1:30pm — 28 Comments

क्षणिकाएं-4

१-डर

भयातुर आँखें

शक की नज़रों से देखती सबको

विसंगतियों और क्रूरताओं से भरा यह समाज

कब क्या कर बैठे किसे पता



२-सत्य

जीवन एक तहखाना है

हम सब कैदी

जो ईश्वर से प्यार नहीं करता

वह बार बार यहाँ पटक दिया जाता है

और जो ईश्वर से प्यार करता है

वह हमेसा के लिए मुक्त हो जाता है

३-रहस्य

ये कैसा रहस्य है

सारी उन्मनता.

सारी व्यग्रता

सारी म्लानता

तुम्हारे नेह की तरलता…

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Added by ram shiromani pathak on November 5, 2013 at 10:22pm — 21 Comments

दोहे-८ (दीपावली)

ज्योतिपर्व की रात में ,करो तिमिर का नाश!

सच ही जीता है सदा ,ऐसा हो विश्वास !!

शांतिदीप घर घर जले ,समय तभी अनुकूल !

आपस में सौहार्द हो,कटुता जाओ भूल !!

ज्योतिपर्व की रात में ,तुम्हे समर्पित तात !

जीवन यूँ जगमग रहे ,दीपों की सौगात!!

मन में शुभ संकल्प लो,हाँथो में ले दीप !

अंतस का कल्मष छटे ,मन का आँगन लीप !!

मन का अँधियारा छटे,कटे दम्भ का जाल !

पहनाओ कुछ इस तरह ,दीपों की इक माल !!

ज्योतिपर्व…

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Added by ram shiromani pathak on November 3, 2013 at 11:30am — 26 Comments

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