किसी सोच में कभी डूब के जो लिखा न हो औ कहा न हो
वो ग़ज़ल है क्या और वो गीत क्या किसी दिल को जिसने छुआ न हो
मेरी शाईरी में है जो निहाँ मेरे हर्फ़ में वो रवाँ रवाँ
मेरी है दुआ उसी रब से के कहूँ जब मैं कोई खफा न हो
ज़रा पूछिए किसी आदमी से छुआ है कैसे ये आसमाँ
क्या सफ़र में फर्श से अर्श के कोई है वो जो कि गिरा न हो
कहे माँ कहीं मिलें गर्दिशें तो खुदा दिखाता है रास्ता
इसी मोड़ पर मेरे वास्ते वो चराग ले के खडा न…
ContinueAdded by SANDEEP KUMAR PATEL on November 30, 2013 at 4:00pm — 20 Comments
बात सच जो लबे खुद्दार में आ जाती है
मैं ये सोचे हूँ क्यूँ बेकार में आ जाती है
सारा दिन खेलती है साथ में बच्चों के जो
उनके सोते ही वो बाज़ार में आ जाती है
हर दफा सुन के चुनावी औ सियासी बातें
याँ चमक सूरते बीमार में आ जाती है
गालियाँ भीड़ को दे यार से भी लड़ मर ले
कैसे हिम्मत किसी मैख्वार में आ जाती है
रोते चेहरों को हँसाना ही जिन्हें है भाता
रूह उन जैसी भी संसार में आ जाती…
ContinueAdded by SANDEEP KUMAR PATEL on November 26, 2013 at 11:56am — 17 Comments
रिश्ते यहाँ लहू के सिमटने लगे हैं अब
माँ बाप भाई भाई में बँटने लगे हैं अब
लो आज चल दिया है वो बाज़ार की तरफ
सब्जी के दाम लगता है घटने लगे हैं अब
वो प्यार से गुलाब हमें बोल क्या गए
यादों के खार तन से लिपटने लगे हैं अब
बदले हुए निजाम की तारीफ क्या करें
याँ शेर पे सियार झपटने लगे हैं अब
नेताओं की सुहबत का असर उनपे देखिये
देकर जबान वो भी पलटने लगे हैं अब
मशरूफ “दीप” सब हैं क्या…
ContinueAdded by SANDEEP KUMAR PATEL on November 24, 2013 at 9:07pm — 13 Comments
वो अपने यार को छलने के बाद आते हैं
दिलों में दर्द उभरने के बाद आते हैं
चमकते चाँद सितारे गगन में लगता है
विरह की आग में जलने के बाद आते हैं
न कोई देख ले चेहरे की झुर्रियां यारों
तभी वो खूब सँवरने के बाद आते हैं
हमारे दर्द भी करते हैं नौकरी शायद
हमेशा शाम के ढलने के बाद आते हैं
तुम्हारी याद के जुगनू भी बेबफा तुम से
तमाम रात गुजरने के बाद आते हैं…
ContinueAdded by SANDEEP KUMAR PATEL on November 22, 2013 at 1:30pm — 31 Comments
झूठ जीता सत्य हारा
राजनीति की अग्नि में
जले देश सारा
रिश्ते नाते स्वार्थ-सिद्धि की धुरी में
समय मजदूरों का गुजरे नौकरी में
श्रम किया जी तोड़
किन्तु फल है खारा
मन लगा के पर हुआ जाता गगन सा
लक्ष्य के आगे हैं किन्तु तम गहन सा
सिन्धु की गहराई
जाने बस किनारा
घात की यह वेदना क्यूँ माँ सहे अब
ज्ञान की नदिया भी क्यूँ उल्टी बहे अब
मिट गयी अब नेह की
वो मूल धारा…
ContinueAdded by SANDEEP KUMAR PATEL on November 20, 2013 at 10:30pm — 5 Comments
दिव्य अलोकिक सी
उतर रही
क्षितज से
नीचे की ओर
त्रण से छीन लेती है
ओस का प्याला
और वह
अवाक
मूक मुँह बाए
देखता है
उस देवी को जो
मद-मस्त हो जाती है
कलि कलि मुस्काती है
पुष्प खिल उठते हैं
बागों के
पोखरों के
ह्रदय के
उसके दर्शन पा
भर लेती है वो
अपनी बाहों में
अलसाए से
विहंगों को
प्रकृति के कण कण को
और देती है…
ContinueAdded by SANDEEP KUMAR PATEL on November 20, 2013 at 4:32pm — 12 Comments
ज्ञान का चहुँ ओर यों प्रकाश होना चाहिए
मन में पसरे घोर तम का नाश होना चाहिए
बढ़ रही तकनीक क्रांति ला रहे उद्योग अब
तब तो मेरे गाँव का विकाश होना चाहिए
देखता है स्वप्न सोते जागते दिन रात मन
बाँधने मनगति को तप का पाश होना चाहिए
जीतने का हर समय प्रयास करना है उचित
हार कर हमको नहीं निराश होना चाहिए
घर के भीतर “दीप” जलना सिद्ध होता है सही
आपका भगवान् से निकाश होना चाहिए
निकाश -…
ContinueAdded by SANDEEP KUMAR PATEL on November 19, 2013 at 8:35pm — 13 Comments
देख सियासतदानों ने सत्ता पाकर क्या काम किया
कच्ची सड़कें खुद बनवाकर अभियंता बदनाम किया
इल्म नया दे रस्म रिवाज अदब का काम तमाम किया
मगरीबी तहजीबें अपनाकर फिर मुल्क गुलाम किया
देख बुढापा मात पिता का सोचे कब रुखसत होंगे
बेटे ने तब पहले उनकी दौलत अपने नाम किया
सुख सुविधाएँ अक्सर ही पैदा करती सुकुमारों को
तंगी की हालत थी जिसने पैदा एक कलाम किया
वीराना था ये घर मेरा तेरे आने से पहले
दीप जलाकर प्रेम का…
ContinueAdded by SANDEEP KUMAR PATEL on November 17, 2013 at 2:13pm — 17 Comments
गमजदा लोग ये ऐसा कमाल कर देंगे
इतना रोयेंगे के हँसना मुहाल कर देंगे
झूठ कहने में उन्हें इस कदर महारत है
के सजर को भी वो तो नौ निहाल कर देंगे
कैसे हैं आज के बच्चे कहें भी क्या उनको
इक जबाब आता नहीं सौ सवाल कर देंगे
है यकीं अपनी मुहब्बत पे इस कदर उनको
इश्क जब होगा सनम को जमाल कर देंगे
हैं हम आजाद हवा इन्कलाब लाने को
"दीप" को एक सुलगती मशाल कर देंगे
संदीप कुमार पटेल…
ContinueAdded by SANDEEP KUMAR PATEL on November 11, 2013 at 2:30pm — 11 Comments
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |