बह्र--222 221 122
लुट लुट कर बदहाल रहा हूँ
गम के आँसू पाल रहा हूँ
जीवन से ता उम्र लडा मैं
हथियारों को डाल रहा हूँ
किस्मत ने भी खूब नचाया
मैं पिटता सुरताल रहा हूँ
सब हमको ही बेच रहे थे
सस्ता बिकता माल रहा हँ
मकडी मरती आप उलझकर
खुदको बुनता जाल रहा हूँ
मरजाऊँ तो आँख न भरना
मैं अश्कों का ताल रहा हूँ
कर बैठा मैं प्यार अनौखा
रो रोकर बे-हाल रहा हूँ
मौलिक व…
Added by umesh katara on November 23, 2013 at 9:30am — 12 Comments
लाश मुहब्बत की उठाता फिरता हूँ
गीत गमों के गुनगुनाता फिरता हूँ
काश के मिल जाये खुशी का पल कोई
हाथ फकीरों को दिखाता फिरता हूँ
नींद हमें आती नहीं दुनिया वालो
साथ सितारों को जगाता फिरता हूँ
हो न अँधेरा आशियाने में उनके
सोच यही खुद को जलाता फिरता हूँ
खूब किया है फैसला किस्मत तूने
जख्म भरे दिल को छुपाता फिरता हूँ
उमेश कटारा
मौलिक एंव अप्रकाशित
Added by umesh katara on November 16, 2013 at 8:55am — 17 Comments
2122 2121 222
आप तो सचमुच कमाल करते हो
बेवफा होकर सवाल करते हो
जंग में तो हार जीत जायज है
हारने का क्यों मलाल करते हो
क्या हुआ जो बेवफा मुहब्बत थी
मुद्दतों से ही बवाल करते हो
.
पत्थरों के शह्र में बसर है तो
क्यों बिखरने का ख़याल करते हो
.
आदमी तो मर गया कभी से था
आत्मा को भी हलाल करते हो
उमेश कटारा
मौलिक एंव अप्रकाशित रचना
Added by umesh katara on November 8, 2013 at 7:00pm — 18 Comments
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