मौत भी अब तो बहाने बनाने लगी है दोस्तों
देखकर उनको ये भी नखरे दिखाने लगी है दोस्तों
हार जाना ही था शायद हिम्मत को मेरी
किस्मत भी मुझको चिढाने लगी है दोस्तों
क्या थी जिन्दगी और क्या हो गई है
रौशनी भी अब डराने लगी है दोस्तों
खो गये मेरे ख्वाब इस शहर में न जाने कहाँ
हकीक़त ही बस अब भाने लगी है दोस्तों
हो गई दोस्ती मेरी गमो से कुछ यूँ
खुशियाँ अब मुझको रुलाने लगी है दोस्तों
कहो तुम ही अब अंजाम-ए-जिन्दगी क्या हो…
Added by Sonam Saini on November 2, 2012 at 1:55pm — 12 Comments
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