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गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ''s Blog – December 2018 Archive (7)

ग़ज़ल: है कितना मुझ पे तुम्हारा क़याम लिख देना।....(६ )

(1212 1122 1212 22 ) 

है कितना मुझ पे तुम्हारा क़याम लिख देना 

उठे जो दिल में वो बातें तमाम लिख देना 

**

ज़रा सा हाशिया आगाज़ में ज़रूरी है 

ख़ुदा का नाम ले ख़त मेरे नाम लिख देना 

***

मुझे बताना कि क्या चल रहा है अब दिल में 

गुज़र रही है तेरी कैसे शाम लिख देना 

***

तरीका और भी है बात मुझ तलक पहुँचे 

हवा के हाथ…

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Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on December 29, 2018 at 11:00am — No Comments

ये  मिला सिला हमें तुम्हारे एतबार का

आज पेश है एक नगमा --

*

ये  मिला सिला हमें तुम्हारे एतबार का

कारवाँ लुटा लुटा सा रह गया है प्यार का

*

न तुम हमारे हो सके न और कोई हो सका

ग़रीब का नसीब तो न जग सका न सो सका

न भूल हम सके सनम कभी तुम्हारी बुज़दिली

कि कोशिशों से भी कभी कली न दिल की फिर खिली

मौसम-ए-ख़िज़ाँ ने घोंट डाला दम बहार का

कारवाँ लुटा लुटा सा रह गया है प्यार का

*

यक़ीन कैसे हम करें कि ज़िंदगी में तुम नहीं

सुकून के हसीन पल हमारे खो गए कहीं

जिधर भी…

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Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on December 28, 2018 at 10:30pm — 6 Comments

ग़ज़ल: बारम्बार सियासत की क्या (५ )

( 22 22 22 22 22 22 22 2 )

***

बारम्बार सियासत की क्या यह नादानी अच्छी है ? 

धर्मों की आपस में क्या आतिश भड़कानी अच्छी है ? 

***

रखना दोस्त बचाकर मोती कुछ ख़ुशियों की  ख़ातिर भी 

छोटे मोटे ग़म पर आती क्या तुग़्यानी* अच्छी है ?(*बाढ़ )

***

सोचा समझा था पुरखों ने फिर कानून बनाये कुछ 

आज़ादी की ख़ातिर तन की क्या उर्यानी* अच्छी है…

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Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on December 27, 2018 at 11:30am — 8 Comments

गर मीर* ही न ध्यान रखेगा अवाम का। .....(४)

गर मीर* ही न ध्यान रखेगा अवाम का (*नायक )

फिर क्या करे अवाम भी ऐसे निज़ाम का 

***

अब तक न याद आई थी उसको अवाम की 

क्या रह गया यक़ीन फ़क़त आज राम का 

***

दौलत कमाई ख़ूब मगर इतना याद रख-

"बरकत नहीं करे कभी पैसा हराम का "

***

बेकार तो जहाँ में नहीं जिन्स* कोई भी (*वस्तु )

गर्द-ओ-गुबार भी कभी होता है काम…

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Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on December 26, 2018 at 2:30pm — 14 Comments

ग़ज़ल:पुरखार रहगुज़र है चलना सँभल सँभल के......(३)

(221 2122 221 2122 )



पुरखार रहगुज़र है चलना सँभल सँभल के

आसाँ नहीं निभाना मत लेना इश्क़ हल्के

***

सच कह रहे हैं हमने देखा बहुत ज़माना

रह जाएँ आग में सब आशिक़ कहीं न जल के

***

दम तोड़ती यहाँ पर आई नज़र है हसरत

देखे हैं लुटते अरमाँ हर पल मचल मचल के

***

जो चाहते हैं अपना चैन-ओ-सुकून खोना

मैदाँ में वो ही आये हाथों में थूक मल के

***

अक़्सर यहाँ पे पड़ता मिर्गी के जैसा दौरा

कटती है रात सारी करवट बदल बदल के

***…

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Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on December 24, 2018 at 11:30am — 6 Comments

ग़ज़ल --ज़मीँ थे तुम मुहब्बत की.......(२)

ज़मीँ थे तुम मुहब्बत की तुम्हीँ गर आस्माँ होते 

हमारे ग़म के अफ़साने ज़माने से निहाँ* होते (*छुपे हुए )

***

बने हो गैर के ,रुख़्सत हमारी ज़ीस्त से होकर 

न देते तुम अगर धोका हमारे हमरहाँ* होते (*हमसफर )

***

तुम्हारी आँख  की मय को अगर पीते ज़रा सी हम 

तुम्हीं साक़ी बने होते तुम्हीं पीर-ए-मुग़ाँ* होते(*मदिरालय का प्रबंधक ) 

***

बनाया हिज़्र को हमने…

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Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on December 23, 2018 at 2:00pm — 7 Comments

ग़ज़ल--फरेब ओ झूठ की यूँ तो सदा.......(१)

बह्र -बहरे हज़ज मुसम्मन सालिम

अरकान -मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन 

मापनी-1222 1222 1222 1222

***

फरेब-ओ-झूठ की यूँ तो सदा जयकार होती है,

मगर आवाज़ में सच की सदा खनकार होती है।

**

हुआ क्या है ज़माने को पड़ी क्या भाँग दरिया में 

कोई दल हो मगर क्यों एक सी सरकार होती है 

***

शजर में एक साया भी छुपा रहता है अनजाना

मगर उसके लिए…

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Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on December 21, 2018 at 5:00pm — 15 Comments

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