(1212 1122 1212 22 )
है कितना मुझ पे तुम्हारा क़याम लिख देना
उठे जो दिल में वो बातें तमाम लिख देना
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ज़रा सा हाशिया आगाज़ में ज़रूरी है
ख़ुदा का नाम ले ख़त मेरे नाम लिख देना
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मुझे बताना कि क्या चल रहा है अब दिल में
गुज़र रही है तेरी कैसे शाम लिख देना
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तरीका और भी है बात मुझ तलक पहुँचे
हवा के हाथ…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on December 29, 2018 at 11:00am — No Comments
आज पेश है एक नगमा --
*
ये मिला सिला हमें तुम्हारे एतबार का
कारवाँ लुटा लुटा सा रह गया है प्यार का
*
न तुम हमारे हो सके न और कोई हो सका
ग़रीब का नसीब तो न जग सका न सो सका
न भूल हम सके सनम कभी तुम्हारी बुज़दिली
कि कोशिशों से भी कभी कली न दिल की फिर खिली
मौसम-ए-ख़िज़ाँ ने घोंट डाला दम बहार का
कारवाँ लुटा लुटा सा रह गया है प्यार का
*
यक़ीन कैसे हम करें कि ज़िंदगी में तुम नहीं
सुकून के हसीन पल हमारे खो गए कहीं
जिधर भी…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on December 28, 2018 at 10:30pm — 6 Comments
( 22 22 22 22 22 22 22 2 )
***
बारम्बार सियासत की क्या यह नादानी अच्छी है ?
धर्मों की आपस में क्या आतिश भड़कानी अच्छी है ?
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रखना दोस्त बचाकर मोती कुछ ख़ुशियों की ख़ातिर भी
छोटे मोटे ग़म पर आती क्या तुग़्यानी* अच्छी है ?(*बाढ़ )
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सोचा समझा था पुरखों ने फिर कानून बनाये कुछ
आज़ादी की ख़ातिर तन की क्या उर्यानी* अच्छी है…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on December 27, 2018 at 11:30am — 8 Comments
गर मीर* ही न ध्यान रखेगा अवाम का (*नायक )
फिर क्या करे अवाम भी ऐसे निज़ाम का
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अब तक न याद आई थी उसको अवाम की
क्या रह गया यक़ीन फ़क़त आज राम का
***
दौलत कमाई ख़ूब मगर इतना याद रख-
"बरकत नहीं करे कभी पैसा हराम का "
***
बेकार तो जहाँ में नहीं जिन्स* कोई भी (*वस्तु )
गर्द-ओ-गुबार भी कभी होता है काम…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on December 26, 2018 at 2:30pm — 14 Comments
(221 2122 221 2122 )
पुरखार रहगुज़र है चलना सँभल सँभल के
आसाँ नहीं निभाना मत लेना इश्क़ हल्के
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सच कह रहे हैं हमने देखा बहुत ज़माना
रह जाएँ आग में सब आशिक़ कहीं न जल के
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दम तोड़ती यहाँ पर आई नज़र है हसरत
देखे हैं लुटते अरमाँ हर पल मचल मचल के
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जो चाहते हैं अपना चैन-ओ-सुकून खोना
मैदाँ में वो ही आये हाथों में थूक मल के
***
अक़्सर यहाँ पे पड़ता मिर्गी के जैसा दौरा
कटती है रात सारी करवट बदल बदल के
***…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on December 24, 2018 at 11:30am — 6 Comments
ज़मीँ थे तुम मुहब्बत की तुम्हीँ गर आस्माँ होते
हमारे ग़म के अफ़साने ज़माने से निहाँ* होते (*छुपे हुए )
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बने हो गैर के ,रुख़्सत हमारी ज़ीस्त से होकर
न देते तुम अगर धोका हमारे हमरहाँ* होते (*हमसफर )
***
तुम्हारी आँख की मय को अगर पीते ज़रा सी हम
तुम्हीं साक़ी बने होते तुम्हीं पीर-ए-मुग़ाँ* होते(*मदिरालय का प्रबंधक )
***
बनाया हिज़्र को हमने…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on December 23, 2018 at 2:00pm — 7 Comments
बह्र -बहरे हज़ज मुसम्मन सालिम
अरकान -मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन
मापनी-1222 1222 1222 1222
***
फरेब-ओ-झूठ की यूँ तो सदा जयकार होती है,
मगर आवाज़ में सच की सदा खनकार होती है।
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हुआ क्या है ज़माने को पड़ी क्या भाँग दरिया में
कोई दल हो मगर क्यों एक सी सरकार होती है
***
शजर में एक साया भी छुपा रहता है अनजाना
मगर उसके लिए…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on December 21, 2018 at 5:00pm — 15 Comments
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