For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Sheikh Shahzad Usmani's Blog – December 2015 Archive (13)

किसकी आजमाईश (लघुकथा ) /शेख़ शहज़ाद उस्मानी (51)

"देख लिया न तुमने , वह बूढ़ी ग़रीब औरत बेहोश पड़ी थी, कितनों ने उस पर ध्यान दिया ?" - पत्रकार ने वीडियो कैमरा बंद करते हुए मित्र से कहा ।



"हाँ, सही कहते हो, ये चचाजान ही रुके वहां। पानी उस बच्ची से लिया, पानी छिड़क कर उसे होश मे ला कर उसे बिठाया , कौन करता है आजकल इतना ?"



परिस्थिति पर एक आजमाईश करते हुए दृश्य को कैमरे में क़ैद करके दोनों उनके नज़दीक पहुंचे। हालचाल पूछते हुए नाम वगैरह पूछे । बच्ची ईसाई थी, बूढ़ी औरत हिन्दू और चचाजान मुस्लिम । जल था, जुड़ाव था, ज़िम्मेदारी… Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on December 31, 2015 at 10:58pm — 8 Comments

सक्षम कटी पतंग (लघुकथा) ['आकांक्षा' संदर्भित-2] /शेख़ शहज़ाद उस्मानी (50)

"और क्या चाहती हैं आप इस उम्र में मेरे बाबूजी से ? हर महीने बिज़ली का बिल जमा करा देते हैं, गैस सिलेन्डर का भुगतान करा देते हैं, पीने के पानी का टेंकर डलवा देते हैं अपनी पेन्शन में से और हमारे बेटे की सालाना बीमा किश्त भी तो !" - विजय ने अपनी पत्नी के भाषण के जवाब में कहा।



" तुम्हारी हैसियत नहीं है, सो कर देते हैं, मुझे इन बातों से क्या मतलब, नहीं करेंगे तो मैं तो सक्षम हूँ न !” - ऑफिस जाने के लिए अपना पर्स उठाते हुए निशा ने अपने तकिया कलाम दोहरा दिये ।



"बाबूजी को नाश्ता… Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on December 30, 2015 at 8:40am — 1 Comment

देसी औरत (लघुकथा) / शेख़ शहज़ाद उस्मानी (48)

कड़ाके की सर्दी में सर्दी-बुख़ार से पीड़ित गर्भवती औरत कम्बल ओढ़े हुए ज़ोर-ज़ोर से कराह रही थी। रेलवे स्टेशन की टिकट खिड़की के पास ही एक कोने में अपने पति के साथ वह देर रात से बैठी हुई थी ।



"क्यों रे , अपनी लुगाई को सरकारी अस्पताल क्यों नहीं ले जा रहा, रात भर से कराह रही है। अब तो ऑटो- रिक्शा भी मिल जायेगा !"- एक कैन्टीन वाला दूर से ही चिल्लाकर बोला । पति खड़े होकर इधर उधर देखने लगा, फिर ठिठुरते हुए वापस अपनी जगह पर बैठ गया । औरत लगातार कराह रही थी। उसने इशारों से पति को परेशान न… Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on December 29, 2015 at 9:43am — 10 Comments

पेट की जुगाड़ (लघुकथा) /शेख़ शहज़ाद उस्मानी (47)

चौंक गयी थी कुन्ती पहली बार इतनी बड़ी मशीनों को देखकर। तो अम्मा और कम्मो इसी लिए बुरी तरह थक जाती थीं । वह चीख कर कम्मो को रोकना चाह रही थी कि कारखाने के श्रमिक उसके पिता ने अपनी कठोर हथेलियां उसके मुँह पर रख दीं। फ़िर धीरे से उसके कान में उसने कहा - " पगली यहाँ पीछे से चिल्लायेगी , तो उसका हाथ मशीन में फंस न जायेगा !"



"बापू तुम इतनी कम उमर में कम्मो दीदी से ये काम करवाते हो !"



"पेट की जुगाड़ के लिए अगले बरस से तुझे भी आना पड़ेगा, तेरी अम्मा से अब नहीं होता । साहब कह रहे… Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on December 26, 2015 at 10:11am — 9 Comments

तराशते पत्थर (कविता) / शेख़ शहज़ाद उस्मानी

चित्र या चलचित्र

से

चर्चित विचित्र

पथभ्रष्ट कट्टर

बस

तराशते पत्थर ।

किस निमित्त

बनती, टूटती

ईंट-पत्थर की इमारत

आस्थाओं की इबारत

किसकी, कैसी

प्रार्थना या इबादत

कुछ

हटकर

साम्प्रदायिकता से

सटकर डटकर

अमन-चैन को देकर

कठोर टक्कर

भावुक जन-गण से

चंदा जुटाकर

नमूने दिखाकर

अपने ही मुल्क के

क़ानून को

बस

ठेंगा दिखाकर

कौन, कैसे

कलाकारों के हाथों

उकेरते पत्थर

चर्चित… Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on December 24, 2015 at 2:57pm — 1 Comment

वादे इरादे (लघुकथा) / शेख़ शहज़ाद उस्मानी (46)

दस साल बाद एक समारोह में उन दोनों की अप्रत्याशित मुलाक़ात हो गई। न चाहते हुए भी बात चल पड़ी।



"मैंने तुमसे वादा किया था कि मैं आई.ए.एस. अधिकारी बनकर दिखाऊंगा, मैंने पाँच साल ख़ूब मेहनत की, साक्षात्कार तक पहुंच जाता था लेकिन नसीब में तो प्रोफेसर बनना ही लिखा था !"



"मेरे परिवार के स्टेटस का सवाल था। हमारे यहाँ कोई भी रिश्ता प्रशासनिक सेवा से नीचे के लोगों में नहीं हुआ ! आई.ए.एस. बनने के बाद मैं अपने माँ-बाप को और ज़्यादा इंतज़ार नहीं करा सकती थी ! .... लेेेेकिन तुमने तो पागलपन… Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on December 22, 2015 at 11:37pm — 12 Comments

निर्भया कौन ? (लघुकथा) / शेख़ शहज़ाद उस्मानी (45)

उन दोनों की भटकती आत्माओं की मुलाक़ात आज निर्भया की आत्मा से हो गई। उन की हरक़त पर कटाक्ष करते हुए वह बोली-



"कुछ भी हो, तुम दोनों को ख़ुदकुशी कतई नहीं करनी थी !"



"क्या करती ? पेट से थी ! कब तक छिपाती ? नाबालिग को तो कोई कसूरवार नहीं मानता ! मानता भी तो क्या मुझे इंसाफ़ मिलता ?" - एक ने कहा ।



दूसरी ने निर्भया की आत्मा को दुखी स्वर में बताया - "एक तरफ़ तो उस कुकर्मी नाबालिग के सामने देश के क़ानून भी उलझन में पड़ गये ! दूसरी तरफ़ तुम्हारी निर्मम हत्या के बाद वैसे… Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on December 22, 2015 at 1:06am — 9 Comments

मार्गदर्शिका (लघुकथा) / शेख़ शहज़ाद उस्मानी (44)

"हाँ दीदी , आपने जैसा समझाया था, वैसा ही कर रही हूँ। देवरानी, जिठानी और यहाँ तक कि मेरे पति देव जी को भी पता नहीं चल पाता कि मैं सास- ससुर की कब सेवा कर उनकी पसंद की चीज़ें कब उन्हें खिला देती हूँ । पूरी पकड़ हो गई है मेरी उन पर !" - छत पर बैठे हुए उमा ने कहा।



"बढ़िया है । देवरानी और जिठानी को उनकी नज़रों में चढ़ने मत देना । सास-ससुर को यही लगना चाहिए कि तुम ही सबसे अच्छी बहू हो । कोम्पीटीशन का ज़माना है !"



"जी दीदी, अब तो आलम ये है कि सास-ससुर मेरे पति तक की नहीं सुनते,… Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on December 19, 2015 at 9:15am — 7 Comments

व्यावहारिकता (लघुकथा) /शेख़ शहज़ाद उस्मानी (43)

"सुनते हो जी, मुझे तो ये वही लग रहा है जिसने...."

"हे भगवान ! ये तो वही है ! लेकिन इस वक़्त बहू उसके साथ कहां और क्यों जा रही है?

"तो इस क़ीमत पर सुदीप का प्रमोशन और उसकी बेटी की सरकारी नौकरी ?"

"हमारी दिल से सेवा करने वाली बहू हमारी पीठ पीछे....! तो ये है 'बी प्रेक्टिकल' कहने वाली 'एक्टिव' शिक्षिका !"

(मौलिक व अप्रकाशित)

Added by Sheikh Shahzad Usmani on December 12, 2015 at 10:18pm — 8 Comments

हवा का झोंका (लघुकथा) /शेख़ शहज़ाद उस्मानी (42)

"बगल में दूसरी झुग्गी का इन्तज़ाम कर दिया, फिर भी तुम हमरे बेटे को ही हमसे से दूर करके सुखी रह सकती हो किराये के मकान में, तो जाओ, हम दोनों तो यहीं अपनी झुग्गी झोपड़ी में ही बाक़ी ज़िन्दगी बिता देंगे ! " - सावित्री ने बड़े उदास मन से बहू से कहा।



"देखो, मांजी, हमारे बच्चे बड़े हो गए हैं, अंग्रेजी मीडियम स्कूल में पढ़ेंगे, तो हमारा इस टिन- टप्पड़ वाली झुग्गी में रहना उन्हें और उनके दोस्तों को कैसा लगेगा ? मेरे मायके वाले भी यहाँ आना पसंद नहीं करते !"



"अगर तुम दोनों इतना कमा… Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on December 8, 2015 at 9:52am — 6 Comments

गुरूमंत्र (लघुकथा) /शेख़ शहज़ाद उस्मानी (41)

"डॉक्टर साहब, मैं तो आपके भरोसे ही हूँ। अपनी तरह एक बार मेरा निःशुल्क चिकित्सा शिविर सफल करा दो, तो मेरी क्लीनिक भी चल पड़े ! " - डॉ. वर्मा ने वरिष्ठ प्राइवेट डॉक्टर से विनम्र निवेदन किया।



"परेशान मत हो, जैसा मैं कह रहा हूँ, करते जाओ, बस !"



"आपके कहे अनुसार उस गांव के दो लोकप्रिय आर.एम.पी. डॉक्टर सेट कर लिये हैं, उन्होंने क़रीब सवा सौ मरीज़ों के पंजीयन कर लिए हैं, मेडिकल जांच के लिये बन्दों की व्यवस्था भी हो गई है, लाइसेंसधारी तो बड़े नखरे दिखा रहे थे, सो बिना लाइसेंस वाले… Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on December 7, 2015 at 1:18pm — 6 Comments

मुरीदों के जादुई चिराग़ - (लघुकथा) /कहानी /शेख़ शहज़ाद उस्मानी (40)

गहरी नींद में सोये हुये इक्कीसवीं सदी के मानव को सपने में पता नहीं कहाँ से अलाउद्दीन का चिराग़ मिल गया। एकांत में घिस-घिस कर परेशान हो गया, चिराग़ काम नहीं कर रहा था, मानव निराश हो रहा था। ग़ुस्से में जैसे ही उसने ज़मीन पर पटका , अट्टाहास करता हुआ जिन्न प्रकट होकर बोला-

"क्या हुक़्म है आका ! "

पहले तो मानव औंधे मुंह गिरा, फिर संभलकर खड़े होकर उसने विशालकाय जिन्न से पूछा-

"क्क्क्कौन हो तुम, क्या नाम है तुम्हारा ?"

"सतरंगी विकास ! सतरंगी विकास है नाम मेरा !"

मानव ने…

Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on December 4, 2015 at 3:00pm — 16 Comments

नज़दीक़ियां-दूरियां - (लघुकथा) /शेख़ शहज़ाद उस्मानी (39)

संयुक्त परिवार के मुखिया अपने कमरे में पधार चुके थे। पोता-पोती अपने-अपने कमरों में जाकर टीवी पर मनपसंद चैनल देखने लगे थे। बहुयें अपने-अपने कामों में व्यस्त थीं। एक बहू ने अपनी पारी संभालते हुए मुखिया की टेबल पर खाना-पानी परोसा और फिर वह भी अपने कमरे में टीवी पर मनपसंद धारावाहिक देखने लगी। मुखिया का भोजन जैसे-तैसे सम्पन्न हुआ। थाली शेष बचे भोजन सहित टेबल पर बहू के इंतज़ार में पड़ी रही। मुखिया ने एक धार्मिक पुस्तक उठायी, टीवी ओन किया, अपनी पसंद का न्यूज चैनल लगाया, कुर्सी पर बैठे तीन काम शुरू किए-… Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on December 1, 2015 at 11:49pm — 12 Comments

Monthly Archives

2020

2019

2018

2017

2016

2015

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
15 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
22 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
22 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
23 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
yesterday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service