For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (18,998)

तुझे पाना ही बस मेरी चाह नहीं

तुझे पाना ही बस मेरी चाह नहीं,

बदन मिल जाना ही इश्क़ की राह नहीं।

जिस्म का क्या है, मिट्टी में मिल जाएगा,

हाँ, मगर रूह को कोई परवाह नहीं।

लबों ने लबों को तो बाद में छुआ,

पहले तू रूह से हमारा हुआ।…

Continue

Added by AMAN SINHA on November 10, 2024 at 7:59am — No Comments

कुंडलिया छंद

सामाजिक संदर्भ हों, कुछ हों लोकाचार।

लेखन को इनके बिना, मिले नहीं आधार।।

मिले नहीं आधार, सत्य के बिन उद्घाटन।

शिक्षा, संस्कृति, अर्थ, मूल्य पर भी हो चिंतन।।

बिना ज्ञान-विज्ञान, न वर्णन है प्रासंगिक।

विषय सृजन की रहें, विषमताएँ सामाजिक।।1।।

सुनिए सबकी बात पर, रहे सहज अभिव्यक्ति।

तथ्यपरक हो दृष्टि भी, करें न अंधी भक्ति।।

करें न अंधी भक्ति, इसी में है अपना हित।

निर्णय का अधिकार, स्वयं सँग रखें सुरक्षित।।

कुछ करने के पूर्व, उचित को हिय…

Continue

Added by रामबली गुप्ता on November 4, 2024 at 8:00pm — 9 Comments

एक ही सत्य है, "मैं"

एक ही सत्य है, "मैं"

एक ही सत्य है, "मैं"

श्वेत हूँ मैं ,

और श्याम भी मैंं ।

मैं ही क्रोध हूँ,

और काम भी मैं।

उस ईश्वर का

मैं रूप नहीं,

स्वयं ईश्वर हूँ,

मैं दूत नहीं।

एक ही सत्य है, "मैं"

कर्म भी मैं हूँ,

और फल भी मैं,

धर्म भी मैं,

और अधर्म भी मैं।

कर्ता भी मैं,

और कांड भी मैं,

विपत्ति भी मैं,

और समाधान भी मैं।

तुम जितना

मुझमें समाओगे,

उतना ही

मुझको…

Continue

Added by AMAN SINHA on November 2, 2024 at 5:56am — No Comments

ग़ज़ल ..और कितना बता दे टालूँ मैं...

२१२२-१२१२-२२/११२



और कितना बता दे टालूँ मैं

क्यों न तुमको गले लगा लूँ मैं (१)

छोड़ते ही नहीं ये ग़म मुझ्को

ख़ुद को कितना बता सभालूँ मैं (२)

तू मुझे क़ैद करके मानेगा

क्यों न पिंजरे में ख़ुद को डालूँ मैं (३)

ज़िंदगी दूर है बहुत मुझसे

ज़ह्र है पास क्यों न खा लूँ मैं (४)

ज़िन्दगी लिफ्ट माँगती ही नहीं

मौत माँगे तो क्या बिठा लूँ मैं (५)

पाँव में एक दिन जगह देगा

क्यों न सर पे उसे…

Continue

Added by सालिक गणवीर on October 31, 2024 at 4:35pm — 3 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ

212 212 212 212 

 

इस तमस में सँभलना है हर हाल में 

दीप के भाव जलना है हर हाल में

  

हर अँधेरा निपट कालिमा ही नहीं

एक विश्वास पलना है हर हाल में 

   

एकपक्षीय प्रेमिल विचारों भरे

इन चरागों को जलना है हर हाल में 

   

निर्निमेषी नयन का निवेदन लिये 

मन से मन तक टहलना है हर हाल में 

   

देह को देह की भी न अनुभूति हो

मोम जैसे पिघलना है हर हाल में 

    

अल्पनाओं सजी गोद में बैठ कर

दीप को मौन बलना है…

Continue

Added by Saurabh Pandey on October 29, 2024 at 9:30pm — 7 Comments

किसी के दिल में रहा पर किसी के घर में रहा (ग़ज़ल)

बह्र: 1212 1122 1212 22

किसी के दिल में रहा पर किसी के घर में रहा

तमाम उम्र मैं तन्हा इसी सफ़र में रहा

छुपा सके न कभी बेवकूफ़ थे इतने

हमारा इश्क़ मुहब्बत की हर ख़बर में रहा

बड़ी अजीब मुहब्बत की है उलटबाँसी

बहादुरी में कहाँ था मज़ा जो डर में रहा

नदी वो हुस्न की मुझको डुबो गई लेकिन 

बहुत है ये भी की मैं देर तक भँवर में रहा

मिली न प्यार की मंजिल तो क्या…

Continue

Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on October 27, 2024 at 9:37pm — No Comments

दोहा पंचक. . . करवाचौथ

दोहा पंचक. . . . करवाचौथ

चली सुहागन चाँद का, करने को दीदार ।

खैर सजन की चाँद से, माँगे बारम्बार ।।

सधवा ढूँढे चाँद को, विभावरी में आज ।

नहीं प्रतीक्षा का उसे, भाता यह अंदाज ।।

पावन करवा चौथ का, आया है त्योहार ।

सधवा देखे चाँद को, कर सोलह शृंगार ।।

अद्भुत करवा चौथ का, होता है त्योहार ।

निर्जल रह कर माँगती, अपने पति का प्यार ।।

भरा माँग में उम्र भर , रहे सदा सिन्दूर ।

हरदम दमके आँख में , सदा सजन का नूर ।।

 

सुशील सरना /…

Continue

Added by Sushil Sarna on October 20, 2024 at 3:13pm — 3 Comments

ग़ज़ल

मुझ को मेरी मंज़िल से मिला क्यूँ नहीं देते

आख़िर मुझे तुम अपना पता क्यूँ नहीं देते

जज़्बात के शोलों को हवा क्यूँ नहीं देते

तुम आग मुहब्बत की लगा क्यूँ नहीं देते

जब आप को बे इंतिहा मुझ से है मुहब्बत

फिर हाथ मेरी सम्त बढ़ा क्यूँ नहीं देते

जो बन के सितारे हैं रवां आँख से आँसू

ये ज़ीस्त की ज़ुल्मत को मिटा क्यूँ नहीं देते

जो…

Continue

Added by Mamta gupta on October 12, 2024 at 11:30pm — 2 Comments

संबंध

"इस रात की खामोशी में, मुझे चीखने दो,

फिर एक बार, मैं ठहर जाऊंगा ....

चरागों का धुआं कुछ कह गया,

जैसे लाचार मौसम की थम-सी गई सांसें,

बहकी हुई हवाओं में खुद को खो रही हैं ...

रात ने बादलों की रजाई ओढ़ ली है,

जब सुबह का सूरज छत से उतर कर आंगन में बिखर जाएगा,

गेंदे जल उठेंगे,

लेकिन रातरानी की चमक मंद पड़ जाएगी ...

तुलसी के पत्ते की ओस में, तुम धूप को ओढ़ लेना,

जब मेरी याद तुम्हारी पलकों में छलक उठेगी,

वह रिश्ता भी बह उठेगा,

जो कभी ठहरा… Continue

Added by Amod Kumar Srivastava on October 10, 2024 at 2:37pm — No Comments

ग़ज़ल ; पतझड़ के जैसा आलम है विरह की सी पुरवाई है

२२ २२ २२ २२ २२ २२ २२ २

पतझड़ के जैसा आलम है विरह की सी पुरवाई है

ये कैसा मौसम आया है जिसका रंग ज़ुदाई है

घूमते रहते हैं कई साये दिल के अँधेरे कमरे में

काट रही है पल पल मन को ग़म की रात कसाई है

जंगल जंगल घूम रहा हूँ लेकर अपनी बेचैनी

ख़ामोशी में शोर बपा है ये कैसी तन्हाई है

ना जाने क्या सोच रही है मन ही मन बैठी दुल्हन

आँखों में इक हैरानी है चेहरे पे रानाई है

शादी का अवसर लाया है ग़म के साथ…

Continue

Added by Aazi Tamaam on October 5, 2024 at 10:40am — No Comments

दोहा सप्तक. . . . संबंध

दोहा सप्तक. . . . संबंध

पति-पत्नी के मध्य क्यों ,बढ़ने लगे तलाक ।

थोड़े से टकराव में, रिश्ते होते खाक ।।

अहम तोड़ता आजकल , आपस का माधुर्य ।

तार - तार सिन्दूर का, हो जाता सौन्दर्य ।।

खूब तमाशा हो रहा, अदालतों के द्वार ।

आपस के संबंध अब, खूब करें तकरार ।।

अपने-अपने दम्भ की, तोड़े जो प्राचीर ।

उस जोड़े की फिर सदा, सुखमय हो तकदीर ।।

पति-पत्नी के बीच में, बड़ी अहम की होड़ ।

जनम - जनम के साथ को, दिया बीच में छोड़। ।

जरा- जरा सी बात पर,…

Continue

Added by Sushil Sarna on September 23, 2024 at 3:41pm — 2 Comments

दोहा पंचक. . . . दरिंदगी

दोहा पंचक. . . . . दरिंदगी

चाहे जिसको नोचते, वहशी कामुक लोग ।

फैल वासना का रहा , अजब घृणित यह रोग ।।

बेबस अबला क्या करे, जब कामुक लूटें लाज ।

रोज -रोज  इस कृत्य से, घायल हुआ समाज ।।

अबला सबला हो गई, कहने की है बात ।

जाने कितने सह रही, घुट-घुट वो आघात ।।

नजरें नीची लाज की, वहशी करता मौज ।

खुलेआम ही हो रहा, घृणित तमाशा रोज ।।

छलनी सब सपने हुए, छलनी हुआ शरीर ।

कौन सुने संसार में, अबला  अंतस  पीर ।।

सुशील सरना /…

Continue

Added by Sushil Sarna on September 20, 2024 at 3:58pm — No Comments

ग़ज़ल नूर की - तो फिर जन्नतों की कहाँ जुस्तजू हो

.

तो फिर जन्नतों की कहाँ जुस्तजू हो

जो मुझ में नुमायाँ फ़क़त तू ही तू हो.

.

ये रौशन ज़मीरी अमल एक माँगे

नदामत के अश्कों से दिल का वुज़ू हो.

.

जो तख़लीक़ सब की सभी से जुदा है

भला राह मुक्ति की क्यूँ  हू-ब-हू हो.

.

कभी हो ख़यालात से ज़ह’न ख़ाली

ख़लाओं से भी तो कभी गुफ़्तगू हो.

.

वो मुल्हिद नहीं हो मगर ये है मुमकिन

उसे बस सवालात करने की ख़ू हो.

(मुल्हिद--नास्तिक) (ख़ू -आदत)

.

निलेश "नूर"

मौलिक/…

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on September 18, 2024 at 4:51pm — 4 Comments

दोहा दसक- रोटी

नभ पर लकदक  चाँद दे, रोटी का आभास

बिन रोटी कब प्रीत भी, करती कहो उजास।१।

*

सभ्य जगत में है  भले, हर वैज्ञानिक योग

रोटी खातिर आज भी, भटक रहे पर लोग।२।

*

भूखे  प्यासे  प्राण  को, बासी  रोटी खीर

लगता बस धनहीन को, मँहगाई का तीर।३।

*

रोटी ने जिसको किया, विवश और कमजोर।

उसकी सबने खींच  दी, हर  इज्जत की डोर।४।

*

पहली  रोटी  गाय  को,  अन्तिम  देना  स्वान।

पुरखों की इस सीख को, कौन रहा अब…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 17, 2024 at 10:31pm — No Comments

दोहा पंचक. . . . विविध

दोहा पंचक. . . . . . विविध

चढ़ते सूरज को सदा, करते सभी सलाम।

साँझ ढले तो भानु की, बीते तनहा शाम।।

भोर यहाँ बेनाम है, साँझ यहाँ गुमनाम ।

जिस्मों के बाजार में, हमदर्दी नाकाम ।।

छीना झपटी हो रही, किस पर हो विश्वास ।

रहबर ही देने लगे,  अपनों को संत्रास ।।

तनहाई के दौर में, यादों का है शोर ।

जुड़ी हुई है ख्वाब से, उसी ख्वाब की डोर ।।

मुझसे  ऊँचा क्यों भला,  उसका हो प्रासाद ।

यही सोचकर रात -दिन, सदा बढ़े  अवसाद ।।

सुशील…

Continue

Added by Sushil Sarna on September 17, 2024 at 2:46pm — No Comments

दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते

सौदेबाजी रह गई, अब रिश्तों के बीच ।

सम्बन्धों को खा गई, स्वार्थ भाव की कीच ।।

 

रिश्तों के माधुर्य में, आने लगी खटास ।

धीरे-धीरे हो रही, क्षीण मिलन की प्यास ।।

 

मन में गाँठें बैर की, आभासी मुस्कान ।

नाम मात्र की रह गई, रिश्तों में पहचान ।।

 

आँगन छोटे कर गई, नफरत की दीवार ।

रिश्तों की गरिमा गई, अर्थ रार से हार ।।

 

रिश्ते रेशम डोर से, रखना जरा सँभाल ।

स्वार्थ बोझ से टूटती, अक्सर इनकी डाल…

Continue

Added by Sushil Sarna on September 11, 2024 at 1:00pm — 2 Comments

करते तभी तुरंग से, आज गधे भी होड़

गर्दभ का हर युग रहे, गर्दभ सा ही हाल

बनता नहीं तुरंग वह, भले लगा ले नाल।१।

*

भूला पुरखे  थे  कभी, चेतक से बेजोड़

करते तभी तुरंग से, आज गधे भी होड़।२।

*

कहते लोग तुरंग को, कब होता घर दूर

चाहे हो वो काठ का, जय लाता भरपूर।३।

*

क्या पौरुष  के  रंग  वो, दिखलाता संसार।

मोड़ न पाया रास जो, बनकर अश्व सवार।४।

*

रथ में जोते  चल  रहा, सूरज सात तुरंग

इसीलिए लड़ पा रहा, तम से लम्बी जंग।५।

*

घोड़े पर  जो  वायु  के, होता  बहुत सवार

छिन…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 10, 2024 at 6:09am — 4 Comments

दोहा दसक - गुण

आँखों तक ही रूप का, होता है संसार

किंतु गुणों से आत्मा, पाती है झंकार।१।

*

रखने तन को छरहरा, देते भोजन त्याग।

कोई कहता हैं नहीं, लेकिन गुण से जाग।२।

*

गुण की चिंता है किसे, दिखता रहे गँवार

अब तो केवल रूप को, सब ही रहे सँवार।३।

*

जाना जिसने रूप से, गुण का गुण है खास

उस के जीवन से कभी, जाती नहीं उजास।४।

*

गुण है गुण गुणवान को, अवगुण गुण है दुष्ट

जिस को भाता जो रहा, करता उसको पुष्ट।५।

*

गुण से बढ़कर रूप का, जो करता गुणगान

करता गुण…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 9, 2024 at 4:15am — 4 Comments

ग़ज़ल (ग़ज़ल में ऐब रखता हूँ...)

1222 - 1222 - 1222 - 1222

ग़ज़ल में ऐब रखता हूँ कि वो इस्लाह कर जाते

वगर्ना आजकल रुकते नहीं हैं बस गुज़र जाते 

न हो उनकी नज़र तो बाँध भी पाता नहीं मिसरा 

ग़ज़ल हो नज़्म हो अशआर मेरे सब बिखर जाते

 

बड़ी मुद्दत से मैं भी कब 'मुरस्सा' नज़्म कह पाया 

ग़ज़ल पर सरसरी नज़रों ही से वो भी गुज़र जाते

अरूज़ी हैं अदब-दाँ वो अगर बारीक-बीनी से 

न देते इल्म की दौलत तो कैसे हम निखर जाते

मिले हैं ओ. बी. ओ.…

Continue

Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on September 8, 2024 at 5:15pm — 21 Comments

दोहा दसक



जूते तो शोरूम  में, पुस्तक अब फुटपाथ।

कैसे लोगो फिर लगे, कहो तरक्की हाथ।२।

*

कलयुग में उलटा हुआ, मानव का आचार

महल बनाता श्वान  को, गायों को दुत्कार।२।

*

पढ़ो धर्म के  साथ  ही, नित  नूतन विज्ञान

तब जाकर होगा कहीं, सुंदर सकल जहान।३।

*

केवल कोरा ज्ञान ही, कब सुख का आधार

साथ चाहिए  सीख  में,  नैतिकता संस्कार।४।

*

दिखते पग पग खूब हैं, होते नित सतसंग

फिर भी करते…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 8, 2024 at 9:25am — No Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"आदरणीय रामबली जी बहुत ही उत्तम और सार्थक कुंडलिया का सृजन हुआ है ।हार्दिक बधाई सर"
12 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
" जी ! सही कहा है आपने. सादर प्रणाम. "
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी, एक ही छंद में चित्र उभर कर शाब्दिक हुआ है। शिल्प और भाव का सुंदर संयोजन हुआ है।…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति स्नेह और मार्गदर्शन के लिए बहुत बहुत…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"अवश्य, आदरणीय अशोक भाई साहब।  31 वर्णों की व्यवस्था और पदांत का लघु-गुरू होना मनहरण की…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय भाई लक्षमण धामी जी सादर, आपने रचना संशोधित कर पुनः पोस्ट की है, किन्तु आपने घनाक्षरी की…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी   नन्हें-नन्हें बच्चों के न हाथों में किताब और, पीठ पर शाला वाले, झोले का न भार…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति व स्नेहाशीष के लिए आभार। जल्दबाजी में त्रुटिपूर्ण…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आयोजन में सारस्वत सहभागिता के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी मुसाफिर जी। शीत ऋतु की सुंदर…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"शीत लहर ही चहुँदिश दिखती, है हुई तपन अतीत यहाँ।यौवन  जैसी  ठिठुरन  लेकर, आन …"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"सादर अभिवादन, आदरणीय।"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"सभी सदस्यों से रचना-प्रस्तुति की अपेक्षा है.. "
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service