जहाँ पर रोशनी होगी
वहीं पर तीरगी होगी।१।
*
गले तो मौत के लग लें
खफ़ा पर जिन्दगी होगी।२।
*
निशा आयेगी पहलू में
किरण जब सो रही होगी।३।
*
उबासी छोड़ दी उस ने
यहाँ कब ताजगी होगी।४।
*
धुएँ के साथ विष घुलता
हवा भी दिलजली होगी।५।
*
कली जो खिलने बैठी है
मुहब्बत में पगी होगी।६।
*
न आया साँझ को बेटा
निशा भर माँ जगी होगी।७।…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 18, 2021 at 7:36am — 3 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
नौ माह जिसने कोख में पाला सँभाल कर
आये जो गोद में तो उछाला सँभाल कर।१।
*
कोई बुरी निगाह न पलभर असर करे
काजल हमारी आँखों में डाला सँभाल कर।२।
*
बरतन घरों के माज के पाया जहाँ कहीं
लायी बचा के आधा निवाला सँभाल कर।३।
*
सोये अगर तो हाल भी चुप के से जानने
हाथों का रक्खा रोज ही आला सँभाल कर।४।
*
माँ ही थी जिसने प्यार से सँस्कार दे के यूँ
घर को बनाया एक शिवाला सँभाल कर।५।
*
सुख दुख में राह देता…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 9, 2021 at 6:59am — 10 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
किस्मत कहें न कैसे सँवारी गयी बहुत
हर दिन नजर हमारी उतारी गयी बहुत।१।
*
जो पेड़ शूल वाले थे मट्ठे से सींचकर
पत्थर को चोट फूल से मारी गयी बहुत।२।
*
भूले से अपनी ओर न आँखें उठाए वो
जो शय बहुत बुरी थी दुलारी गयी बहुत।३।
*
धनवान मौका मार के ऊँचा चढ़ा मगर
निर्धन के हाथ आ के भी बारी गयी बहुत।४।
*
बेटी का ब्याह शान से करने को बिक गये
ऐसे भी बाजी मान की …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 1, 2021 at 9:25pm — No Comments
किसलिए भण्डार अपने भर रहे हो
देश बेबस को निवाला कर रहे हो।१।
*
रंग पोते धर्म का बाहर से अपने
आप केवल पाप के ही घर रहे हो।२।
*
निर्वसनता चन्द लोगों को सुहाती
इसलिए क्या चीर सब का हर रहे हो।३।
*
कत्ल का आदेश तुमने ही दिया जब
खून के छींटों से क्योंकर डर रहे हो।४।
*
व्यर्थ है उम्मीद पिघलोगे कभी ये
है पता हर जन्म में पत्थर…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 29, 2021 at 5:40am — 6 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
चिन्ता करें जो आम की शासन नहीं रहे
कारण इसी के लाखों के जीवन नहीं रहे।१।
*
हर कोई खेल सकता है पैसों के जोर पर
कानून आज देश में बन्धन नहीं रहे।२।
*
अब हो गये हैं आँख वो भूखे से गिद्ध की
जो थे बचाते लाज को यौवन नहीं रहे।३।
*
आई हवा नगर की तो दीवारें बन गयीं
मिलजुल जहाँ थे बैठते आगन नहीं रहे।४।
*
जीवन का दर्द आँखों में उनकी रहा जवाँ
बेवा हो जिनके हाथों में कंगन नहीं रहे।५।
*
तकनीक…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 26, 2021 at 12:48pm — 4 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
हमने किसी को हर्ष का इक पल नहीं दिया
सूखी धरा को जैसे कि बादल नहीं दिया।१।
*
रूठे तो उससे रोज ही लेकिन मनाया कब
आँसू ढले जो आँखों से आँचल नहीं दिया।२।
*
गंगा से भर के लाये थे पुरखों को तारने
जलते वनों की प्यास को वो जल नहीं दिया।३।
*
कहने पे मन को आपके बंदिश में क्यों रखें
यूँ जब किसी भी द्वार को साँकल नहीं दिया।४।
*
कालिख लगी है इनमें जो सौगात जग की है
आँखों में हम ने एक भी काजल नहीं…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 25, 2021 at 12:36pm — 6 Comments
कौन आया काम जनता के लिए
कह गये सब राम जनता के लिए।१।
*
सुख सभी रखते हैं नेता पास में
हैं वहीं दुख आम जनता के लिए।२।
*
देख पाती है नहीं मुख सोच कर
बस बदलते नाम जनता के लिए।३।
*
छाँव नेताओं के हिस्से हो गयी
और तपता घाम जनता के लिए।४।
*
अच्छे वादे और बोतल वोट को
हो गये तय दाम जनता के लिए।५।
*
न्याय के पलड़े में समता है कहाँ
भोर नेता साम …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 8, 2021 at 10:01pm — 3 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
हमने कहीं पे लौट आ बचपन क्या लिख दिया
बोली जवानी क्रोध में दुश्मन क्या लिख दिया।१।
*
घर के बड़े भी काट के पेड़ों को खुश हुए
बच्चों ने चौड़ा चाहिए आँगन क्या लिख दिया।२।
*
तस्कर तमाम आ गये गुपचुप से मोल को
माटी को यार देश की चन्दन क्या लिख दिया।३।
*
आँखों से उस की धार ये रुकती नहीं है अब
भाता है जब से आपने सावन क्या लिख दिया।४।
*
वो सब विहीन रीड़ के श्वानों से बन …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 7, 2021 at 1:00pm — 10 Comments
२१२२/२१२२/२१२
सादगी से घर सँभाला कीजिए
लालसा को मत उछाला कीजिए।१।
*
यह धरा तो रौंद डाली जालिमों
चाँद का मुँह अब न काला कीजिए।२।
*
करके सूरज से उधारी आब की
चाँद से कहते उजाला कीजिए।३।
*
जब नया देने की कुव्वत ही नहीं
मत फटे में पाँव डाला कीजिए।४।
*
गर तबीयत जाननी है देश की
सबसे पहले ठीक आला कीजिए।५।
*
चाँद तारे सिर्फ महलों को न दो
झोपड़ी में भी उजाला कीजिए।६।…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 6, 2021 at 6:30pm — 4 Comments
१२२२/१२२२/१२२२/१२२२
कोई गर रंग डाले तो न खाना खार होली में
भिगाना भीगना जी भर बढ़ाना प्यार होली में।१।
*
मिलन का प्रीत का सौहार्द्र का त्योहार है ये तो
न हो ताजा पुरानी एक भी तकरार होली में।२।
*
मँजीरे ढोल की थापें पड़ा करती हैं फीकी सच
करे पायल जो सजनी की मधुर झन्कार होली में।३।
*
जमाना भाँग ठंडायी पिलाये पर सनम तुम तो
दिखाकर मदभरी आँखें करो सरशार होली में।४।
*
चले हैं मारने हम तो दिलों से दुश्मनी…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 28, 2021 at 2:00pm — 8 Comments
१२२/१२२/१२२/१२२
कभी रिश्ते मन से निभाकर तो देखो
जो रूठे हुए हैं मनाकर तो देखो।१।
*
खुशी दौड़कर आप आयेगी साथी
कभी दुख में भी मुस्कराकर तो देखो।२।
*
बदल लेगा रंगत जमाना भी अपनी
कभी झूठी हाँ हाँ मिलाकर तो देखो।३।
*
कभी रंज दुश्मन नहीं दे सकेगा
स्वयं से स्वयं को बचाकर तो देखो।४।
*
सदा पुष्प से खिल उठेंगे ये रिश्ते
कि पाषाण मन को गलाकर तो देखो।५।
*
कोई…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 20, 2021 at 6:15pm — 7 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
चाहे कमाया खूब हो धन आपने जनाब
लेेेकिन ज़मीर करके दमन आपने जनाब।१।
*
तारीफ पायी नित्य हो दरवार में भले
मुजरा बना दिया है सुखन आपने जनाब।२।
*
ये सिर्फ सैरगाह रहा हम को है पता
माना नहीं वतन को वतन आपने जनाब।३।
*
उँगली उठायी नित्य ही औरों के काम पर
देखा न किन्त खुद का पतन आपने जनाब।४।
*
देखो लगे हैं लोग ये घर अपना फूँकने
ऐसी लगायी मन में अगन आपने जनाब।५।
*…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 16, 2021 at 8:30am — 9 Comments
तात के हिस्से में कोना आ गया
चाँद को भी सुन के रोना आ गया।१।
*
नींद सुनते हैं उसी की उड़ गयी
भाग्य में जिसके भी सोना आ गया।२।
*
खेत लेकर इक इमारत कर खड़ी
कह रहा वो बीज बोना आ गया।३।
*
डालकर थोड़ा रसायन ही सही
उसको आँखें तो भिगोना आ गया।४।
*
पा गये जगभर की खुशियाँ लोग वो
एक दिल जिनको भी…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 10, 2021 at 5:00pm — 12 Comments
२२१/ २१२१/१२२१/२१२
पत्थर ने दी हैं रोज नजाकत को गालियाँ
जैसे नशेड़ी देता है औरत को गालियाँ।१।
*
भाती हैं सब को आज ये चतुराइयाँ बहुत
यूँ ही न मिल रही हैं शराफ़त को गालियाँ।२।
*
ये दौर नफरतों को फला इसलिए जनाब
देते हैं सारे लोग मुहब्बत को गालियाँ।३।
*
दूल्हे को बेच सोचते खुशियाँ खरीद लीं
देता न कोई ऐसी तिजारत…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 9, 2021 at 5:30am — 8 Comments
दीप की लौ से निकलती रौशनी भी देख ली
और उस की छाँव बैठी तीरगी भी देख ली।१।
*
वोट देकर मालिकाना हक गँवाया हमने यूँ
चार दिन में सेवकाई आपकी भी देख ली।२।
*
दुश्मनी का रंग हम ने जन्म से देखा ही था
आज संकट के समय में दोस्ती भी देख ली।३।
*
आ न पाये होश में क्यों आमजन से दोस्तो
दे के उस ने तो हमें संजीवनी भी देख ली।४।
*
खूब…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 5, 2021 at 2:09pm — 20 Comments
२१२२/२१२२
मत निकल तलवार लेकर
जय मिलेगी प्यार लेकर।१।
*
युद्ध नित बर्बाद करता
जी तनिक यह सार लेकर।२।
*
जग मिटा कर दुख सुनाने
जायेगा किस द्वार लेकर।३।
*
इस भवन का क्या करूँगा
तुम गये आधार लेकर।४।
*
नेह की दुनिया अलग है
हो जा हल्का भार लेकर।५।
*
बोझ सा हरपल है लगता
दब गये आभार लेकर।६।
*
कर गया कंगाल सब को
हर भरा सन्सार लेकर।७।
*
टूटती रिश्तों की माला
जोड़ ले कुछ तार…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 26, 2021 at 10:38pm — 4 Comments
२२१/२१२२/२२१/२१२२
वैसे तो उसके मन की बातें बहुत सरस हैं
पर काम इस चमन में फैला रहे तमस हैं।१।
*
पहले भी थीं न अच्छी रावण के वंशजों की
अब राम के मुखौटे कैसी लिए हवस हैं।२।
*
ये दौर कैसा आया मर मिट गये सहारे
चहुँदिश यहाँ जो दिखतीं टूटन भरी वयस हैं।३।
*
पसरी जो आँगनों में उन से हवा लड़ेगी
इन से लड़ेंगे कैसे जो मन बसी उमस हैं।४।
*
उस गाँव में हैं अब भी बेढब सुस्वाद…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 21, 2021 at 9:19am — 10 Comments
२१२२/२१२२/२१२२
बेड़ियाँ टूटी हैं बोलो कब स्वयम् ही
मुक्ति को उठना पड़ेगा अब स्वयम् ही।१।
*
बाँधकर उत्साह पाँवों में चलो बस
पथ सहज होकर रहेंगे सब स्वयम् ही।२।
*
पहरूये ही सो गये हों जब चमन के
है जरूरत जागने की तब स्वयम् ही।३।
*
अब न आयेगा यहाँ अवतार हमको
करने होंगे मान लो करतब स्वयम् ही।४।
*
कल जो सेवक हैं कहा करते थे देखो
हो गये है आज वो साहब स्वयम्…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 19, 2021 at 7:30am — 14 Comments
काँटा चुभता अगर पाँव को धीरे धीरे
आ जाते हम यार ठाँव को धीरे धीरे।१।
*
कच्ची कलियाँ क्यों मरती बिन पानी यूँ
सूरज छलता अगर छाँव को धीरे धीरे।२।
*
खेती बाड़ी सिर्फ कहावत होगी क्या
निगल रहा है नगर गाँव को धीरे धीरे।३।
*
कौन दवाई ठीक करेगी बोलो राजन
पेट देश के लगी आँव को धीरे धीरे।४।
*
जीत कठिन भी हो जाती है सरल उन्हें
जो…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 14, 2021 at 7:38am — 8 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
पहने हुए हैं जो भी मुखौटा किसान का
हित चाहते नहीं हैं वो थोड़ा किसान का।१।
*
बन के हितेशी नित्य हित अपना साधते
बाधित करेंगे ये ही तो रस्ता किसान का।२।
*
नीयत है इनकी खोटी ये करने चले हैं बस
दस्तार अपने हित में दरीचा किसान का।३।
*
होती इन्हें तो भूख है अवसर की नित्य ही
चाहेंगे पाना खून पसीना किसान का।४।
*
स्वाधीन हो के देश में किस ने उठाया है
रुतबा किया सभी ने है नीचा किसान का।५।
*
सब के टिकी हुई है ये…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 7, 2021 at 10:28am — 10 Comments
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