जय! जय! जय! बजरंग बली!
हे! बजरंगी दया तुम्हारी, सदा राम नाम गुन गाया है!
तेरी ही कृपा से मैंने, प्रभु पाद सरस रस पाया है!! जय.....
तेरे अन्तरमन में ज्यों, सिया राम छवि सुख छाई है!
मन उत्कण्ठा अविकार लिये, मैंने भी अलख जगाई है!! जय.....
कृपा करो हे! पवन पुत्र, फिर वरद तुम्हारा आया है!
तेरी ही कृपा दृष्टि से, यह सम्मान पुनः मिल पाया है!!
जय जय जय बजरंग बली, जय जय जय बजरंग बली!
जय जय जय बजरंग बली, जय जय जय बजरंग बली!!
के’पी’सत्यम/मौलिक एवं अप्रकाशित…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 12, 2013 at 6:42pm — 4 Comments
--छन्द --
तन जरत, मन बरत, लगत सर, टप-टप टपकत चलत रकत धर।
हरत न भव-भय मन इरष कर, हर-हर बरषत झरत छपर घर।।
तन क्षरत मन कस न ठगत नर, जल घट भर-भर भरत नगर सर।
तन-मन-धन सब धरन कंत घर,हस-हस मरकर सरग चलत नर।।4
सत्यम/मौलिक एवं अप्रकाषित रचना
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 12, 2013 at 10:40am — 7 Comments
दोहा --:ःबम-बम भोलेःः--
तन मन भय रगड़ भसम, सब गण करत बखान!
कण कण सत रज तम रमत,समरथ सकल इशान!!1
चरण कमल रज लख करत,शत शत नमन महेश!
भजत भजन हर हर भवम, भय तज मरम गणेश!!2
सगर-तगड़-तरवर-तरन, हर जन धरत परान!
अलख झलक नर मन समझ,पल क्षण बनत महान!!3
जनत झरत लट पट उड़़त, हलचल अवघड़ जान!
तमस शमन भव भय हरत, सत मन बरगद शान!!4
सत्यम/मौलिक एवं अप्रकाशित रचना
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 12, 2013 at 10:30am — 6 Comments
कलियुग मंथन
कलिकाल अकाल बढ़ा जग मा। अस मात विक्राल हलाहल सा।।
जन जीव अजीव समीर दुःखी । जगती तल अम्बर ताल बसी।।
सब देव अदेव गंधर्ब डरे । ब्रहमा - विशनू - महदेव कहे ।।
अब तो बस एक उपाय करें। गुरू नाम जपें सब राम रटे ।।
जग मा रस गंध सुगन्ध बहे । भजनादि संकीर्तन गूॅज रहे ।।
मन -मान समान धरे उर मा। सतसंग उमंग अनन्य रस मा।।
कह गीत सुनीति कही सुनहीं। पर मान बढ़ाहि बुझाइ सही ।।
इतना कहिके प्रभु जोरि हॅसें । कलि काल सुमीत मिले जिनसे।।
चित शान्ति विचार उठा नभ…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 11, 2013 at 9:56pm — No Comments
जस गॅवार गुण हीन अज्ञानी। आशा विपरीत सदा दुःख मानी।।
उलटि भजे सुनि कर्म भय ताहू। क्षमा राखि इच्छित फल पाहू।।
ज्यों ढोल मढि़ पोल उर राखा। गावहिं सगुन भवानहि भाषा।।
ढमढम ढोल ताल बिनु बाजा। नटसि नाथ हिय सुर ताल साजा।।
जनम जनम सेवा शूद्र वारे। दुःख दरिद्र त्यों जीवन धारे।।
कबहु न सीस मान अधिकारी। निषाद मित्र शबरी पय वारी।।
ज्यों समाज पशु धन श्री साजे। शत विधि भला असत रस राजे।।
बलि शीशा नर क्षुधा मिटाही। गिघ्द भालु कपि प्रभु जिय माही।
सकल ब्रहम संग रहे…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 11, 2013 at 10:30am — No Comments
हरि-महिमा
तिनका तिनका हरि नाम धरै, महिखंड समूल रसातल को!
यमलोक सुलोक हवा पहिरे, हरि नाम जपे हरि आपन को!!
हनुमान हरी हरि राम रटे, मिलगे वन मा सुग्रीव सखा !
रघुवीर मिले दुःख दूर भये, मनमीत बने हरि राम सखा!!
कहि कोल किरात चंडाल जपे,उलिटा हरि नाम सुनाम लगे!
हरि नाम जपे कवि के रसना, सुर प्रीत बने गंगा जमुना !!
हरि नाम कथा कहहि सुनही, पर प्राण सराहि हरे दुःख को!
कही मोह बढाहि चले मद में, हरी नाम भुलाय पड़े गत…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 10, 2013 at 5:09pm — 6 Comments
अहंकार है जड़ प्रकृति, स: ह्वै चेतन सार!
हंसा बूझि अस मूढ़मति, ज्ञानी भए भव पार!!
द्युलोक मा व्यापक रहत,आदित तैजस रूप!
बसुधा धारत अनल सत,वायु शून्य इक भूप!!
आदित्य सोसत सागर, गुरुत्व शून्य अस भाए!
बादल डाले वीर्य रस, धरा उपज अति पाए!
विश्वान इक गर्भ सृजक, चेतन रहा डोलाए!!
षट घन घना कुंभ विकृत,सत जागत सुख पाए!!
हंस उड़त एक पाद से,इक जलाशय रहि जाए!
कर्म पाश रस चाहना, फिरै सरोवर …
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 10, 2013 at 12:31pm — 2 Comments
बेटी ऐसी बेल है, ऊपर तक चढ़ जाय!
भले-बुरे संग खुश रहे,कभी न तोड़ा जाय!!
बेटी प्यारी दूब सी, नरम बिछौना जान!
गाट-गाट जोड़त रहे,खुशहाली की शान!!
बुलबुल कोकिल मैना सी,कूक रहे दिन-रात!
मात-पिता का अंतिम मन,बेटी घर ससुराल!!…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 9, 2013 at 2:30pm — 4 Comments
मौलिक एवम् अप्रकाशित रचना
महिला दाता प्रेम की, बना भिक्षुक नर जात !
माया ममता ना मरी, मरा अहम् बड़जात !!
दामिनी भारत की बेटी, कल्पना भरे उड़ान !
इंदिरा किरण वेदी चॅढी, सुनीता गगन शान!!
बच्चे अच्छे एक या दो, जीवन का श्रृंगार!
पढ़ते - पढ़ते ग्यान दे, बेटी को मत मार !!
(के.पी.सत्यम)
मौलिक एवम् अप्रकाशित रचना !
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 8, 2013 at 10:50pm — 4 Comments
"महात्मा गाँधी मार्ग से कालीदास मार्ग तक"
भारत भ्रमण पर एक विदेशी,
जो था हिन्दी भाषा का प्रेमी!
एशो नज़ाकत का तहज़ीबी नगर!
'मुस्कराईए कि आप लखनऊ मे हैं'.
मन मे गुनता -गुनगुनाता -मुस्कराता;
खचाड़े रिक्शे का लुफ्त लेता,
गुजर रहा था अभी-
'महात्मा गाँधी मार्ग' से .
सहसा उसे नये टेम्पो पर पढ़ने को मिला-
'देखो मगर प्यार से'
वो कुछ बुदबुदाया फिर मुस्कुराया,
तभी अचानक पास से ही सनसनाती-सन्न से;
एक नयी नवेली ट्रक 'धन्नो'…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 8, 2013 at 8:30pm — 4 Comments
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