For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Sushil Sarna's Blog (882)

वज़ह.....

वज़ह.....

बिछुड़ती हुई
हर शय
लगने लगती है
बड़ी अज़ीज
अंतिम लम्हों में
क्योँकि
होता है
हर शय से
लगाव
बेइंतिहा
दर्द होता है
बहुत
जब रह जाती है
पीछे
ज़िंदगी
जीने की
वज़ह

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on July 5, 2019 at 4:56pm — 4 Comments

मौन पर त्वरित क्षणिकाएं :

मौन पर त्वरित क्षणिकाएं :

मौन तो
क्षरण है
शोर का

............

मन का
कोलाहल है
मौन

.............

मौन
स्वीकार है
समर्पण का

...............

मौन
प्रतिशोध का
शोर है

..............

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on June 26, 2019 at 8:12pm — 6 Comments

शब्द ....

शब्द ....

शब्द
बतियाते हैं तो
सृजन बन जाते हैं

शब्द
बतियाते हैं तो
वाचाल हो उठती है
अंतस भावों की
पाषाण प्रतिमा

शब्द
बतियाते हैं तो
बन जाते हैं
कालजयी
शिलालेख

शब्द
बतियाते हैं तो
छीन लेते हैं
मौन में दबे दर्द की
मौनता को

इसीलिए
शब्दों का बतियाना
बड़ा अच्छा लगता है

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on June 23, 2019 at 5:02pm — 2 Comments

ख़्वाब ... (क्षणिका )

ख़्वाब ... (क्षणिका )

तैरता रहा तुम्हारा अक्स
मेरे ख़्वाबों के प्याले में
माहताब बनकर
मैं निहारता रहा
अब्र में
बिखरता ख़्वाब
छलिया माहताब में

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on June 22, 2019 at 4:58pm — 6 Comments

कर्म आधारित दोहे :

कर्म आधारित दोहे :

अपने अपने नीड़ की, अपनी अपनी पीर।

हर बंदे के कर्म ही, हैं उसकी तकदीर।।

पाप पुण्य संसार में, हैं कर्मों के भोग।

सुख-दुख पाना जीव का ,मात्र नहीं संयोग।।

हर किसी के कर्म का, दाता रखे हिसाब।

देना होगा ईश को ,हर कर्म का जवाब।।

चाँदी सोना धन सभी, हैं जग में बेकार।

सद कर्मों से जीव का, होता बेड़ा पार।।

जग में आया छोड़कर, जब तू अपना धाम।

धन अर्जन के कर्म में, भूल गया तू…

Continue

Added by Sushil Sarna on June 20, 2019 at 2:33pm — 10 Comments

ताप संताप दोहे :

ताप संताप दोहे :

सूरज अपने ताप का, देख जरा संताप।

हरियाली को दे दिया, जैसे तूने शाप।।

भानु रशिम कर रही, कैसा तांडव आज।

वसुधा की काया फटी,ठूंठ बने सरताज।।

वसुंधरा का हो गया, देखो कैसा रूप।

हरियाली को खा गई, भानु तेरी धूप।।

मेघो अपने रहम की, जरा करो बरसात।

अपनी बूंदों से हरो, धरती का संताप।।

तृषित धरा को दीजिये, इंद्रदेव वरदान।

हलधर लौटे खेत में, खूब उगाये धान।।

सुशील सरना…

Continue

Added by Sushil Sarna on June 19, 2019 at 7:04pm — 8 Comments

औरत.....

औरत.....

जाने 

कितने चेहरे रखती है 

मुस्कराहट 

थक गई है 

दर्द के पैबंद सीते सीते 

ज़िंदगी 

हर रात 

कोई मुझे 

आसमाँ बना देता है 

हर सह्र 

मैं पाताल से गहरे अंधेरों में 

धकेल दी जाती हूँ 

उफ़्फ़ ! कितनी बेअदबी होती है 

मेरे जिस्म के…

Continue

Added by Sushil Sarna on June 18, 2019 at 1:07pm — 1 Comment

गर्मी पर 5 दोहे ....

गर्मी पर 5 दोहे ....

लू में हर जन भोगता, अनचाहा संताप।

दुश्मन मेघों का बना,भानु किरण का ताप।।

मेघों से धरती कहे, कब बरसोगे तात।

प्यासी वसुधा मांगती, थोड़ी सी बरसात।।

जंगल सारे कट गए, कैसे हो बरसात।

तपती धरती पर लिखी, पर्यावरणी बात।।

धरती पर हर ताप का, भानु ताप सरताज।

गौर वर्ण पर हो गया, स्वेद कणों का राज।।

भानु अनल से तप रहे, धरती अंबर आज।

प्यासा जीवन हो गया, बारिश का मुहताज…

Continue

Added by Sushil Sarna on June 6, 2019 at 7:00pm — 5 Comments

ईद ...

ईद ...

दीद आपकी ईद पर, है अनुपम सौगात।

ईद मुबारक कर गई , आज ईद की रात ।।

मेघों की चिलमन हटी, हुई चाँद की दीद।

भेद-भाव सब भूलकर, कहें मुबारक ईद।।

दीद आपकी दे गई, ईदी हमको आज।

धड़कन के बजने लगे, देखो दिल में साज ।।

अर्श पर्श पर आज है, ईद मिलन का राज ।

ईद मुबारक सब कहें , इक दूजे को आज ।।

तरस रही हैं दीद को,कब आएगी ईद।

आएगी जब ईद, तो कैसे होगी दीद।।

बिना आपके बे-मज़ा,…

Continue

Added by Sushil Sarna on June 5, 2019 at 3:30pm — 3 Comments

ज़िंदगी ... तीन क्षणिकाएँ

ज़िंदगी ... तीन क्षणिकाएँ

मरती रही ज़िंदगी
ज़िंदा रही जब तक
अमर हो गई
फ्रेम में
कैद होने के बाद

..........................
जीती रही ज़िंदगी
ज़िंदा रही जब तक
मर गई
फ्रेम में
कैद होने से पहले

..........................

वाकिफ़ थी
अपने हश्र से
ज़िंदगी
फिर भी
मिट न सकी
जीने की लालसा
अवसान से पहले

.....................

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on June 2, 2019 at 9:24pm — 4 Comments

चुप होना चाहता हूँ ....

चुप होना चाहता हूँ ....

नहीं नहीं

बहुत हुआ

अब मैं चुप रहना चाहता हूँ

अंधेरों सा खामोश रहना चाहता हूँ

अब मेरे पास

न तो विचार हैं

न किसी भी विचार को

अभिव्यक्त करने के लिए शब्द

पता नहीं

क्यों मैं चुप नहीं रह पाता

बावजूद ये जानते हुए भी

कि मेरे बोलने से कुछ नहीं बदलने वाला

मैं निरंतर बोले जा रहा हूँ

न जाने किसे और क्या क्या

मैं नहीं जानता

मेरा इस तरह से लगातार बोलना

किस हद तक ठीक है…

Continue

Added by Sushil Sarna on May 31, 2019 at 12:00pm — 4 Comments

मर्म .....

मर्म .....

कितनी पहेलियाँ हैं
हथेलियों की
इन चंद रेखाओं में
पढ़ते हैं
लोग इनमें
जीवन की लम्बाई
साँसों की गिनती
भौतिक सुख सुविधा
दाम्पत्य सुख
औलाद
सब कुछ पढ़ते है
नहीं पढ़ते
तो
प्राण बिंदु का मर्म

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on May 30, 2019 at 3:04pm — 1 Comment

छंद सोरठा .......

छंद सोरठा .......

अपनेपन की गंध, अपनों में मिलती नहीं।

स्वार्थपूर्ण दुर्गन्ध,रिश्तों से उठने लगी।1।

प्रथम सुवासित भोर, प्रीत सुवासित कर गई।

मधुर मिलन का शोर, नैनों में होने लगा।2।

तृषित रहा शृंगार, बंजारी सी प्यास का।

धधक उठे अंगार,अवगुंठन में प्रीत के।3।

जागे मन में प्रीत, नैन मिलें जब नैन से ।

बने हार भी जीत, दो पल में सदियाँ मिटें।4।

वो पहली मनुहार, यौवन की दहलीज पर।

शरमीली सी हार,हर बंधन…

Continue

Added by Sushil Sarna on May 29, 2019 at 1:23pm — No Comments

बुढ़ापा ...

बुढ़ापा ...

शैशव,बचपन ,जवानी
छूट जाती है
बहुत पीछे
जब आता है
बुढ़ापा
छूट जाता है
हर मुखौटा
हर आयु का
जब आता है
बुढ़ापा
बहुत लगती है
प्यास
बीते हुए दिनों की
तृषा की ओढ़नी में
तृप्ति की तलाश में
युगों के बिछोने पर
उड़ जाता है तोड़ कर
काया की प्राचीर को
अंत में
अनंत में
ये
पावन
बुढ़ापा


सुशील सरना
मौखिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on May 28, 2019 at 1:00pm — 2 Comments

विदाई से पहले : 4 क्षणिकाएं

विदाई से पहले : 4 क्षणिकाएं

क्या संभव है

अनंतता को प्राप्त करना

महाशून्य की संख्याओं को

विलग करते हुए

........................................

उड़ने की तमन्नाएँ

आशाओं के बवंडर के साथ

भेदती रही नीलांबर को

अपने कर्णभेदी

अश्रुहीन रुदन से

......................................

मैं चाहता था

तुम्हें चाँद तक पहुंचाना

अपनी बाहों के घेरे में घेरकर

गिर गया स्वप्न

फिसल कर

आँखों के फलक से

हकीकत के…

Continue

Added by Sushil Sarna on May 27, 2019 at 11:44am — 4 Comments

रैन पर कुछ शृंगारिक दोहे :

रैन पर कुछ शृंगारिक दोहे :

अंतर्मन के रात को , उदित हुए जज़्बात।

नैन लजीले कह गए,शरमीली सी बात।1।
विभावरी से कह रहा, रजनीपति ये बात।

प्रीत झील में कौमुदी,स्वरित करे जज़्बात।2।
बिना पिया के हो गई, रैन अभागन आज।

ओजहीन जीवन लगे,द्रवित हुए सब राज़ ।3।…
Continue

Added by Sushil Sarna on May 24, 2019 at 4:00pm — No Comments

शृंगारिक दोहे :

शृंगारिक दोहे :



नैनों से बरखा बहे, जब से छूटा हाथ।

नींदें दुश्मन हो गईं, कब आओगे नाथ।1।

एक श्वास तुम साथ हो, एक श्वास तुम दूर।

कैसी है ये दिल्लगी, कुछ तो कहो हुज़ूर।2।

कातिल हसीन शोखियाँ, हैं आपकी हुजूर।

नज़र न कर बैठे कहीं , बहका हुआ कुसूर।3।

सावन की बौछार में, भीगा हुआ शबाब।

बहके रिंदों की कहीं, नीयत हो न ख़राब ।4।

तुम तो साजन रात के, तुम क्या जानो पीर।

भोर हुई तुम चल दिए, नैन बहाएँ…

Continue

Added by Sushil Sarna on May 20, 2019 at 4:00pm — 8 Comments

मित्र पर चंद दोहे :

मित्र पर चंद दोहे :

अपने मन को जानिए, अपना सच्चा मित्र।

दिखलाता हर कर्म का, श्वेत श्याम हर चित्र।।

किसको अपना हम कहें, किसको जानें ग़ैर।

मृदु शब्दों की आड़ में, मित्र निकालें बैर।।

सुख में हर जन साथ है, दुख में दीनानाथ।

दुःख में जब सब छोड़ दें, नाथ थामते हाथ।।

जग में सच्चे मित्र की, नहीं रही पहचान ।

कदम कदम विश्वास का ,हो जाता अवसान।।

मन को रोगी कर दिया, मित्र दे गया घात।

थामो मेरा हाथ…

Continue

Added by Sushil Sarna on May 9, 2019 at 6:00pm — 2 Comments

साँसों की बैसाखी :

साँसों की बैसाखी :

जोड़ता है

अनजाने रिश्ते

तोड़ता है

पहचाने रिश्ते

जाने और अनजाने में

जान से कीमती

मोबाइल

साँसों का पर्याय है

जीवन का अध्याय है

किसी की जीत है

किसी की मात है

न उदय का भान है

न अस्त का ज्ञान है

हाथों में जहान है

स्वयं से अनजान है

इंसान को चलाता

एक और इंसान है

मोबाइल

चुपके से हंसाता है

चुपके से रुलाता है

सन्देश आता है

सन्देश जाता है…

Continue

Added by Sushil Sarna on May 9, 2019 at 12:55pm — 1 Comment

१. फुल स्टॉप .... ३ क्षणिकाएं

१. फुल स्टॉप .... ३ क्षणिकाएं

फुल स्टॉप

अर्थात

अंतिम बिंदु

अर्थात

जीवन रेखा का

जीवन बिंदु में विलय

अर्थात

समाहित हो गई

सूक्षम में

श्वास की लय

.......................

२. नो मोर ...

नो मोर

वन्स मोर

अंतिम छोर

उड़ गया पंछी

हर बंधन

पिंजरे के तोड़

.......................

३. रेखाएँ ....

रेखाएँ

हथेलियों की

मृत देह पर

जीवित देह सी रहीं

बस…

Continue

Added by Sushil Sarna on May 7, 2019 at 7:41pm — 8 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई लक्ष्मण सिंह 'मुसाफिर' साहब! हार्दिक बधाई आपको !"
13 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय मिथिलेश भाई, रचनाओं पर आपकी आमद रचनाकर्म के प्रति आश्वस्त करती है.  लिखा-कहा समीचीन और…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ सर, गाली की रदीफ और ये काफिया। क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस शानदार प्रस्तुति हेतु…"
Tuesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service