तुमको जो प्रतिकूल लगे हैं
वे हमको अनुकूल लगे
और तुम्हें अनुकूल लगे जो
वे हमको प्रतिकूल लगे...............
हम यायावर,जान रहे हैं…
Added by अरुण कुमार निगम on May 2, 2013 at 10:27am — 41 Comments
ज्ञानियों से ज्ञान लेना चाहिये
गल्तियों को मान लेना चाहिये |
स्वस्थ रहने का सरल सिद्धांत है
पेय - जल को छान लेना चाहिये |
रास्ते सब खुद ब खुद मिल जायेंगे
लक्ष्य मन में ठान लेना चाहिये |
इस जहां में दोस्तों की शक्ल को
दूर से पहचान लेना चाहिये |
धन न वैभव सुख कभी दे पाएंगे
प्रेम का वरदान लेना चाहिये |
दिल कहे कि पात्रता रखता है तू
तब कोई सम्मान लेना चाहिये |
ज़िंदगी का अर्थ क्या है ऐ अरुण
अनुभवों से जान लेना चाहिये…
Added by अरुण कुमार निगम on February 3, 2013 at 11:00am — 9 Comments
मान और सम्मान की,नहीं कलम को भूख
महक मिटे ना पुष्प की , चाहे जाये सूख |
खानपान जीवित रखे , अधर रचाये पान
जहाँ डूब कान्हा मिले , ढूँढो वह रस खान |…
Added by अरुण कुमार निगम on September 11, 2012 at 12:00am — 14 Comments
स्वर में अमृत घोलो जी
फिर अधरों को खोलो जी |
नहीं खर्च कुछ होने का
मीठा – मीठा बोलो जी |.
देने वाला कैसे दे ?
हाथ मलिन…
Added by अरुण कुमार निगम on September 3, 2012 at 9:30pm — 15 Comments
" बधाई – कुण्डलिया "
ओ.बी.ओ. के फलक पर , देखा है संदेश
मना रहे हैं जन्म-दिन , गुप्ता चंद्र दिनेश
गुप्ता चंद्र दिनेश , कहे जाते हैं रविकर…
Added by अरुण कुमार निगम on August 15, 2012 at 10:19am — 4 Comments
कैसे – कैसे मंजर आये प्राणप्रिये
अपने सारे हुये पराये प्राणप्रिये |
सच्चे की किस्मत में तम ही आया है
अब तो झूठा तमगे पाये प्राणप्रिये |
ज्ञान भरे घट जाने कितने दफ्न हुये
अधजल गगरी छलकत जाये प्राणप्रिये |
भूखे - प्यासे हंसों ने दम तोड़ दिया
अब कौआ ही मोती खाये प्राणप्रिये |
यहाँ राग - दीपक की बातें करता था
वहाँ राग – दरबारी गाये प्राणप्रिये |
सोने…
Added by अरुण कुमार निगम on August 5, 2012 at 10:31am — 12 Comments
राह तकती है तुम्हारी,
आज यह सूनी कलाई....
स्मृति बस स्मृति ही ,
शेष है सूने नयन में
बिम्ब दिखता है तुम्हारा,
आज मधु मंजुल सुमन में
यूँ लगा कि द्वार खुलते
ही मुझे दोगी दिखाई
राह तकती है तुम्हारी
आज यह सूनी कलाई.........................
आरती की थाल कर में
दीप आशा का जलाये
इस धरा पर कौन है जो
नेह की सरिता लुटाये
श्रावणी वर्षा हृदय में
आज मेरे है समाई
राह तकती है तुम्हारी
आज यह सूनी…
Added by अरुण कुमार निगम on August 2, 2012 at 1:18pm — 21 Comments
कच्ची रोटी भी प्रेमिका की भली लगती है
बीबी अच्छी भी खिलाये तो जली लगती है |
बीबी हँस दे तो कलेजा ही दहल जाता है
प्रेयसी रूठी हुई भी तो भली लगती है |
नये - नये में बहु कितनी भली लगती है
फिर ससुर - सास को वो बाहुबली लगती है |
कलि अनार की लगती थी ब्याह से पहले
अब मैं कीड़ा हूँ और वो छिपकली लगती है |
फिर चुनी जायेगी दीवार में पहले की तरह
ये मोहब्बत सदा अनारकली लगती है |
इस शहर …
Added by अरुण कुमार निगम on June 26, 2012 at 9:14pm — 4 Comments
कविताओं में बाँचिये , शीतल मंद समीर
शब्दों में ही बह रहा , निर्मल निर्झर नीर
निर्मल निर्झर नीर,हरा वसुधा का आँचल…
Added by अरुण कुमार निगम on June 6, 2012 at 12:30am — 12 Comments
समय सँपेरा बीन बजाता छलता जाये
नागिन जैसी उम्र संग ले चलता जाये.
तन्त्र -मंत्र के जाल सुनहले पग पग पर हैं
नख शिख पल पल मोम सरीखा गलता जाये.
रीझ न जाओ माया नगरी पर जगती…
ContinueAdded by अरुण कुमार निगम on March 22, 2012 at 11:00pm — 6 Comments
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