ग़ज़लों का आनन्द समझ में आ जाए
काश तुन्हें यह छन्द समझ में आ जाए.
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संस्कृत से फ़ारस का नाता जान सको
लफ्ज़ अगर गुलकन्द समझ में आ जाए.
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रस की ला-महदूदी को पहचानों गर
फूलों का मकरन्द समझ में आ जाए.
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दिल में जन्नत की हसरत जो जाग उठे
हों कितना पाबन्द समझ में आ जाए.
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भीषण द्वंद्व मैं बाहर का भी जीत ही लूँ
पहले अन्तर-द्वन्द समझ में आ जाए.
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मन्द बुद्धि का मन्द समझ में आता है
अक्ल-मन्द का मन्द समझ में आ जाए.…
Added by Nilesh Shevgaonkar on November 1, 2021 at 6:00pm — 8 Comments
तमन्नाओं को फिर रोका गया है
बड़ी मुश्किल से समझौता हुआ है.
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किसी का खेल है सदियों पुराना
किसी के वास्ते मंज़र नया है.
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यही मौक़ा है प्यारे पार कर ले
ये दरिया बहते बहते थक चुका है.
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यही हासिल हुआ है इक सफ़र से
हमारे पाँव में जो आबला है.
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कभी लगता है अपना बाप मुझ को
ये दिल इतना ज़ियादा टोकता है.
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नहीं है अब वो ताक़त इस बदन में
अगरचे खून अब भी खौलता है.
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हम अपनी आँखों से ख़ुद देख आए
वहाँ बस…
Added by Nilesh Shevgaonkar on October 14, 2021 at 9:00am — 20 Comments
जिस दिन से इकतरफ़ा रिश्ता टूट गया
सुनते हैं वो पागल लड़का टूट गया.
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थामा ही था हाथ तुम्हारा मैंने बस
और अचानक मेरा सपना टूट गया.
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अब ये आँखें कोई ख्वाब नहीं बुनतीं
पिछली नींद में मेरा करघा टूट गया.
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अपने लालच को तुम काबू में रक्खो
वो देखो इक और सितारा टूट गया.
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एक ज़रा सी बात से बातें यूँ बिगडीं
फिर तो जैसे हर समझौता टूट गया.
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आप अदू से दूर हुए ये नेमत है
बिल्ली की क़िस्मत से छींका टूट गया.
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कह…
Added by Nilesh Shevgaonkar on October 3, 2021 at 9:30am — 16 Comments
ख़ुद को ऐसे सँवार कर जागा
यानी उस को पुकार कर जागा.
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एक अरसा गुज़ार कर जागा
ख्व़ाब में ख़ुद से हार कर जागा.
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तेरी दुनिया बहुत नशीली थी
जिस्म को अपने पार कर जागा.
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आंखें तस्वीर की बिगाड़ी थीं
उनका काजल सुधार कर जागा.
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ख़ुद-परस्ती में मैं उनींदा था
फिर अना अपनी मार कर जागा.
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शम्स ने तीरगी पहन ली थी
सुब’ह चोला उतार कर जागा.
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रात भर आईने की आँखों में
दर्द अपने उभार कर जागा. …
Added by Nilesh Shevgaonkar on June 15, 2021 at 9:30am — 8 Comments
दिल लगाएँ, दिल जलाएँ, दिल को रुसवा हम करें
चार दिन की ज़िन्दगी में और क्या क्या हम करें?
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एक दिन बौनों की बस्ती से गुज़रना क्या हुआ
चाहने वो यह लगे क़द अपना छोटा हम करें.
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हाथ बेचे ज़ह’न बेचा और फिर ईमाँ बिका
पेट की ख़ातिर भला अब और कितना हम करें?
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चाहते हैं हम को पाना और झिझकते भी हैं वो
मसअला यानी है उनका ख़ुद को सस्ता हम करें.
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इक सितम से रू-ब-रु हैं पर ज़ुबां ख़ुलती नहीं
ये ज़माना चाहता है उस का चर्चा हम करें.…
Added by Nilesh Shevgaonkar on June 8, 2021 at 12:00pm — 8 Comments
मेरी आँखों में तुम को ख़ाब मिला?
या निचोडे से सिर्फ आब मिला.
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सोचने दो मुझे समझने दो
जब मिला बस यही जवाब मिला.
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दिल ने महसूस तो किया उस को
पर न आँखों को ये सवाब मिला.
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मैकदे में था जश्न-ए-बर्बादी
जिस में हर रिन्द कामयाब मिला.
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इतना अच्छा जो मिल गया हूँ मैं
इसलिए कहते हो “ख़राब मिला.”
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“नूर” चलने से पहले इतना कर
अपने हर कर्म का…
Added by Nilesh Shevgaonkar on October 31, 2020 at 10:01am — 12 Comments
जो शेख़ ओ बरहमन में यारी रहेगी
जलन जलने वालों की जारी रहेगी.
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मियाँ जी क़वाफ़ी को समझे हैं नौकर
अना का नशा है ख़ुमारी रहेगी.
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गले में बड़ी कोई हड्डी फँसी है
अभी आपको बे-क़रारी रहेगी.
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हुज़ूर आप बंदर से नाचा करेंगे
अकड आपकी गर मदारी रहेगी.
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हमारे ये तेवर हमारे रहेंगे
हमारी अदा बस हमारी रहेगी.
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हुज़ूर इल्तिजा है न हम से उलझिये
वगर्ना यूँ ही दिल-फ़िगारी रहेगी.
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ग़ज़ल “नूर” तुम पर न ज़ाया करेंगे …
Added by Nilesh Shevgaonkar on October 29, 2020 at 6:00pm — 14 Comments
जिन की ख़ातिर हम हुए मिस्मार; पागल हो गये
उन से मिल कर यूँ लगा बेकार पागल हो गये.
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सुन के उस इक शख्स की गुफ़्तार पागल हो गये
पागलों से लड़ने को तैयार पागल हो गये.
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छोटे लोगों को बड़ों की सुहबतें आईं न रास
ख़ुशबुएँ पाकर गुलों से ख़ार पागल हो गये.
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थी दरस की आस दिल में तो भी कम पागल न थे
और जिस पल हो गया दीदार; पागल हो गये.
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एक ही पागल था मेरे गाँव में पहले-पहल
रफ़्ता रफ़्ता हम सभी हुशियार पागल हो गये.
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इल्तिजा थी…
Added by Nilesh Shevgaonkar on October 15, 2020 at 3:00pm — 13 Comments
ख़ूब इतराते हैं हम अपना ख़ज़ाना देख कर
आँसुओं पर तो कभी उन का मुहाना देख कर.
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ग़ैब जब बख्शे ग़ज़ल तो बस यही कहता हूँ मैं
अपनी बेटी दी है उसने और घराना देख कर.
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साँप डस ले या मिले सीढ़ी ये उस के हाथ है,
हम को आज़ादी नहीं चलने की ख़ाना देख कर.
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इक तजल्ली यक-ब-यक दिल में मेरे भरती गयी
एक लौ का आँधियों से सर लड़ाना देख कर.
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ऐसे तो आसान हूँ वैसे मगर मुश्किल भी हूँ
मूड कब…
Added by Nilesh Shevgaonkar on October 3, 2020 at 12:37pm — 8 Comments
तुम्हें लगता है रस्ता जानता हूँ
मगर मैं सिर्फ चलना जानता हूँ.
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तेरे हर मूड को परखा है मैंने
तुझे तुझ से ज़ियादा जानता हूँ.
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गले मिलकर वो ख़ंजर घोंप देगा
ज़माने का इरादा जानता हूँ.
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मैं उतरा अपने ही दिल में तो पाया
अभी ख़ुद को ज़रा सा जानता हूँ.
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बहा लायी है सदियों की रवानी
मगर अपना किनारा जानता हूँ.
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बता कुछ भी कभी माँगा है तुझ से?
मैं अपना घर चलाना जानता हूँ.
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निलेश…
Added by Nilesh Shevgaonkar on September 30, 2020 at 1:46pm — 8 Comments
तर्क-ए-वफ़ा का जब कभी इल्ज़ाम आएगा
हर बार मुझ से पहले तेरा नाम आएगा.
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अच्छा हुआ जो टूट गया दिल तेरे लिए
वैसे भी तय नहीं था कि किस काम आएगा.
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अब रात घिर चुकी है इसे लौट जाने दे
यादों का क़ाफ़िला तो हर इक शाम आएगा.`
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उर्दू की बज़्म में कभी हिन्दी चला के देख
तेरे कलाम में नया आयाम आएगा.
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उस सुब’ह धमनियों में ठहर जाएगा ख़िराम
जिस भोर मेरे नाम का पैग़ाम…
ContinueAdded by Nilesh Shevgaonkar on September 27, 2020 at 12:00pm — 10 Comments
वो कहता है मेरे दिल का कोना कोना देख लिया
तो क्या उस ने तेरी यादों वाला कमरा देख लिया?
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वैसे उस इक पल में भी हम अपनों ही की भीड़ में थे
जिस पल दिल के आईने में ख़ुद को तन्हा देख लिया.
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उस के जैसा दिल तो फिर से मिलता हम को और कहाँ
सो हमने इक राह निकाली, मिलता जुलता देख लिया.
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मैख़ाने में एक शराबी अश्क मिलाकर पीता है
यादों की आँधी ने शायद उसे अकेला देख लिया.
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महशर पर हम उठ आए उस की महफ़िल से ये कहकर
तेरी दुनिया तुझे मुबारक़!…
Added by Nilesh Shevgaonkar on September 14, 2020 at 5:30pm — 15 Comments
तू ये कर और वो कर बोलता है.
न जाने कौन अन्दर बोलता है
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मेरे दुश्मन में कितनी ख़ामियाँ हैं
मगर मुझ से वो बेहतर बोलता है.
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जुबां दिल की; मेरे दिल से गुज़रकर
मेरे दुश्मन का ख़ंजर बोलता है.
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मैं कट जाऊं मगर झुकने न देना
मेरे शानों धरा सर बोलता है.
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मैं हारा हर लड़ाई जीत कर भी
जहां सुन ले! सिकंदर बोलता है.
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बहुत भारी पडूँगा अब कि तुम पर
अकेलों से दिसम्बर बोलता है.
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नया मज़हब नई दुनिया बनाओ
ये…
Added by Nilesh Shevgaonkar on November 30, 2019 at 11:30pm — 10 Comments
उन के बंटे जो खेत तो कुनबे बिखर गए,
पंछी जो उड़ चले तो घरौंदे बिख़र गए.
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सरहद पे गोलियों ने किया रक्स रात भर,
कितने घरों के नींद में सपने बिखर गए.
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यादों की आँधियों ने रँगोली बिगाड़ दी
बरसों जमे हुए थे वो चेहरे बिखर गए.
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समझा था जिस को चोर गदागर था वो कोई
ली जब तलाशी रोटी के टुकड़े बिखर गए.
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तुम जो सँवार लेते तो मुमकिन था ये बहुत
उतना नहीं बिखरते कि जितने बिखर गए .
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मुझ में कहीं छुपे थे अँधेरों के क़ाफ़िले…
Added by Nilesh Shevgaonkar on November 16, 2019 at 8:30pm — 13 Comments
लगती हैं बेरंग सारी तितलियाँ तेरे बिना
जाने अब कैसे कटेंगी सर्दियाँ तेरे बिना.
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फैलता जाता है तन्हाई का सहरा ज़ह’न में
सूखती जाती हैं दिल की क्यारियाँ तेरे बिना.
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साथ तेरे जो मुसीबत जब पड़ी, आसाँ लगी
हो गयीं दुश्वार सब आसानियाँ तेरे बिना.
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तू कहीं तो है जो अक्सर याद करता है मुझे
क्यूँ सताती हैं वगर्ना हिचकियाँ तेरे बिना?
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वक़्त लेकर जा चुका आँखों से ख़ुशियों के गुहर
अब भरी हैं ख़ाक से ये सीपियाँ तेरे बिना.…
Added by Nilesh Shevgaonkar on July 2, 2019 at 7:30am — 7 Comments
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सोचिये फिर डूबने में कितनी आसानी रहे
उनकी आँखों में जो मेरे वास्ते पानी रहे.
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मैं किसी को जोड़ने में घट भी जाऊँ ग़म न हो
ज़िन्दगानी के गणित में इतनी नादानी रहे.
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क़त्ल होते वक़्त भी मैं मुस्कुराता ही रहूँ
ताकि क़ातिल को मेरे ता-उम्र हैरानी रहे.
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क़ाफ़िला यादों का गुज़रे रेगज़ार-ए-दिल से जब
आँखों में लाज़िम है सारी रात तुग़्यानी रहे.
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क्यूँ भला सोचूँ वो दुश्मन है मेरा या कोई दोस्त
मैं रहूँ…
Added by Nilesh Shevgaonkar on November 2, 2018 at 6:45pm — 29 Comments
सँभाले थे तूफ़ाँ उमड़ते हुए
मुहब्बत से अपनी बिछड़ते हुए.
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समुन्दर नमाज़ी लगे है कोई
जबीं साहिलों पे रगड़ते हुए.
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हिमालय सा मानों कोई बोझ है
लगा शर्म से मुझ को गड़ते हुए.
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“हर इक साँस ने”; उन से कहना ज़रूर
उन्हें ही पुकारा उखड़ते हुए.
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हराना ज़माने को मुश्किल न था
मगर ख़ुद से हारा मैं लड़ते हुए.
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ज़रा देर को शम्स डूबा जो “नूर”
मिले मुझ को जुगनू अकड़ते हुए.
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निलेश "नूर"
मौलिक/…
Added by Nilesh Shevgaonkar on October 28, 2018 at 10:30am — 22 Comments
मुझ को कहा था राह में रुकना नहीं कहीं
सदियों को नाप कर भी मैं पहुँचा नहीं कहीं.
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ज़ुल्फ़ें पलक दरख़्त सभी इक तिलिस्म हैं
इस रेग़ज़ार-ए-ज़ीस्त में साया नहीं कहीं.
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तुम क्या गए तमाम नगर अजनबी हुआ
मुद्दत हुई है घर से मैं निकला नहीं कहीं.
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अँधेर कैसा मच गया सूरज के राज में
जुगनू, चराग़ कोई सितारा नहीं कहीं.
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खेतों को आस थी कि मिटा देगा तिश्नगी
गरजा फ़क़त जो अब्र वो बरसा नहीं कहीं.
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ये और बात है कि अदू को चुना गया…
Added by Nilesh Shevgaonkar on October 23, 2018 at 12:00pm — 18 Comments
रफ़्ता रफ़्ता अपनी मंज़िल से जुदा होते गए,
राह भटके लोग जिनके रहनुमा होते गए.
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तज़र्बे मिलते रहे कुछ ज़िन्दगी में बारहा
कुछ तो मंज़िल बन गए कुछ रास्ता होते गए.
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चुस्कियाँ ले ले के अक्सर मय हमें पीती रही
वो नशा होती गयी हम पारसा होते गए.
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उन चिराग़ों के लिए सूरज ने माँगी है दुआ
सुब्ह तक जलते रहे जो फिर हवा होते गए.
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ज़िन्दगी की राहों पर जब धूप झुलसाने लगी
पल तुम्हारे साथ जो गुज़रे घटा होते गए.
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फिर मुहब्बत के सफ़र…
Added by Nilesh Shevgaonkar on August 8, 2018 at 1:46pm — 14 Comments
था उन को पता अब है हवाओं की ज़ुबाँ और
उस पर भी रखे अपने चिराग़ों ने गुमाँ और.
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रखता हूँ छुपा कर जिसे, होता है अयाँ और
शोले को बुझाता हूँ तो उठता है धुआँ और
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ले फिर तेरी चौखट पे रगड़ता हूँ जबीं मैं
उठकर तेरे दर से मैं भला जाऊँ कहाँ और?
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इस बात पे फिर इश्क़ को होना ही था नाकाम
दुनिया थी अलग उन की तो अपना था जहाँ और.
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आँखों की तलाशी कभी धडकन की गवाही
होगी तो अयाँ होगा कि क्या क्या है निहाँ और.
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करते हैं…
Added by Nilesh Shevgaonkar on May 13, 2018 at 9:12am — 13 Comments
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