Added by बसंत नेमा on April 8, 2013 at 1:30pm — 5 Comments
( ये कविता सूरज को दीपक दिखाने के बराबर है फिर भी मेरी तरफ से ओबीओ के सम्मान मे एक तुच्छ सी भेट, )
खुली किताब ( OPEN BOOK )
ये खुली किताब है बडी अनोखी, है गद्य-पद्य रचना की…
Continueआयो होली को त्यौहार
रंग सतरंगी लेकर आई एक छैलछबिली नार,
आ के पास कर गई मेरे रंग बिरंगे गाल ।
कि आयो होली को त्यौहार्, कि आयो होली को त्यौहार् ॥.…
ContinueAdded by बसंत नेमा on March 14, 2013 at 2:00pm — 8 Comments
हंसबैंड
बिल शोपिंग का देते –देते, जिसकी ढीली हो गई पेंट
फिर भी हंसते हंसते जो , खुद की बजवाये बैण्ड ...
उसको कहते है हंसबैंड, की भईया कहते है हंसबैंड,
भोर भई जब सोते सोते बीबी बोले डार्लिंग,
देखो बाहर सूरज निकला, हो गई है गुड मार्निग.
यदि…
ContinueAdded by बसंत नेमा on March 11, 2013 at 11:30am — 5 Comments
घर की मुर्गी या दाल
देख पडोसी की बीबी, मेरी तबियत भडकी,
मिली नजर उससे तो, मेरी आंख फडकी,
कई दिनो तक रहा, यही सिलसिला…
ContinueAdded by बसंत नेमा on February 12, 2013 at 4:00pm — 6 Comments
शंखनाद हो रण का, अब जंग आखिरी हो जाने दो ।
आर नही अबकी, पार हमे हो जाने दो ।
हमने जिसको अपना समझा, पीठ मे खंजर उसने घोपा है।
आज बता दो उनको की, अब ये आखिरी धोखा है।
अब फूल नही हाथो मे तलवार हमे उठाने दो । आर नही अबकी, पार हमे हो जाने दो…
Added by बसंत नेमा on January 18, 2013 at 3:30pm — 7 Comments
इंसानो की बस्ती
हर ख्वाहिश हो जाये पूरी, यहाँ किसकी ऐसी हस्ती है,
लुटता है इंसान वहाँ, जहाँ इंसानो की बस्ती है ।
इंसानियत दफन हो गई, हैवानियत सब पे भारी है,
आत्मा है गिरवी सबकी, बेईमानो कि साहूकारी है,
बहता है लहु सडको पर, पानी की बुँदे बिकती है
लुटता है इंसान वहाँ, जहाँ इंसानो की बस्ती है ।
नारी ही नारी की आज, दुश्मन बन के बैठी है,
बच गई कोख मे तो, आग के हवाले…
ContinueAdded by बसंत नेमा on January 4, 2013 at 4:30pm — 4 Comments
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