क्षणिका - तूफ़ान ....
शब्
सहर से
उलझ पड़ी
सबा
मुस्कुराने लगी
देख कर
चूड़ी के टुकड़ों से
झांकता
शब् की कतरनों में
उलझता
सुलझता
जज़्बात का
तूफ़ान
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on July 18, 2018 at 2:17pm — 6 Comments
एक लम्हा ....
मेरे लिबास पर लगा
सुर्ख़ निशान
अपनी आतिश से
तारीक में बीते
लम्हों की गरमी को
ज़िंदा रखे था
मैंने
उस निशाँन को
मिटाने की
कोशिश भी नहीं की
जाने
वो कौन सा यकीन था
जो हदों को तोड़ गया
जाने कब
मैं किसी में
और कोई मुझमें
मेरा बनकर
सदियों के लिए
मेरा हो गया
एक लम्हा
रूह बनकर
रूह में कहीं
सो गया
सुशील सरना
मौलिक एवं…
Added by Sushil Sarna on July 18, 2018 at 12:25pm — 13 Comments
क्षणिका :विगत कल
दिखते नहीं
पर होते हैं
अंतस भावों की
अभियक्ति के
क्षरण होते पल
कुछ अनबोले
घावों के
तम में उदित होते
द्रवित
विगत कल
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on July 17, 2018 at 6:50pm — 5 Comments
हार ....
ज़ख्म की
हर टीस पर
उनके अक्स
उभर आते हैं
लम्हे
कुछ ज़हन में
अंगार बन जाते हैं
उन्स में बीती रातें
भला कौन भूल पाता है
ख़ुशनसीब होते हैं वो
जो
बाज़ी जीत के भी
हार जाते हैं
उन्स=मोहब्बत
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on July 13, 2018 at 6:41pm — 13 Comments
माँ ....
बताओ न
तुम कहाँ हो
माँ
दीवारों में
स्याह रातों में
अकेली बातों में
आंसूओं के
प्रपातों में
बताओं न
आखिर
तुम कहाँ हो
माँ
मेरे जिस्म पर ज़िंदा
तुम्हारे स्पर्शों में
आँगन में गूंजती
आवाज़ों में
तुम्हारी डाँट में छुपे
प्यार में
बताओं न
आखिर
तुम कहाँ हो
माँ
बुझे चूल्हे के पास
या
रंभाती गाय के पास
पानी के मटके के पास…
Added by Sushil Sarna on July 9, 2018 at 5:33pm — 11 Comments
आग़ोश -ए-जवानी ...
न, न
रहने दो
कुछ न कहो
ख़ामोश रहो
मैं
तुम्हारी ख़ामोशी में
तुम्हें सुन सकता हूँ
तुम
एक अथाह और
शांत सागर हो
मैं
चाहतों का सफ़ीना हूँ
इसे अल्फाज़ की मौजों पर
रवानी दे दो
मेरे वज़ूद को
आग़ोश -ए-जवानी दे दो
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on July 6, 2018 at 12:00pm — 6 Comments
अकेली ...
मैं
एक रात
सेज पर
एक से
दो हो गयी
जब
गहन तम में
कंवारी केंचुली
ब्याही हो गयी
छोटा सा लम्हा
हिना से
रंगीन हो गया
मेरी साँसों का
कंवारा रहना
संगीन हो गया
एक अस्तित्व
उदय हुआ
एक विलीन
हो गया
और कोई
मेरे अस्तित्व की
ज़मीन हो गया
अजनबी स्पर्शों की
मैं
सहेली हो गयी
एक जान
दो हुई
एक
अकेली हो गयी
सुशील…
ContinueAdded by Sushil Sarna on July 4, 2018 at 4:48pm — 11 Comments
प्रतीक (लघु रचना ) .....
मेरे होटों पे
तूने अपने स्पर्श से
जो मौन शब्द छोड़े थे
सोचा था
वो
ज़हन की गीली मिट्टी में गिरकर
अमर गंध बन जाएंगे
क्या पता था
वो स्पर्श
मात्र
भावनाओं की आंधी थे
जो अन्तःस्थल में
एक घुटन के
प्रतीक
बन कर रह गए
एक स्वप्न का
यथार्थ कह गए
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on June 29, 2018 at 12:43pm — 4 Comments
5 क्षणिकाएं :
१
रात
रोज मरती है
अपने दोस्त
दिन के
इंतज़ार में
................
२
तपते सागर का
दर्द
लाते हैं मेघ
भीग जाती हैं
वसुधा
...................
३
नैनालिंगन
मौन अभिनन्दन
अधर समर्पण
....................
४
ज़िद पर आ जाये
तो
पाषाणों को…
ContinueAdded by Sushil Sarna on June 28, 2018 at 4:30pm — 4 Comments
विषाक्त उजाले :
कितना लालायित था
बाहर की दुनिया से
मिलने के लिए
दम घुटने लगा था मेरा
अंदर ही अंदर
गर्भ के
घुप अँधेरे में
रोशनी से
आलिंगनबद्ध होने के लिए
जब से
गर्भ से निकला हूँ
जी रहा हूँ
अपनी ही अंतस में
चुपचाप सा
यही सोचते हुए
क्या इन्हीं
विषाक्त
उजालों के लिए
जीव
गर्भ के
अन्धकार का
त्याग करता है
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on June 27, 2018 at 6:18pm — 6 Comments
अदेह रूप ...
सर्वविदित है
देह का शून्यता में
विलीन होना
निश्चित है
मगर
अदेह चेतना
सृष्टि में व्याप्त
चैतन्य कणों से
निर्मित
आदि अंत से मुक्त
अनंत
अभिश्रुति की
अभिव्यंजना है
मुझे तुमसे मिलने के लिए
उन अदृश्य कणों से निर्मित
धागों की अदेह को
अपने चेतन में
अवतरित करना होगा
मैं
मेरी देह सी
अतृप्त नहीं रह सकती
मैं
तुमसे
अवश्य मिलूंगी
अपने
अदेह रूप…
ContinueAdded by Sushil Sarna on June 25, 2018 at 11:59am — 10 Comments
अमर हो गयी .. (लघु रचना )
स्मृति गर्भ में
एक शिला
साकार हो उठी
भाव अस्तित्व
उदित हुआ
शिला की दरारों से
आसक्ति
अदृश्यता की घाटियों से
प्रवाहित हो
स्मृतियों वीचियों पर
अक्षय पल सी
सुवासित हो
अमर हो गयी
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on June 24, 2018 at 1:27pm — 8 Comments
जाने के बाद ... लघु रचना
गुज़र गयी
एक आंधी
तुम्हारे स्पर्शों की
मेरी देह की ख़ामोश राहों से
समेटती हूँ
आज तक
मोहब्बत की चादर पर
वो बिखरे हुए लम्हे
तुम्हारे
जाने के बाद
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on June 23, 2018 at 4:00pm — 12 Comments
कुछ क्षणिकाएं :
1
शुष्क काष्ठ
अग्नि से नेह
असंगत आलिंगन
परिणति
मूक अवशेष
................
2
त्वचा हीन
नग्न वृक्ष
अवसन्न खड़े
अकाल अंत की
आहटों के मध्य
.............................
3
ईश्वर
किसी देवता का
सर्जन नहीं
गढ़त है वो
इंसान की
..........................
4
करता रहा
प्रतीक्षा
एक शंख
नाद के लिए
चिर निद्रा में सोये
मरघट में…
Added by Sushil Sarna on June 21, 2018 at 4:04pm — 14 Comments
बातें ...
लम्हों की आग़ोश में
नशीली सी रातों की
शीरीं से अल्फ़ाज़ की
महकती बातें
बे हिज़ाब रातों की
शोख़ी भरी शरारतों की
तन्हाई में भीगी
बरसाती बातें
आँखों के सागर में
जज़्बात की कश्ती में
यादों के साहिल पे
सुलगती बातें
जिस्म की पनाहों में
अनदेखी राहों में
दिल की गुफ़ाओं में
बहकती बातें
मोहब्बत के मौसम में
आँखों की शबनम में
ग़ज़ल की करवटों…
Added by Sushil Sarna on June 21, 2018 at 12:30pm — 14 Comments
कुछ क्षणिकाएं(6) :
1
नैनों का मौन
आमंत्रण
परिणाम
अभ्यंतर में
हुआ आभूषित
मौन
समर्पण
...................
2
पलकों के घरौंदों में
स्वप्न बोलते हैं
नैन
प्रभात में
यथार्थ
तौलते हैं
........................
3
चलो
हो गई मुलाकात
स्पर्शों की आंधी में
बीत गयी रात
हो गई प्रभात
............................
4
प्रेम
मौन अभिव्यक्ति…
Added by Sushil Sarna on June 18, 2018 at 4:30pm — 9 Comments
Added by Sushil Sarna on June 18, 2018 at 3:30pm — 10 Comments
बरसात ....
मेघों की गर्जना
चपला की अटखेलियां
फुहारों में भीगी तेज हवाएँ
वातायन के पटों का शोर
करवटों की रात
लो फिर आ गई
वस्ल की यादें लिए
फिर
आज बरसात
वो चेहरे से उसका
बूंदे हटाना
लटें सुलझाना
हौले से मुस्कुराना
सच कहाँ भूलेगी
वो शर्मीली सी बात
कि याद ले आई
फिर
आज बरसात
बारिश की बूंदों की
अजब सी अगन
स्पर्शों की आहट से
घबराया मन
न और हां की हो गयी…
Added by Sushil Sarna on June 15, 2018 at 7:19pm — 9 Comments
कुछ क्षणिकाएं :
शर्मिन्दा हो गई
कुर्सी
बैठ गया
एक
नंगा इंसान
चुनावी साल में
वादों की गठरी लिए
.....................
शरमा गया
इंद्रधनुष
देखकर
धरा पर
इतनी
सफेदपोश
गिरगिटों को
..........................
सफ़ेद भिखारी
मांग रहे
भीख
छोटे भिखारी से
दिखा के
आश्वासनों की
चुपड़ी रोटी
.......................
आ गया
फिर से सावन
टरटराने लगे हैं…
Added by Sushil Sarna on June 13, 2018 at 6:46pm — 5 Comments
उम्र के पन्नों पर....
उम्र के पन्नों पर
कितनी दास्तानें उभर आयी हैं
पुरानी शराब सी ये दास्तानें
अजब सा नशा देती हैं
हर कतरा अश्क का
दास्ताने मोहब्बत में
इक मील का पत्थर
नज़र आता है
रुकते ही
वक़्त
ज़हन को
हिज़्र का वो लम्हा
नज़्र कर जाता है
जब
किसी अफ़साने ने
मंज़िल से पहले
किसी मोड़ पर
अलविदा कह दिया
नगमें
दर्द की झील में नहाने लगे
किसी के अक्स
आँखों के समंदर
सुखाने…
Added by Sushil Sarna on June 8, 2018 at 6:24pm — 10 Comments
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