For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Sushil Sarna's Blog (882)

रंगहीन ख़ुतूत ...

रंगहीन ख़ुतूत ...

तन्हाई

रात की दहलीज़ पर

देर तक रुकी रही

चाँद

दस्तक देता रहा

मन

उलझा रहा

किसका दामन थामूँ

अर्श के माहताब का

पलकों के ख्वाब का

या ज़ह्न के सैलाब का

सवाल

गर्म लावे से

उबलते रहे

जवाब

तन्हाई में

सुबकते रहे

मैं ज़ीना-ज़ीना

ज़ह्न के सन्नाटों में

उतरती रही

अपनी ही साये में

बिखरती रही

बस रहे गए हाथ में

अर्थहीन अलफ़ाज़ के

रंगहीन ख़ुतूत…

Continue

Added by Sushil Sarna on December 10, 2018 at 2:00pm — 8 Comments

दो क्षणिकाएं :

दो क्षणिकाएं :

पिघल गयी
दे कर आघात
बेदर्दी याद

......................

ढाया कह्र
आफ़ताब ने
ओस की बूँद पर
बिखर गई रेज़ा-रेज़ा
तन्हा-तन्हा
रोया गुलाब

.....................

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on December 7, 2018 at 8:56pm — 10 Comments

ख़्याल ...

ख़्याल ...

मैं सो गयी
इस ख़्याल से
कि तेरा ख्याल भी
साथ मेरे सो जाएगा
मगर
तेरा ख़्याल
तमाम शब्
मेरी नींदों से
खिलवाड़ करता रहा
मैं उनींदी सी सोयी रही
उसके लम्स
मेरे ज़ह्न को
झिंझोड़ते रहे
अंततः
सौंप दिया स्वयं को
ख़्याल बनके
उस ख़्याल के हवाले

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on December 5, 2018 at 6:54pm — 3 Comments

३ क्षणिकाएँ ...

३ क्षणिकाएँ ...

छोटी सी बात

साँय-साँय करती रात

स्मृति पटल को दे गई

अमर

स्पर्श

सौग़ात

........................

व्योम

शून्यता के पर्याय के अतिरिक्त

आश्रय स्थल भी है

उन स्मृतियों का

जो जीती हैं

मिट कर भी

अंत से अनंत तक

.....................................

भला घर

खंडहर में

तब्दील कब होते हैं

जब तक

रस मधुरस में एक…
Continue

Added by Sushil Sarna on December 3, 2018 at 7:00pm — 8 Comments

कुछ क्षणिकाएं जीवन पर :

कुछ क्षणिकाएं जीवन पर :

लो

आज मैं बड़ा हो गया

अपनी नेम प्लेट

लगाकर

बूढ़ी नेमप्लेट

हटा कर

.................

ज़िंदगी

हार गयी

ज़िंदगी से

खून से

खून की दरिंदगी से

..............................

असंभव को

संभव कर दिया

ज़िंदगी को

मरघट की

राह बता कर

............................

वृद्धाश्रम में

माँ -बाप को छोड़

बड़ा उपकार किया

संतान ने

दूध का क़र्ज़

उतार…

Continue

Added by Sushil Sarna on November 29, 2018 at 3:04pm — 10 Comments

चुनौती दे डाली,,,,,,

चुनौती दे डाली ....



खिड़कियों के पर्दों ने

रोशनी के प्रभुत्व को

चुनौती दे डाली

जुगनुओं की चमक ने

अंधेरों के प्रभुत्व को

चुनौती दे डाली

अंतस की पीड़ा ने

आँखों के सैलाबों को

चुनौती दे डाली,........

विरह के अभयारण्य ने

स्मृतियों के भंडारण को

चुनौती दे डाली

बिस्तर की सलवटों ने

क्षणों की चाल को

चुनौती दे डाली

जीत के आसमान को

हार की ज़मीन ने

चुनौती दे…

Continue

Added by Sushil Sarna on November 27, 2018 at 7:28pm — 6 Comments

नया विकल्प ...

नया विकल्प ...

हंसी आती है

जब देखता हूँ

रात को दिन कहने वाले लोग

जुगनुओं की तलाश में

भटकते हैं

हंसी आती है

जब लोग नेता और अभिनेता की तासीर को

अलग-अलग मानते हैं

उनकी जीत के बाद

स्वयं हार जाते हैं

हंसी आती है

उन लोगों पर

जो मात्र हाथों में

किसी पार्टी का परचम उठाकर

स्वयं का अस्तित्व भूल जाते हैं

भूल जाते हैं कि वो

मात्र शोर का माध्यम हैं,

और कुछ नहीं

हंसी आती है…

Continue

Added by Sushil Sarna on November 26, 2018 at 6:45pm — 3 Comments

अहसासों के टोस्ट: ३ क्षणिकाएं

अहसासों के टोस्ट: ३ क्षणिकाएं

मर्म

सपनों का

बिना

काया का

साया

न अपना

न पराया

.................

कितने लम्बे

सपनों के धागे

सोच के पाँव

आसमाँ से आगे

नैन जागें

तो ये टूटें

नैन सोएं

तो ये जागें

......................

सर्द सवेरा

चाय की प्याली 

उठती भाप

अहसासों के टोस्ट

नज़रों की चुस्कियाँ

उम्र के ठहराव पर

काँपते हाथों सी

ठिठुरती…

Continue

Added by Sushil Sarna on November 19, 2018 at 2:30pm — 6 Comments

इस दर्पण में ......

इस दर्पण में ......

नहीं

मैं नहीं देखना चाहता

स्वयं का ये रूप

इस दर्पण में

नहीं देखना चाहता

स्वयं को इतना बड़ा होता

इस दर्पण में

मैं

सिर्फ और सिर्फ

देखना चाहता हूँ

अपना स्वच्छंद बचपन

इस दर्पण में

गूंजती हैं

मेरे कानों में

आज तक

माँ की लोरियाँ

ज़रा सी चोट पर

उसकी आँखों में

अश्रुधार

मेरी भूख पर

उसके दूध में लिपटा

उसका

स्निग्ध दुलार

कहाँ…

Continue

Added by Sushil Sarna on November 15, 2018 at 6:40pm — 4 Comments

3 क्षणिकाएँ....

3 क्षणिकाएँ....

लीन हैं

तुम में

मेरी कुछ

स्वप्निल प्रतिमाएँ

देखो

खण्डित न हो जाएँ

ये

पलकों की

हलचल से

...................

गहनता में
निस्तब्धता
निस्तब्धता में…
Continue

Added by Sushil Sarna on November 14, 2018 at 1:00pm — 11 Comments

कसमों की डोरी ....

कसमों की डोरी ....

चलो

कोशिश करते हैं

जीवन को

कसमों की डोरी में

रस्मों की गंध से

अलंकृत कर दें

चलो

कोशिश करते हैं

हिना के रंग को

स्नेह अभिव्यक्ति के

अनमोल पलों से

अमर कर दें

चलो

कोशिश करते हैं

अपरिचिति श्वासों को

हवन कुंड की अग्नि के समक्ष

एक दूजे में समाहित कर

सृष्टि की पावनता को

श्रृंगारित कर दें

चलो

कोशिश करते हैं

लकीरों में छुपे

अपने…

Continue

Added by Sushil Sarna on October 29, 2018 at 7:44pm — 10 Comments

2 क्षणिकाएं - शान्ति/होड़

शान्ति :

बहुत आज़मा लिया
शान्ति के लिए
युद्ध को
एक बार तो
प्यार को भी
आज़माया होता
शान्ति के लिए

...............................

होड़ ... 

बारूद के धुऐं में
झुलस गई
ज़िंदगी
सो गए
सीमाओं पर
गोलियों के बिछौने पर
खामोशियों का
कफ़न ओढ़े
पथराये से
खामोश रिश्ते
जाने क्या पाने की होड़ में
सीमा पर

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on October 29, 2018 at 4:34pm — 12 Comments

ज़िंदगी..............

ज़िंदगी   .... 

तुम आईं
तो संवरने लगी
ज़िंदगी


साथ जीने
और मरने के
अर्थ
बदलने लगी
ज़िंदगी


मौसम बदला
श्वासें बदलीं
अभिव्यक्ति की साँझ में
बिखरने लगी
ज़िंदगी


प्रतीक्षा
मौन हुई
शब्द शून्य हुए
चुपके-चुपके
स्मृति के परिधान में
सिमटने लगी
ज़िंदगी


सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on October 27, 2018 at 4:00pm — 8 Comments

मानव छंद में प्रयास :

मानव छंद में प्रयास :

मेरे मन को जान गयी ।

फिर भी वो अनजान भयी।।

शीत रैन में पवन चले।

प्रेम अगन में बदन जले।।

..................................

देह श्वास की दासी है।

अंतर्घट तक प्यासी है।।

मौत एक सच्चाई है।

जीवन तो अनुयायी है ।।

................................

रैना तुम सँग बीत गई।

मैं समझी मैं जीत गई।।

अब अधरों की बारी है।

तृप्ति तृषा से हारी है।।

सुशील सरना

मौलिक एवं…

Continue

Added by Sushil Sarna on October 23, 2018 at 8:30pm — 6 Comments

नए आयाम ....

नए आयाम ....

मुझे

नहीं सुननी

कोई आवाज़

मैंने अपने अन्तस् से

हर आवाज़ के साथ जुड़े हुए

अपनेपन की अनुभूति को

तम की काली कोठरी में

दफ़्न कर दिया है

अपनेपन का बोध

कब का मिटा दिया है

अपनेपन की सारी निधियाँ

लुटा चुका हूँ

अब तो मैं

किसी स्मृति का अवशेष हूँ

आवाज़ों के मोह बंधन में

मुझे मत बाँधो

हम दोनों के मन

एक दूसरे की अनुभूतियों के

अव्यक्त स्वरों से

गुंजित हैं

आवाज़ों को चिल्लाने दो…

Continue

Added by Sushil Sarna on October 22, 2018 at 7:42pm — 6 Comments

रावण :

रावण :

एक रावण
जला दिया
राम ने
एक रावण
ज़िंदा रहा
मन में
किसी
राम के इंतज़ार में

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on October 19, 2018 at 9:24pm — 1 Comment

अनकहा ...

अनकहा ...

अभिव्यक्ति के सुरों में

कुछ तो अनकहा रहने तो

अंतस के हर भाव को

शब्दों पर आश्रित मत करो

अंतस से अभिव्यक्ति का सफर

बहुत लम्बा होता है

अक्सर इस सफ़र में

शब्द

अपना अर्थ बदल देते हैं

शब्दों अवगुंठन में

अभिव्यक्ति

मात्र मूक व्यथा का

प्रतिबिम्ब बन जाती है

भावों की घुटन

मन कंदराओं में

घुट के रह जाती है

जीने के लिए

कुछ तो शेष रहने दो

अभिव्यक्ति के गर्भ में

कुछ तो…

Continue

Added by Sushil Sarna on October 17, 2018 at 6:30pm — 6 Comments

पागल मन ..... (400 वीं कृति )

पागल मन ..... (400 वीं कृति )

एक

लम्बे अंतराल के बाद

एक परिचित आभास

अजनबी अहसास

अंतस के पृष्ठों पे

जवाबों में उलझा

प्रश्नों का मेला

एकाकार के बाद भी

क्यूँ रहता है

आखिर

ये

पागल मन

अकेला

तुम भी न छुपा सकी

मैं भी न छुपा सका

हृदय प्रीत के

अनबोले से शब्द

स्मृतियाँ

नैन घनों से

तरल हो

अवसन्न से अधरों पर

क्या रुकी कि

मधुपल का हर पल

जीवित हो उठा

मन हस पड़ा…

Continue

Added by Sushil Sarna on October 15, 2018 at 7:48pm — 14 Comments

३ क्षणिकाएं....

३ क्षणिकाएं....

भावनाओं की घास पर

ओस की बूंदें

रोती रही

शायद

बादलों को ओढ़कर

रात भर

चांदनी

... ... ... ... ... ... .

गोद दिया

सुबह की ओस ने

गुलाब को

महक

तड़पती रही

अहसासों के बियाबाँ में

यादों की नोकों पर

... ... ... .. .. .. .. . .

आकाश

ज़िंदगी भर

इंसान को

छत का सुकून देता रहा

उसे

धूप दी, पानी दिया ,

ईश के होने का

अहसास दिया

मगर

वह रे इंसान

आया जो…

Continue

Added by Sushil Sarna on October 8, 2018 at 7:07pm — 18 Comments

अजनबी लगता है ... ...

अजनबी लगता है ... ...

न वज़ह पूछी

न मौका मिला

वक्त सरकता रहा

कोई अपना

हर लम्हा

अजनबी लगता रहा

किसे आवाज़ दूँ

तारीकियों की क़बा में

उजालों को ओढ़ कर

खो गयी कोई तलाश

टूट गया

उसके साये होने का भ्रम

बावज़ूद ज़िस्मानी करीबी के

वो हर नफ़स

जाने क्यूँ

अजनबी लगता रहा

झूठ है

वो अजनबी है

मेरी तिश्नगी का

समंदर है वो

मेरे हर ख्वाब का

मंज़र है वो

मेरे ज़ह्न में सदियों से…

Continue

Added by Sushil Sarna on October 5, 2018 at 6:07pm — 7 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई लक्ष्मण सिंह 'मुसाफिर' साहब! हार्दिक बधाई आपको !"
15 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय मिथिलेश भाई, रचनाओं पर आपकी आमद रचनाकर्म के प्रति आश्वस्त करती है.  लिखा-कहा समीचीन और…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ सर, गाली की रदीफ और ये काफिया। क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस शानदार प्रस्तुति हेतु…"
Tuesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service