2122 - 2122 - 2122 - 212
फ़ाइलातुन-फ़ाइलातुन-फ़ाइलातुन-फ़ाइलुन
(बह्र- रमल मुसम्मन् महज़ूफ़)
मसनदों पर आज बैठे हो नहीं बैठोगे कल
फ़र्श पर आ जाओ वैसे भी यहीं बैठोगे कल
देना होगा पूरा-पूरा साहिबो तुमको हिसाब
रू-ब-रू नज़रें मिलाकर यूँ नहीं बैठोगे कल
आज तुम हो होगा कल हाकिम ज़माना देखना
जाग उट्ठा है बशर अब छुप कहीं बैठोगे कल…
Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on July 11, 2021 at 3:54pm — 8 Comments
221 - 2121 - 1221 - 212
है कौन ऐसा जिसको यहाँ आज ग़म नहीं
हर दिल में याद यादों के नश्तर भी कम नहीं
दहलाता हर किसी को ये मंज़र है ख़ौफ़नाक
साँसें हुईं मुहाल कि मसला शिकम नहीं
ग़म को वसीह करते ये अटके हुए बदन
नदियों के तट भी गोर-ए-ग़रीबाँ से कम नहीं
आई वबा ये कैसी कि मातम है हर तरफ़
ग़मगीन चहरे लाशों पे लाशें भी कम नहीं
मस्कन भी थी ये गंगा है मद्फ़न भी आज…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on July 2, 2021 at 11:15pm — 17 Comments
1222 - 1222 - 1222 - 1222
(बह्र-ए-हज़ज मुसम्मन सालिम)
जगह दिल में तुम्हारे अब भी थोड़ी सी बची है क्या
मेरे बिन ज़िन्दगी में जो कमी सी थी वही है क्या
अभी तक आरज़ू जो दफ़्न कर रक्खी है सीने में
तड़प उसकी जो सुनता हूँ वो तुमने भी सुनी है क्या
तेरे साँसों की गर्मी से पिघल कर रह गया हूँ मैं
जो हालत हो गई मेरी वही तेरी हुई है क्या
मिले हो जब भी…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on July 2, 2021 at 6:04pm — 7 Comments
2222 - 2222
हो के पशेमाँ याद करोगे
रो कर भी फ़रियाद करोगे
याद करोगे जब भी हमको
अश्क़ अपने बरबाद करोगे
ज़ख़्म लगेंगे जब फूलों से
तुम हमको तब याद करोगे
घर तो बसा लोगे यारो पर
दिल कैसे आबाद करोगे
उतनी दुआएं दूँगा तुमको
जितना मुझे बरबाद करोगे
बज़्म तुम्हारी हुक्म तुम्हारा
जो चाहे इरशाद करोगे
मेरी ख़ातिर छोड़ो भी…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on June 20, 2021 at 9:00pm — 4 Comments
हमने तो अब ये ठाना है
कोरोना को हराना है
अब साथ न छूटेगा ये
वादा हमें निभाना है
कोरोना को हराना है... कोरोना को हराना है।
जाना हो जब ज़रूरी
सबसे दो गज़ की दूरी
कर हाथ सेनिटाइज़्ड
और मास्क भी लगाना है
कोरोना को हराना है... कोरोना को हराना है।
बाहर से जब भी आओ
अच्छी तरह नहाओ
ज्वर, छींक हो या खाँसी
डाॅक्टर को ही दिखाना है
कोरोना को …
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on April 12, 2021 at 7:02pm — 6 Comments
1212 - 1122 - 1212 - (112 / 22)
किसी की याद में ख़ुद को भुला के देखते हैं
निशान ज़ख्मों के हम मुस्कुरा के देखते हैं
निकल तो आए हैं तूफ़ाँ की ज़द से दूर बहुत
भँवर हैं कितने ही जो सर उठा के देखते हैं
चले भी आओ कि अब इंतज़ार होता नहीं
कि अब ये रस्ते हमें मुँह चिढ़ा के देखते हैं
ये ज़िन्दगी भी फ़ना कर दी हमने जिनके लिए
वही तो हैं जो हमें आज़मा के देखते हैं
तेरी जफ़ा …
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on April 3, 2021 at 6:11pm — 18 Comments
कोशिश करो हिम्मत करो
आगे बढ़ो बढ़ते रहो आगे बढ़ो... आगे बढ़ो...
गिरने के डर से मत रुको
गिर जाओ तो फिर से उठो आगे बढ़ो... आगे बढ़ो...
मंज़िल तुम्हें मिल जाएगी
क़िस्मत भी ये खुल जाएगी
मंज़िल के मिलने तक चलो
चलते रहो चलते रहो आगे बढ़ो... आगे बढ़ो...
रुकने से कुछ हासिल नहीं
रुक जाए जो कामिल नहीं
उठते क़दम पीछे न लो
पूरा करो जो …
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on April 1, 2021 at 8:26am — 2 Comments
2212 - 1212 - 2212 - 12
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मुश्किल सहीह ये फिर भी है महबूब ज़िन्दगी
रब का हसीन तुहफ़ा है क्या ख़ूब ज़िन्दगी
.
आजिज़ हैं ज़िन्दगी से जो वो भी मुरीद हैं
तालिब सभी हैं इसके है मतलूब ज़िन्दगी
.
हर लम्हा शादमाँ है तेरे दम से दिल मेरा
जब से हुई है तुझसे ये मन्सूब ज़िन्दगी
.
जिसने नज़र उठा के भी देखा नहीं मुझे
उस पर हुई है देखिए मरग़ूब ज़िन्दगी
.
लोगों के दिल…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on March 31, 2021 at 9:22am — 4 Comments
122 - 122 - 122 - 122
हमें तुम से कोई शिकायत नहीं है
तुम्हें भी तो हम से महब्बत नहीं है
जो शिकवा था हमसे हमें ही बताते
यूँ बदनाम करना शराफ़त नहीं है
किया जो भरोसा तो कर लो यक़ीं भी
तुम्हारे सिवा कोई चाहत नहीं है
ख़फ़ा होके हमसे जुदा होने वाले
ज़रा कह दे हमसे अदावत नहीं है
करोगे वफ़ा जो वफ़ा ही मिलेगी
महब्बत की ऐसी रिवायत नहीं है
तुम्हें दिल के बदले ये जाँ हमने…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on March 28, 2021 at 12:10pm — 2 Comments
2122- 2122- 2122- 212
तू वतन की आबरू है तू वतन की शान है
ऐ शहीद-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत तुझपे दिल क़ुर्बान है
तेरी जुर्रत से हुआ नाकाम दुश्मन हिन्द का
नाज़ करता आज तुझपे सारा हिन्दुस्तान है
हैं मुबारक तेरी गलियांँ, गाँव तेरा, घर तिरा
मरहबा माँ बाप हैं वो जिनकी तू संतान है
ईद हो या हो दिवाली सरहदों पर ही रहा
मेरी धड़कन मेरी साँसों पर तेरा अहसान है
मुल्क पर होते फ़िदा जो वो कभी मरते…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on March 26, 2021 at 3:45pm — 8 Comments
2212 - 1221 - 2212 - 12
जो दर्द रूह का है ज़बाँ पर न आयेगा
शिकवा भी कोई सुनने यहाँ पर न आयेगा
उसका पयाम ये है कि आयेगा 'दफ़्न' पर
ली थी क़सम जो उसने यहाँ पर न आयेगा
वो साथ मेरे यूँ तो रहा है तमाम उम्र
सुनता है मेरी आह-ओ-फ़ुग़ाँ, पर न आयेगा
जलकर ये ख़ाक़ हो भी चुका है वजूद अब
तुमको नज़र ज़रा भी धुआँ पर न आयेगा
नज़रों के रास्ते जो उतर दिल में करले घर
अब तीर ऐसा कोई कमाँ पर न…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on March 13, 2021 at 12:09am — 2 Comments
2122 - 1122 - 22/112
इक जहाँ और बसाओ तो चलें
फिर मुझे अपना बनाओ तो चलें
उम्र भर साथ निबाहो तो चलें
फ़ासिले दिल के मिटाओ तो चलें
चन्द क़दमों की रिफ़ाक़त क्या है
हर क़दम साथ बढ़ाओ तो चलें
ज़िन्दगी हम ने गवाँ दी यूँ ही
हासिल-ए-इश्क़ बताओ तो चलें
जितने पर्दे हैं उठा दो न सनम
राज़ उल्फ़त के सुनाओ तो चलें
ज़िन्दगी ! ऐसी भी क्या उजलत…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on March 12, 2021 at 12:13am — 4 Comments
221 - 1222 - 221 - 1222
हम जिनकी मुहब्बत में दिन रात तड़पते हैं
होते ही ख़फ़ा हमसे दुश्मन से जा मिलते हैं
गुलशन में तेरे हर दिन नए ग़ुंचे चटकते हैं
गिर जाते हैं कुछ पत्ते कुछ फूल महकते हैं
माली है तू हम सबका हम भी हैं तेरी बुलबुल
हमको ये शरफ़ हासिल हम यूँ ही चहकते हैं
आँखों में मुहब्बत भर देखा जो हमें तुम ने
छाया है सुरूर ऐसा हम ख़ुद ही बहकते हैं
कुछ ऐसी तपिश तेरे पैकर की हुई…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on March 11, 2021 at 3:53pm — 8 Comments
122-122-122-122
निगाहों-निगाहों में क्या माजरा है
न उनको ख़बर है न हमको पता है
न तुमने कहा कुछ न मैंने सुना है
निगाहों से ही सब बयाँ हो रहा है
ख़ुमारी फ़ज़ा में ये छाई है कैसी
ख़िरामा ख़िरामा नशा छा रहा है
मुहब्बत की ऐसी हवा चल पड़ी ये
मुअत्तर महब्बत में सब हो गया है
मिलाकर निगाहें तेरा मुस्कुराना
मेरे दिल पे जानाँ ग़ज़ब ढा गया है
निगाहें …
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on March 4, 2021 at 10:28pm — 2 Comments
1212 - 1122 - 1212 - 22
घटा ग़मों की वही दिल पे छा गई फिर से
वो दास्तान ज़ुबाँ पर जो आ गई फिर से
ये उम्र कैसे कटेगी कहाँ बसर होगी
अँधेरी रात की जाने न कब सहर होगी
शिकस्त सारी उमीदें मिटा गई फिर से
घटा ग़मों की वही दिल पे छा गई फिर से
मुझे गुमाँ भी नहीं था हबीब बदलेगा
बदल गया है मगर, यूँ नसीब बदलेगा?
बहार बनके ख़िज़ाँ ही जला गई फिर से
घटा ग़मों की वही दिल पे छा गई फिर…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on February 22, 2021 at 8:30am — 6 Comments
2122 - 1122 - 112
कब से बैठे हैं तेरे दर पे सनम
अब तो हो जाए महरबान करम......1
ग़ैर समझो न हमें यार सुनो
हम तुम्हारे हैं तुम्हारे ही थे हम....... 2
बात चाहे न मेरी मानो, सुनो!
कीलें राहों में उगाओ न सनम....... 3
देके हमको भी अज़ीयत ये सुनो
दर्द तुमको भी तो होगा नहीं कम... 4
हम भी इन्सान हैं समझो तो ज़रा
देखो अच्छे नहीं इतने भी सितम....5
जिस्म से जान जुदा होती…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on February 15, 2021 at 9:32pm — 5 Comments
2212 - 1222 - 212 - 122
इक है ज़मीं हमारी इक आसमाँ हमारा
इक है ये इक रहेगा भारत हमारा प्यारा
हिन्दू हों या कि मुस्लिम सारे हैं भाई-भाई
होंगे न अब कभी भी तक़्सीम हम दुबारा
यौम-ए-जम्हूरियत पर ख़ुशियाँ मना रहे हैं
हासिल शरफ़ जो है ये, ख़ूँ भी बहा हमारा
अपने शहीदों को तुम हरगिज़ न भूल जाना
यादों को दिल में उनकी रखना जवाँ…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on February 6, 2021 at 7:27pm — 5 Comments
2212 - 1222 - 212 - 122
दामन बचा के हमने दिल पर उठाए ग़म भी
बेदाग़ हो गये हैं सब कुछ लुटा के हम भी
कुछ ख़्वाब थे हसीं कुछ अरमाँ थे प्यारे प्यारे
अहल-ए-वफ़ा से तालिब थे तो वफ़ा के हम भी
उस शख़्स-ए-बावफ़ा से सबने वफ़ा ही पाई
ये बात और है के हम को मिले हैं ग़म भी
गर्दिश में हूँ अगरचे रौशन है दिल की महफ़िल
लब ख़ुश्क़ हैं तो क्या है आँखे हैं मेरी नम भी
ज़ुल्फ़ों की छाँव मिलती पलकों का साया…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on February 2, 2021 at 11:28pm — 6 Comments
1222 - 1222 - 1222 - 1222
ज़मीं होगी तुम्हारी पर फ़सल बेचेंगे यारों हम
मिलेगी तुमको राॅयल्टी न देंगे खेत यारों हम
जो बोएगा वही काटेगा ये बातें पुरानी हैं
फ़सल तय्यार करना तुम मगर काटेंगे यारों हम
ये जोड़ी अब तुम्हारी और हमारी ख़ूब चमकेगी
करो मज़दूरी तुम डटकर करें व्यापार यारों हम
ज़मीं पर बस हमारी ही हुकूमत होगी अब प्यारो
मईशत 'उनके' हाथों में न जाने देंगे यारों हम
रखेंगे हम ज़ख़ीरा कर…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on January 29, 2021 at 11:46pm — 14 Comments
1222-1222-1222-1222
निगलते भी नहीं बनता उगलते भी नहीं बनता
हुई उनसे ख़ता ऐसी सँभलते भी नहीं बनता
इजारा बज़्म पे ऐसा हुआ कुछ बदज़बानों का
यहाँ रुकना भी ज़हमत है कि चलते भी नहीं बनता
जुगलबंदी हुई जब से ये शैख़-ओ-बरहमन की हिट
ज़बाँ से शे'र क्या मिसरा निकलते भी नहीं बनता
रक़ीबों को ख़ुशी ऐसी मिली हमको तबाह करके
कि चाहें ऊँचा उड़ना पर उछलते भी नहीं बनता
ख़ुद…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on October 29, 2020 at 11:13am — 10 Comments
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