2122--2122--2122--212
इस मकां को बामो-दर से एक घर करती रही |
माँ मुसलसल काम अपना उम्र भर करती रही |
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धूप बारिश सर्दियों को मुख़्तसर करती रही |
बीज की कुछ कोशिशें मिलकर शज़र करती रही… |
Added by मिथिलेश वामनकर on August 5, 2015 at 1:00am — 16 Comments
212—212—1222 |
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पास दिल के जो डर नहीं आता |
राहे-हक हमसफर नहीं आता |
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आज बेटा बदल गया कितना |
एक आवाज़ पर नहीं… |
Added by मिथिलेश वामनकर on August 3, 2015 at 9:30am — 42 Comments
“आज फ्रेंडशिप डे है मगर ये डिसिप्लिन साला!....... सेलिब्रेट भी नहीं कर सकते.”
“आर्मी लाइफ है ब्रदर.”
“सुना, अमेरिका में ईराक पर हमले का अमेरिकी सैनिकों के साथ-साथ सिविलियन भी विरोध कर रहे है.”
“हाँ यार...... इतने पावरफुल देश की सेना में डिसिप्लिन ही नहीं है क्या?”
“अच्छा.... अगर इन्डियन आर्मी पाकिस्तान पर हमला करें तो क्या यहाँ भी विरोध होगा?”
“ अबे गद्दारों जैसी बात मत कर.......हमारा देश, राष्ट्रभक्तों का देश हैं. इसकी बुनियाद में…
ContinueAdded by मिथिलेश वामनकर on August 2, 2015 at 3:49am — 34 Comments
1222--1222—1222--1222 |
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लगे बोली सियासत में, भला आम-आदमी का क्या? |
निजाम-ए-मुल्क जो कह दे मगर इस अबतरी का क्या? |
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अगर दो वक़्त की… |
Added by मिथिलेश वामनकर on August 1, 2015 at 5:00am — 26 Comments
“मम्मा मेरे लिए ब्रेकफास्ट में केवल फ्रूट सलाद बनाना.”
“आज फ्रूट्स नहीं है... कुछ और बना दूं ?”
“नहीं” - परी ने मना कर दिया क्योकिं पार्टी में हैवी डाईट के कारण ब्रेकफास्ट लाईट करना चाहती थी. तभी बेडरूम से पापा बाहर आये. अपनी इकलौती बेटी को देर रात से घर आने के लिए समझाते रहें और मॉर्निंग-वाक के लिए निकल गए.
“मम्मा... ये पापा सुबह-सुबह चालू हो जाते है, ये करो, ये मत करो.... ये लेट नाईट पार्टीज हमारा कल्चर नहीं है. ब्ला ब्ला ब्ला.......”
“तुम्हारी केयर करते है पापा, इसलिए…
Added by मिथिलेश वामनकर on July 29, 2015 at 2:58am — 23 Comments
2122 / 2122 / 2122 / 212 (इस्लाही ग़ज़ल) |
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बेबसी को याख़ुदा मुझ नातवाँ से दूर रख |
या तो ऐसा कर मुझे मुश्किल जहाँ से दूर रख |
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उस परीवश को घड़ी भर आज जाँ से… |
Added by मिथिलेश वामनकर on July 26, 2015 at 11:58pm — 37 Comments
“आज बहुत लेट हो गई ? ’मम्मा ऑफिस से कब आएगी’, पूछ-पूछ कर परी ने कबसे परेशान कर रखा है..”
सासू माँ की बगल में सुनंदा की तीन साल की बेटी चुपचाप अपनी गुड़िया के साथ खेल में मग्न थी.
“मधुकर भैया है न, इनके दोस्त, उनके यहाँ बेटी हुई है, बस हॉस्पिटल गई थी. इनका फोन आया था कि वो नहीं जा पाएंगे इसलिए मुझे जाना पड़ा.” - सुनंदा की आवाज़ सुनकर परी दौड़ती हुई अपनी मम्मा से लिपट गई.
“अरे उसकी तो पहले ही एक लड़की है न ?... काश इस बार लड़का हो जाता.. अच्छा…
Added by मिथिलेश वामनकर on July 21, 2015 at 3:30am — 34 Comments
इस बार वह अकेली मायके आई थी. वो जब भी आती, बाबा से लिपट जाती. बाबा खूब दुलारते. बाबा की परी थी वो.
लेकिन इस बार बाबा बस ससुराल वालों की खैर-खबर पूछकर बाहर चले गए. माँ ने भी उसकी पसंद का भोजन पकाया था. तृप्त तो हो गई वो, मगर उसे घर के माहौल में आये बदलाव को भांपते देर न लगी. आज पूरे पंद्रह दिन हो गए थे उसे यहाँ आये हुए. बाबा बेटे की बेरोजगारी और आवारागर्दी से अब अधिक ही परेशान दिखने लगे थे. उसकी उलटी सीधी मांगों को इसी भय से मान लेते कि कहीं कुछ कर न ले. उसे भी भइया को देख कर…
ContinueAdded by मिथिलेश वामनकर on July 14, 2015 at 10:30pm — 27 Comments
2122 / 2122 / 212 |
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आजकल जो मित्रवत व्यवहार है |
एक धोखा है नया व्यापार है |
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सर्जना भी अब कहाँ मौलिक रही |
जो… |
Added by मिथिलेश वामनकर on July 8, 2015 at 5:51pm — 23 Comments
मुफ़तइलुन / मफ़ाइलुन/ मुफ़तइलुन / मफ़ाइलुन (इस्लाही ग़ज़ल) |
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गम दे, ख़ुशी दे ज़िन्दगी, कितनी किसे हिसाब क्या |
दरिया फ़ना हयात का, मुझसा वहां हुबाब क्या … |
Added by मिथिलेश वामनकर on May 25, 2015 at 9:30am — 39 Comments
1222---1222---1222---1222 |
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करो मत फ़िक्र दुनिया की, जो होता है वो होने दो |
जिन्हें कांटें चुभोना है, उन्हें कांटें चुभोने दो |
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हमारी तिश्नगी नादिम, अजी ये चाहती… |
Added by मिथिलेश वामनकर on May 20, 2015 at 10:30am — 29 Comments
फ़'इ'लात फ़ाइलातुन फ़'इ'लात फ़ाइलातुन (बह्र-ए-शिकस्ता) |
1121 - 2122 - 1121 - 2122 |
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मेरे नाम से न चाहे तू अगर तो मत सदा दे |
मुझे देख के मगर तू, कभी हाथ तो हिला दे… |
Added by मिथिलेश वामनकर on May 5, 2015 at 10:00pm — 25 Comments
212---212---212---212 |
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तीरगी सा मैं पसरा रहा रात भर |
दीप मन का भी जलता रहा रात भर |
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पा पटक के गया आज पंछी कोई… |
Added by मिथिलेश वामनकर on April 19, 2015 at 10:30am — 15 Comments
22-22-22-22-22-2 जो रह-रहकर इस सीने में उठता है |
तेरा मेरा दर्द पुराना किस्सा है |
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उनकी आँखों से उतरे हर आँसू से |
ग़ज़लों को भी गीला होते देखा है… |
Added by मिथिलेश वामनकर on April 15, 2015 at 10:30am — 17 Comments
212---1222---212---1222 |
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झूठ भी नहीं कहते, सत्य भी नहीं कहते |
दो नयन तुम्हारे पर, मौन भी नहीं रहते |
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प्रीत का कहो कैसे, आप सुख उठाएंगे… |
Added by मिथिलेश वामनकर on April 12, 2015 at 10:30am — 14 Comments
22—22—22—22—22—2 |
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पलकों से हर लफ्ज़ सजाना पड़ता है |
आँसू पीकर गीत बनाना पड़ता है |
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मंहगाई में झूठा रौब जताने को… |
Added by मिथिलेश वामनकर on April 9, 2015 at 1:30am — 16 Comments
21122---21122---2112 |
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हाय मिली क्या खूब शराफत, तुम भी न बस |
बात करो, हर बात शरारत, तुम भी न बस |
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हम को सताने यार गज़ब तरकीब चुनी … |
Added by मिथिलेश वामनकर on April 7, 2015 at 12:56am — 31 Comments
22—22—22—---22—22--22 |
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मीलों पीछे सच्चाई को छोड़ गया हूँ |
हत्थे चढ़ जाने के भय से रोज दबा हूँ |
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दीवारों पर अरमानों के ख़्वाब टंगे हैं… |
Added by मिथिलेश वामनकर on April 5, 2015 at 7:30pm — 37 Comments
22-22--22-22--22-22—2 |
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तुम बिन सूने-सूने लगते जीवन-वीवन सब |
साँसें-वाँसें, खुशबू-वुशबू, धड़कन-वड़कन सब |
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आज सियासत ने धोके से, अपने बाँटें… |
Added by मिथिलेश वामनकर on April 2, 2015 at 11:00pm — 38 Comments
1222---1222---1222---1222 |
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सभी खामोश बैठे हैं, सदा पर आज ताले हैं |
हमारी बात के सबने गलत मतलब निकाले हैं |
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उजड़ते शह्र का मंजर न देखें सुर्ख रू साहिब… |
Added by मिथिलेश वामनकर on March 29, 2015 at 10:00pm — 22 Comments
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