उसे स्कूल के दिन याद आ रहे हैं,जब क्लास शुरू होने के पहले,टिफिन में और कभी कभी स्कूल छूटने के बाद भी कबड्डी खेलना कितना पसंद था उन्हें। बुढ़िया कबड्डी में दोनों पक्षों की एक एक बूढ़ी गोल यानी गोल खिंचे हुए दायरे में हुआ करती।प्रत्येक बूढ़ी के आगे विरोधी पक्ष के खिलाड़ी होते। बारी बारी से दोनों पक्ष अपनी अपनी बूढ़ी को मुक्त कराने की कोशिश करते,वह सत्ता की प्रतीक होती;रानी भी कह लें।एक पक्ष का कोई खिलाड़ी "कबड्डी कबड्डी...." करते हुए दौड़ता,विपरीत पक्ष के खिलाड़ी भागते कि कहीं वह…
ContinueAdded by Manan Kumar singh on November 16, 2019 at 9:30am — 4 Comments
कोयल मौसम में समरसता घोल रही थी।लोग उसकी सुमधुर धुन पर थिरक से रहे थे। लग रहा था कि पहले की रही सही रंजिश अब नहीं रही।यह सब कौवे को नागवार लगा।उसने अकस्मात अपनी पूरी कर्कशता से कांव कांव करना शुरू कर दिया।कोयल बिदकी,"यह कर्कशता कैसी भाई?अभी मेल जोल का माहौल है।खुशियां बांटें"।
"कैसा मेल जोल?तू मेरी आवाज बदल सकती है क्या?"
"नहीं।"
"तो फिर? तू अपनी गा, मैं अपना गाऊंगा।"
"ऐसा?"
"और क्या?अपनी आवाज में…
Added by Manan Kumar singh on November 10, 2019 at 7:30am — 5 Comments
काम(लघुकथा)
***
"हम तुम्हें मुफ्त में सबकुछ देंगे", नेताजी ने एलान किया।
"मुफ्त में सबकुछ?" भीड़ से आवाज आई।
"हां। क्यों भरोसा नहीं तुमलोगों को?"
"अरे दे सको,तो काम दो सबको।"भीड़ से आवाज आई।
"हां, हां। काम चाहिए,काम।जैसे तुम्हे रोजगार मिले,औरों को भी दोगे,ऐसा बोलो।"भीड़ फिर से चिल्लाई।
"हम भी तो कुछ देने ही आए हैं।"
"जब सब कुछ देना ही है,तो फिर कुछ क्यों?हम बाद में ही मांगेंगे।तुम्हारा इस्तीफा भी,ज़रूरी हुआ तो।"
"ऐं?"नेताजी बगलें झांकने लगे।
"…
ContinueAdded by Manan Kumar singh on November 3, 2019 at 7:50pm — 5 Comments
122 122 122 122
गजल बेबहर है, नदी बिन लहर है
कहो,क्या करूँ जब बिखरता जहर है?1
कहूँ क्या भला मैं? सुनेगा न कोई,
हुआ हादसा,मौन सारा शहर है।2
बचेगी नहीं लाज समझा करो तुम
बहकती यहां की हवा हर पहर है।3
गिनूँ क्या सितम गैर से जो मिले
मिले दर्द घर में, बड़ा ही कहर है।4
बुझाते रहे जो चिरागों को' अबतक
बताते कि होने को' अब तो सहर है।5
"मौलिक व अप्रकाशित"
Added by Manan Kumar singh on October 21, 2019 at 11:00am — 2 Comments
122 122 122 12
चलो भी जला के दिखा दें दिये
चले जा रहे वे अँधेरा किये।1
बहुत दिन गये चोट खाते हुए
रहेंगे कहाँ तक कहो मुँह सिये।2
किये जा रहे मौज मस्ती बड़ी
भुलाते हमें,जो हमारे हिये।3
चले पाँव नंगे, मिलीं कुर्सियाँ
लगा आजकल हैं नशा वे पिये।4
उड़ीं जो पतंगें, हुईं बेवफा
पिटे लोग लगता है' अपने किये।5
"मौलिक व अप्रकाशित"
Added by Manan Kumar singh on October 2, 2019 at 7:28am — 3 Comments
जुबां से फूल झड़ते हैं मगर पत्थर उछालें वे
गजब दिलदार हैं, महबूब हैं बस खार पालें वे।1
लगाते आग पानी में, हमेशा ही लगे रहते
बुझे क्यूँ रार की बाती, नई तीली निकालें वे।2
दिलों की आग जब उठकर दिलों को यूँ बुलाती है
करेंगे और क्या बस शीत जल हर बार डालें वे।3
समझना हो गया मुश्किल चलन अब के रफ़ीकों का
सियाही लिख नहीं सकती है' कितना रोज सालें वे।4
हकीकत फासलों में कैद होकर छटपटाती है
सुनेंगे तो नहीं कुछ गाल जितना भी बजालें वे।5
"मौलिक व…
Added by Manan Kumar singh on September 16, 2019 at 8:10am — 6 Comments
चाँद से अब दोस्ती का सिलसिला चलता रहेगा
कब तलक वह मुस्कुराता भेदमय मामा रहेगा?1
कौड़ियों का खेल हम करते नहीं, सब जानते हैं
मुँह दिखाई तक हमारा हर कदम पहला रहेगा।2
दूरियों का गम नहीं करते कभी हम इश्क वाले
पाँव रखने में सतह पर जोर कुछ ज्यादा रहेगा।3
आज इसरो की तपिश में तन-बदन पिघला जरा-सा
कल सुहाने और होंगे साथ में नासा रहेगा।4
क्यूँ लजाना कोटि नजरें प्यार से फिर फिर निहारें
मन हुआ जाता व्यथित, पर हाथ में खाका रहेगा।5
वक्त की रुसवाइयों का…
ContinueAdded by Manan Kumar singh on September 8, 2019 at 4:45pm — 2 Comments
फूल को काँटा चुभाना तो कभी अच्छा नहीं
घाव देकर मुस्कुराना तो कभी अच्छा नहीं।1
प्रेम के बिरवे उगें तो वादियाँ गुलजार हों
बेरहम पत्थर उठाना तो कभी अच्छा नहीं।2
रोशनी का सिलसिला चलने लगा,चलने भी' दो
भोर का सूरज चुराना तो कभी अच्छा नहीं।3
प्यास धरती की बढ़ा क्यूँ फिर चले काली घटा?
जल रहे को फिर जलाना तो कभी अच्छा नहीं।4
दाग औरों को लगाने को सभी बेताब हैं,
आँख से काजल उड़ाना तो कभी अच्छा नहीं।5
इल्म…
ContinueAdded by Manan Kumar singh on September 1, 2019 at 8:30am — 2 Comments
शरणार्थी
(1)
---
दो मित्र आपस में बातें कर रहे थे;एक मानवतावादी था, दूसरा समाजवादी।पहले ने कहा-
अरे भई!वो भी आदमी हैं,परिस्थिति के मारे हुए।बेचारों को शरण देना पुण्य-परमार्थ का काम है।
दूसरा:हाँ तभी तक,जबतक यहाँ के लोगों को शरणार्थी बनने की नौबत न आ जाये।
(2)
---
-हाँ,जुझारूपन हमारे खून में है।
-हमारी खातिर तुम क्या करोगे?
-जान भी दे सकते हैं।
-हमें वोट चाहिए।जान…
Added by Manan Kumar singh on June 8, 2019 at 8:53am — 2 Comments
2122 2122 2122 2
मत समझना मैं पढ़ा अख़बार हूँ कल का
हमसफ़र हूँ,काबिले-आसार हूँ कल का।1
राह सिमटी जा रही है आज की पल-पल
देख लो मुझको जरा आधार हूँ कल का।2
कौड़ियों के मोल बिकता आज तुम्हारा
सच लिए चलता रहा मनुहार हूँ कल का।3
रोशनाई की उमंगों का…
ContinueAdded by Manan Kumar singh on February 8, 2019 at 11:00pm — 6 Comments
22 22 22 22
जैसे-तैसे बात बनी है
रमई चादर हाथ लगी है।1
मंदिर-मंदिर घूम रहा मैं
चमचा-चमचा आस पली है।2
'बबुआ काम करेगा बढ़कर',
'दादाओं' ने बात कही है।3
'मम्मी' का मैं राजदुलारा
लगता, 'पगड़ी' माथ चढ़ी है।4
अपनी कुर्सी पर बैठा 'वह'
दिल में कितनी बात खली है!5
साँझ-सबेरे ईश-विनय कर
'राम-रमा' में प्रीत जगी है।6
रंगे आज सियार बहुत हैं
मुझपर सबकी आँख लगी है।7
चोट…
ContinueAdded by Manan Kumar singh on November 11, 2018 at 11:08am — 6 Comments
122 122 122 12
उठे हैं किसी को गिरा के मियाँ
चले पाग सर पे सजा के मियाँ।1
कहा था, डरेगा न कोई यहाँ
रहे खुद को हाफ़िज बना के मियाँ।2
रहेगा न सूखा शज़र एक भी--
कहें नीर सारा सुखा के मियाँ।3
मिटी भूख उनकी हुए सब सुखी
चहकते चले माल खा के मियाँ।4
किये लाख सज़दे, मिले कब सनम?
गये थे कभी सर नवा के…
Added by Manan Kumar singh on October 29, 2018 at 7:15am — 10 Comments
2122 2122 2122 212
था कभी कितना नरम वह! हर कदर आखर हुआ
जब हवाओं ने छुआ तब पात वह जर्जर हुआ।1
सूख जाती है सियाही आजकल जल्दी यहाँ
ख्वाहिशों के फ़लसफों पे आदमी निर्झर हुआ।2
मिट्टियों की कौन करता है यहाँ पड़ताल भी
हर शज़र गमला सजा आकाश पर निर्भर हुआ।3
जो उड़ाता था वहाँ बेपर घटाओं को कभी
देखते ही देखते वह आजकल बेपर हुआ।4
वक्त की मदहोशियाँ क्या-क्या करा देतीं यहाँ
गर्द के बस ढ़ेर जैसा एक दिन अकबर हुआ।5
"मौलिक व अप्रकाशित"
Added by Manan Kumar singh on October 23, 2018 at 10:00am — 5 Comments
122 122 122 12
डरे जो बहुत,बुदबुदाने लगे
मसीहे,लगा है, ठिकाने लगे।1
तबाही का' आलम बढ़ा जा रहा
चिड़ी के भी' पर फड़फड़ाने लगे।2
नचाते रहे जो हसीं को बहुत
सलीके से' नजरें चुराने लगे।3
नहीं कुछ किया,कहते' आँखें भरीं
गये वक्त अब याद आने लगे।4
उड़ाते न तो कोई' उड़ता कहाँ?
यही कह सभी अब चिढ़ाने लगे।5
"मौलिक वअप्रकाशित"
Added by Manan Kumar singh on October 15, 2018 at 9:53pm — 6 Comments
बाज
--
चिड़िया ने पंख फड़फड़ाये।उड़ने को उद्यत हुई।उड़ी भी,पर पंख लड़खड़ा गये।उसे सहसा एक झोंका महसूस हुआ।।वह गिरते-गिरते बची,उसमें कुछ दूर उड़ती गयी।वह एक बड़ा पंख था,जो उसे हवा दे रहा था।वह उड़ती जा रही थी।कभी-कभी उसे उस बड़े पंख का दबाव सताता।वह कसमसाती,पर और ऊपर तक उड़ने की ख्वाहिश और जमीन पर गिरने के भय में टंगी वह घुटी भी,उड़ी भी......उड़ती रही।ऊँची शीतल हवाओं का सिहरन भरा स्पर्श उसे आंनदित करता।वह उस कंटकित पंख की चुभन जनित अपने सारे दुःख-दैन्य भूलकर उड़ती रही,तबतक जबतक उसे एक ऊँचाई न मिल…
Added by Manan Kumar singh on October 12, 2018 at 1:30pm — 16 Comments
122 122 122 122
उजाले हमें फिर लुभाने लगे हैं
नया गीत हम आज गाने लगे हैं।1
बढ़े जो अँधेरे, सताने लगे हैं
गये वक्त फिर याद आने लगे हैं।2
कदम से कदम हम मिलाके चले थे
पहुँचने में क्यूँ फिर जमाने लगे हैं? 3
लुटे जालिमों से,यहाँ भी ठगे हम
लुटेरे मसीहा कहाने लगे हैं।4
अदाओं ने मारा बहाने बनाकर,
बसे जो ज़िगर खूं बहाने लगे हैं।5
"मौलिक व अप्रकाशित"
Added by Manan Kumar singh on August 14, 2018 at 7:13pm — 11 Comments
2122 2122 212
जब सँभलना आदमी को आ रहा
घुट्टियों का खेल खेला जा रहा।1
पाँव भारी हो गए हैं शब्द के
अर्थ क्या से क्या निकाला जा रहा।2
क्या कुलाँचे भर सकेगा अब शशक
घाव घुटनों में मुआ चिपका रहा।3
थम गई थीं आँधियाँ दुर्द्वंद्व की
कौन जहरीली हवा भड़का रहा?4
चैन से नीरो बजाता बंसियाँ
धुन वही हर शख्स फिर-फिर गा रहा।5
"मौलिक व अप्रकाशित"
Added by Manan Kumar singh on August 5, 2018 at 8:03pm — 3 Comments
2122 2122 212
जब सँभलना आदमी को आ रहाAdded by Manan Kumar singh on August 5, 2018 at 7:30pm — 8 Comments
'एक सेठ के पाँच पुत्र थे, दो खूब पढ़े-लिखे,एक कुछ-कुछ पढ़ा हुआ और शेष दो के लिए काला अक्षर भैंस बराबर था।सेठ के मरते समय की बात के अनुसार घर की मिल्कियत(मालिकाना हक) साल भर के लिए पाँचों भाइयों में से सर्वसम्मति से या बहुमत से चुने हुए एक भाई को सौंप दी जाती।वह घर का कामकाज देखता,अपने हिसाब से विभिन्न मदों में धन खर्च करता।कभी पहला पढ़ा-लिखा भाई मालिक होता,तो कभी दूसरा।बीच-बीच में तीसरा कम पढ़ा लिखा भी मालिक बन जाता,अन्य दो अँगूठाछाप भाइयों की मदद से।पर उसकी कुछ चल नहीं पाती।ढुलमुल रवैये…
Added by Manan Kumar singh on July 8, 2018 at 8:30am — 6 Comments
स्कूटर फर्राटे से थाने के सामने निकला।यह बात थाने को नागवार गुजरी।एक सिपाही ने हाथ दिया।स्कूटर रुक गया।उसने थाने के कंपाउंड में चलने का इशारा किया।अब स्कूटर थाने के मेन गेट पर खड़े इंचार्ज के सामने खड़ा था।सवार बगल में थे।इंचार्ज ने गाड़ी के कागज की माँग की,जो दिखा दिए गए।उसे गाड़ी का नंबर पढ़ने में दिक्कत हो रही थी।बार बार बताने के बावजूद वह अटक रहा था।अंत में स्कूटर सवार बुजुर्ग ने ध्यान दिलाया कि नंबर तो ठीक ही लिखा हुआ है।हाँ, लिखावट थोड़ी फीकी हो गयी है।लजाया-सा इंचार्ज झिझक भरे लहजे में…
ContinueAdded by Manan Kumar singh on May 8, 2018 at 7:23am — 13 Comments
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