1222 1222 1222 1222
अभी आई है पतझड़ ये बहार कभी तो आएगी
खिलेंगे फूल खुशियों के सुकूँ देकर ही जाएगी।
जुदाई सह नहीं पाया हुआ था दर्द सीने में
उसे ही याद है रक्खा वही जीना सिखाएगी।
जो जोड़ी चोर ने दौलत नहीं कुछ काम है आई
छुपाने की रही कौशिश दिखाई तो फ़ँसाएगी।
बड़े अरमान से चाहा, जिसे पूजा,जिसे माना
नहीं यह जान पाए थे वही हमको सताएगी।
लगाया जोर था जिसको बड़ी ऊपर ले जाने में
नहीं अच्छी बनी सीढ़ी तुझे नीचे…
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Added by सतविन्द्र कुमार राणा on November 20, 2016 at 4:18pm —
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बह्र ए मीर
22 22 22 22
प्यार हमें तो बस करना है
साथ ही जीना औ मरना है।
दुनिया जो जी चाहे करले
बिल्कुल भी नहीं डरना है।
जिसने लूटा अब तक सबको
उसका घर तो नहीं भरना है।
कष्ट मिलें अब तक जनता को
उन सबको मिलकर हरना है।
राणा साथ जरूरी सबका
अब गर्दिश से गर तरना है।
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on November 17, 2016 at 9:00pm —
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बह्र2122 2122 212
यार गर फिर बावफ़ा हो जाएगा
प्यार मेरा फिर हरा हो जाएगा।
साथ मिल कोशिश करें सब ही सही
तो जहाँ फिर खुशनुमा हो जाएगा।
हाँ पकड़ कर बह्र को गर तुम चलो
तो गजल कहना भला हो जाएगा।
हो अकेले में जरा गर हौंसला
फिर तो पीछे काफिला हो जाएगा।
हो सही हिम्मत खुदी में दोस्तो
साथ में फिर तो खुदा हो जाएगा।
साथ रहकर बात हमदम से करो
छोड़ते ही बेवफ़ा हो जाएगा।
कुछ मुहब्बत जो करें कुदरत से…
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Added by सतविन्द्र कुमार राणा on November 10, 2016 at 1:30pm —
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1222 1222 122
हाँ रोते को हँसाना चाहता है
ये दिल ऐसा बहाना चाहता है।
है जीना ठीक खातिर दूसरों की
यही सबको बताना चाहता है।
हमेशा से शरारत को बढ़ाया
शराफत आजमाना चाहता है।
जमीं जो बर्फ रिश्तों पे दिखाई
उसी को अब गलाना चाहता है।
फ़िजा में फैलता है जो कुहासा
उसे ही तो हटाना चाहता है।
चला इंसानियत की राह 'राणा'
वही खुद मुस्कराना चाहता है।
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on November 7, 2016 at 9:35pm —
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बह्र:2122 2122 2122 212
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बातें ही बातें रही हैं आज करने के लिए
हामी उसने अब भरी ना साथ चलने के लिए।
गिर रहे हर बार फिर भी अक्ल तो आई नहीं
एक ठोकर ही सही है बस सँभलने के लिए।
घुल फ़िजा में अब गया है जह्र चारों ही तरफ
ना जमीं ही है बची कोई टहलने के लिए।
चाहता है सीखना तो कर सही कौशिश सभी
फौरी पढ़ना कब सही है कुछ समझने के लिए।
ना रुकावट से डरे जो वो बढ़े राणा सही
हाँ ,मगर कुछ रास्ते भी हों तो चलने के…
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Added by सतविन्द्र कुमार राणा on November 2, 2016 at 11:21pm —
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आओ मिलकर दीप जलाएँ
करने सबकुछ जगमग-जगमग
प्रेम रौशनी हम छितराएँ
आओ मिलकर दीप जलाएँ।
जो सरहद पर लगे हुए हैं
इसकी बस रक्षा करने को
इसकी खातिर तैयार खड़े
जो जीने को औ मरने को
शत्रु को निढाल बनाते हैं
उर में उनका मान बढ़ाएँ।
आओ मिलकर दीप जलाएँ
तन में तो मन धरा सभी ने
जीवन सबको मिला हुआ है
बस जीवन को काट रहे जो
शिक्षण जिनका हिला हुआ है
अज्ञान तिमिर में डूबे जो
ज्ञान सभी तक लेकर जाएँ
आओ मिलकर दीप…
Continue
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on October 29, 2016 at 2:47pm —
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आओ मिलकर दीप जलाएँ
करने सबकुछ जगमग-जगमग
प्रेम रौशनी हम छितराएँ
आओ मिलकर दीप जलाएँ।
जो सरहद पर लगे हुए हैं
इसकी बस रक्षा करने को
इसकी खातिर तैयार खड़े
जो जीने को औ मरने को
शत्रु को निढाल बनाते हैं
उर में उनका मान बढ़ाएँ।
आओ मिलकर दीप जलाएँ
तन में तो मन धरा सभी ने
जीवन सबको मिला हुआ है
बस जीवन को काट रहे जो
शिक्षण जिनका हिला हुआ है
अज्ञान तिमिर में डूबे जो
ज्ञान सभी तक लेकर जाएँ
आओ मिलकर दीप…
Continue
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on October 29, 2016 at 2:46pm —
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आओ मिलकर दीप जलाएँ
करने सबकुछ जगमग-जगमग
प्रेम रौशनी हम छितराएँ
आओ मिलकर दीप जलाएँ।
जो सरहद पर लगे हुए हैं
इसकी बस रक्षा करने को
इसकी खातिर तैयार खड़े
जो जीने को औ मरने को
शत्रु को निढाल बनाते हैं
उर में उनका मान बढ़ाएँ।
आओ मिलकर दीप जलाएँ
तन में तो मन धरा सभी ने
जीवन सबको मिला हुआ है
बस जीवन को काट रहे जो
शिक्षण जिनका हिला हुआ है
अज्ञान तिमिर में डूबे जो
ज्ञान सभी तक लेकर जाएँ
आओ मिलकर दीप…
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Added by सतविन्द्र कुमार राणा on October 29, 2016 at 2:43pm —
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2122 2122 212
क्यों रहा गुस्ताखियों पे तू अड़ा
इसलिए ही गाल पर झापड़ पड़ा।
बैठ जा खाली पड़ी हैं कुर्सियाँ
तू रहेगा कब तलक यूँ ही खड़ा।
बेसुरी आवाज तेरी हो गयी
इसलिए ही तो तुझे अंडा पड़ा।
देख जिसके हाथ में अंडा नहीं
पास उसके है टमाटर इक सड़ा।
शाइरी को छोड़ के कुछ और कर
देख ले के फैसला ये तू कड़ा।
आब ‘राणा’ को मिला पूरा नहीं
देख खाली ही पड़ा उसका घड़ा।
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on October 26, 2016 at 10:30am —
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बह्र:122 122 122 122
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नहीं कम हुई मेरी उलझन किसी से
कहाँ मिल सका हूँ अभी तक खुदी से।
है गुरबत ने ओढ़ा ख़ुशी का ये चोला
बहकती है दुनिया लबों की हँसी से।
मुहब्बत बसाती है उनसब घरों को
उजाड़ा किसी ने जिन्हें दुश्मनी से।
मुलाकात होती जरूरी कभी तो
मुहब्बत बढ़ेगी तभी बानगी से।
चढ़ा जा रहा हूँ मैं गुस्से में खुद पर
*उतारे कोई कैसे मुझको मुझी से*।
सितारा करम का चमक जाए ‘राणा’
तो मिट जाए गम सब तेरी जिंदगी…
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Added by सतविन्द्र कुमार राणा on October 17, 2016 at 7:02am —
10 Comments
122 122 122 12
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किसी ने कभी यह सही है कही
किया पूर्व ने ही उजाला सही
सकल नूर को दूर पश्चिम करे
सभी क्यों उसी की नकल में मरे।
2
महकते सुमन कुछ इशारा करें
गई चाहतों को दुबारा भरें
खिली जो कली है पिया की गली
लगन प्रेम की यह लगाती भली।
3.
कुहू की सुने हम सुवाणी अगर
चलें काटते हर कठिन सी डगर
सभी ओर मीठा अगर शोर हो
कहीं कष्ट का फिर नहीं जोर हो
4.
घटा से घटा है सकल ताप ये
बना जा रहा था सुजल भाप ये
नहीं…
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Added by सतविन्द्र कुमार राणा on October 16, 2016 at 4:59pm —
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बह्र:122 122 122 122
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नहीं ये किसी को बताया हुआ है
कि इस दिल में तुमको बसाया हुआ है।
रहा जो हमेशा से दुश्मन हमारा
उसे भी गले से लगाया हुआ है।
जमाने को लगने न देंगे खबर भी
खजाना वफ़ा का छुपाया हुआ है।
करम से रहा जो हमेशा ही जालिम
वही अब तो रब का सताया हुआ है।
मुहब्बत वतन से ही ए ‘राणा’ कमायी
तहे दिल से इसको कमाया हुआ है।
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on October 9, 2016 at 10:00pm —
18 Comments
बह्र:2122,1122 1122 22
जब ठहरना न मुनासिब हो तो चलते रहिए
साथ चलके भी जमाने को' बदलते रहिए।
रुत बदलती सी ये तबियत पे ही होती भारी
ठीक होगा यूँ अगर आप भी ढलते रहिये।
आग खामोश करा देती सभी का जीवन
एक दीपक की' तरह खुद ही तो जलते रहिए।
वक्त आवाज खिलाफत में उठाने का है
जुल्म से दब क्युँ यूँ बस खुद ही में गलते रहिए।
ग़म मिला है तो ख़ुशी भी आ मिलेगी यारो
*हो के मायूस न यूँ शाम से ढलते रहिये*।
क्या मिला है जो…
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Added by सतविन्द्र कुमार राणा on October 6, 2016 at 8:35pm —
6 Comments
बह्र :2212 2212 2212 2212
खलती रही अब तक हमें जिस साज की आवाज़ ही
अब कान में घुलती हुई अपनी तरफ हैं खींचती।
अब खा रहे हैं काग वो खाना किसी के श्राद्ध में
आते नहीं इंसान को गुरबत में जिसके ख़्वाब भी।
जो बेचते हैं भूख जनता को दिखा कर रोटियां
वो खुद सियासत में मजे से खा रहे हैं शीरनी।
दीपक बिकें तो फिर गरीबो का बने त्यौहार कुछ
बिजली से जगमग हो रही चारों तरफ दीपावली।
करके सितम इंसान पर तू जान क्यूँ है…
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Added by सतविन्द्र कुमार राणा on September 29, 2016 at 2:00pm —
18 Comments
बह्र 1222 1222 1222 1222
तेरी बस याद आने से सभी दुःख-दर्द टलतेे हैं।
तेरे ही नाम पे जीवन युँही हम काट चलते हैं।
गमों का दौर है आया नहीं सुख अब दिखाई दे
इसी में डूब कर अबतो सभी दिन-रात ढलते हैं।
यहाँ जो भी मुकम्मल है हिफाज़त को जमाने की
उसी के जह्न में देखो गलत अरमान पलते हैं।
कभी सोचा नहीं जिसने हो जाए अम्न ही कायम
लिए उम्मीद फिर ऐसी उसी के पास चलते हैं।
अदाकारी में जो माहिर समझ में वे नहीं आते
कभी तोला कभी…
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Added by सतविन्द्र कुमार राणा on September 26, 2016 at 1:00pm —
19 Comments
आस्थाओं का ढोल बजा है
श्रद्धा का बाजार सजा है
विश्वासों की लगती बोली
मानवता को मारो गोली।
मैं बिकता हूँ तू बिकता है
अब बिकता ईश्वर दिखता है
मान बड़ों का कब होता है
श्रद्धा का मतलब खोता है।
श्रद्धा आडम्बर बन जाती
जब दुनिया पाखण्ड दिखाती
जीते जी टुकड़ों को तरसे
फिर भोजन कागों पर बरसे।
श्रद्धा से अपनों को मानों
कीमत जीते जी की…
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Added by सतविन्द्र कुमार राणा on September 25, 2016 at 10:34pm —
8 Comments
बह्र:1222 1222 1222 1222
शरारत कर वो तेरा मुँह बनाना याद आता है
कि पहले रूठना फिर मान जाना याद आता है।
तुम्हारी प्यार की बोली ने मिश्री कान में घोली
कभी झूठे से झगड़े से सताना याद आता है।
बिताया हम कभी करते तुम्हारे साथ जो लमहेे
उन्हीं में गूँजता दिल का तराना याद आता है।
हुआ करते कभी हम भी अगर गमगीन थोड़े से
कि कर नादानियां हमको हँसाना याद आता है।
हमेशा ही हुआ करता हमारे पास आने का
तुम्हारा वो सही बनता बहाना याद आता…
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Added by सतविन्द्र कुमार राणा on September 23, 2016 at 3:00pm —
10 Comments
बह्र:1222 1222 1222 1222
नफ़स मुश्किल हुआ लेना नजारे रक्स करते हैं
छुड़ा कर आज दामन को सहारे रक्स करते हैं।
यकीं जिनपर मुझे सबसे ज़ियादा था हुआ करता
गिरा कर हौंसला मेरा वो'प्यारे रक्स करते हैं।
गवाही कौन देगा अब तुम्हारी बे गुनाही की
बिका ईमां गवाहों का वे' सारे रक्स करते हैं।
भुला आवाज को दिल की तमाशा देखते हैं सब
"सफीने डूब जाते हैं किनारे रक़्स करते हैं।"
मुहब्बत कर रहे देखो पराई से सभी यारो
भुला अपनी ही'भाषा को…
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Added by सतविन्द्र कुमार राणा on September 16, 2016 at 11:30pm —
13 Comments
कुछ दोहे
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१.
केवल धन की चाह में,भूला खान व पान
आपा-धापी में सदा, पड़ा रहे इंसान।
२.
बुद्धिमान भी मूढ़ है,क्रोध चले जब जीत
पलभर में ही खत्म हो,वर्षों की सब प्रीत।
३.
सबको दें उपदेश जो,हो खुद उससे दूर
कोरी उस बकवास को,क्यों सब मानें नूर।
४.
पढ़े शास्त्र को बैठ कर,नीयत हो नापाक
बस झूठे ही ज्ञान से,फिरे जमाता धाक।
५.
ढाई आखर प्रेम के,रखते शक्ति अपार
वहाँ चली तलवार कब,जहाँ चला है प्यार।
६.
कलम…
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Added by सतविन्द्र कुमार राणा on September 6, 2016 at 4:00pm —
14 Comments
तरही मिसरा:जनाब समर कबीर जी
खजां से अब खफ़ा मन हो गया है
कि बंजर आज गुलशन हो गया है।
रहे जिसकी इबादत में सदा हम
खफ़ा हमसे वो' भगवन हो गया है।
नशे में खो गयी सारी जवानी
सभी का खोखला तन हो गया है।
मिटा नफरत बसाया प्यार दिल में
"मेरे सीने की धड़कन हो गया है।"
करें खुशहाल हम अपने वतन को
उसी पर तो फ़िदा मन हो गया है।
चलो सचकी पकड़ के राह 'सत्तू'
सही सबका ही' जीवन हो गया है।
मौलिक एवं…
Continue
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on September 4, 2016 at 12:00pm —
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