१२२/१२२/१२२/१२२
चिढ़ा मौत से पर हँसा जिन्दगी पर
अँधेरों से डर कर चढ़ा रौशनी पर।१।
*
किये कैद बैठा हवाओं को जो भी
बहस कर रहा है वही ताजगी पर।२।
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बना सन्त बैठा मगर है फिसलता
कभी मेनका पर कभी उर्वशी पर।२।
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खड़े देवता हैं सभी कठघरे में
करो चर्चा थोड़ी कभी बंदगी पर।४।
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सभी खीझते हैं जले दीप पर तो
उठा क्रोध यारो कहाँ तीरगी पर।५।
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अजब देवता जो डरे आदमी से
हुआ द्वंद भारी यहाँ…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 9, 2021 at 9:45pm — 8 Comments
पर्व गुरुओं का मनाते आज हम
और मन के पास आते आज हम।१।
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पुष्प भावों के चढ़ाते आज हम
शीष श्रद्धा से झुकाते आज हम।२।
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है मिला हर ज्ञान उन से ही हमें
मान उनको दे जताते आज हम।३।
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सीख उनकी आचरण में ढालकर
कर्ज किंचित यूँ चुकाते आज हम।४।
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आब भर कर है सितारों सा किया
हर चमक उन से, बताते आज हम।५।
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ज्ञान दाता बढ़ बिधाता से हैं तो
यश उन्हीं…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 4, 2021 at 1:35pm — 13 Comments
वाणी ने आकाश से, किया यही उद् घोष
सँभलो पापी कंस अब,घट से बाहर दोष।१।
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मथुरा में पर कंस का, घटा न अत्याचार
विवश हुए अवतार को, जग के पालनहार।२।
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बहन देवकी, तात को, मिला कंस से कष्ट
हरे सकल दुख ईश ने, बन कर पुत्र अष्ट।३।
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लीला अंशों की तजी, लिया पूर्ण अवतार
स्वयं खुल गये तेज से, कारागृह के द्वार।४।
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हुई विवश माँ देवकी, तज ने को मजबूर
छोड़ यशोदा गेह में, किया कंस से दूर।५।
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गोकुल आकर कृष्ण ने, दिया सभी को…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 26, 2021 at 12:43pm — 6 Comments
झेलती मझधार अपनी जिन्दगी
कब लगेगी पार अपनी जिन्दगी ।१।
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आटा-चावल शाक-सब्जी के लिए
खप गयी बस यार अपनी जिन्दगी ।२।
*
शब्द इस में है न कोई हर्ष का
बस दुखों का सार अपनी जिन्दगी।३।
*
यूँ कमी उल्लास की होती न फिर
होती गर त्यौहार अपनी जिन्दगी।४।
*
हम ने ही जन्जीर बाँधी पाँव को
कैसे ले रफ्तार अपनी जिन्दगी ।५।
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सोच मत आकर…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 24, 2021 at 7:26am — 4 Comments
सनातन धर्म का गौरव सहज त्योहार है राखी
समेटे प्यार का खुद में अजब संसार है राखी।१।
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हैं केवल रेशमी धागे न भूले से भी कह देना
लिए भाई बहन के हित स्वयं में प्यार है राखी।२।
*
पुरोहित देवता भगवन सभी इस को मनाते हैं
पुरातन सभ्यता की इक मुखर उद्गार है राखी।३।
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बुआ चाची ननद भाभी सखी मामी बहू बेटी
सभी मजबूत रिश्तों का गहन आधार है…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 19, 2021 at 12:00am — 21 Comments
२१२२/२१२२/२१२
होंठ हँसते हैं तो मन में पीर है
जिन्दगी की अब यही तस्वीर है।२।
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जो सिखाता था कलम ही थामना
वो भी हाथों में लिए शमशीर है।२।
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झूठ को आजाद रक्खा नित गया
सच के पाँवों में पड़ी जंजीर है।३।
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हाथ जन के वो न आयेगा कभी
उसका वादा सिर्फ उड़ता तीर है।४।
*
रास नेताओं से करती है बहुत
रूठी जनता की सदा तक़दीर है।५।
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इक दफ़अ बोला तो फिर छूटा नहीं
झूठ की भी क्या गजब तासीर है।६।…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 17, 2021 at 6:30am — 10 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
तकरार करते करते ही सावन गुजर गया
मनुहार करते करते ही सावन गुजर गया।१।
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बाधा मिलन में उनसे जो हालात थे उलट
अनुसार करते करते ही सावन गुजर गया।२।
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हम खुद में व्यस्त और वो औरों में व्यस्त थे
व्यवहार करते करते ही सावन गुजर गया।३।
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इस पार हम थे बैठे तो उस पार थे सजन
नद पार करते करते ही सावन गुजर गया।४।
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उनसे मिलन की बात थी लेकिन हमें ये मन
तैय्यार करते …
ContinueAdded by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 8, 2021 at 10:00pm — 13 Comments
तुम्हारी कुर्सी का जब है यही आधार नेता जी
कहो फिर देश की जनता लगे क्यों भार नेता जी।१।
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सिकुड़ती देश की सीमा तुम्हें दिखती नहीं है पर
लगे करने में कुनबे का सदा अभिसार नेता जी।२।
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जिताकर वोट से जनता बनाती दास से मालिक
जताते क्यों नहीं उस का कभी आभार नेता जी।३।
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बने केवल धनी का ही सहारा…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 7, 2021 at 5:30am — 14 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
शीशा भी लाया आज वो लोहे में ढालकर
बोलो करोगे आप क्या पत्थर उछाल कर।१।
*
जिन्दा ही दफ्न सत्य जो कल था किया गया
लानत समय ने आज दी मुर्दा निकालकर।२।
*
वो बिक गयी है वस्तु सी बेहाल भूख से
अब क्या रखोगे बोलिए उस को सँभालकर।३।
*
केवल किसान जानता मौसम की मार को
हम ने तो देखा बीज न खेतों में डालकर।४।
*
रोटी का मोल जानते बचपन से ही बहुत
माँ ने …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 31, 2021 at 1:18pm — 15 Comments
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 30, 2021 at 12:30pm — 12 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
कहते है लोग प्रीत की हमको समझ नहीं
दुश्मन के साथ मीत की हमको समझ नहीं।१।
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नफरत ही नित्य बँट रही सरकार इसलिए
आँगन में उठती भीत की हमको समझ नहीं।२।
*
न्योतो न आप मंच से महफिल बिगाड़ने
कविता गजल या गीत की हमको समझ नहीं।३।
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हम ने सदा ही धूप का रस्ता बुहारा पर
रिश्तों में पसरी शीत की हमको समझ नहीं।४।
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समझा नहीं है खेल मुहब्बत को इसलिए
इस में ही…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 25, 2021 at 5:17am — 4 Comments
२१२/२१२/२१२ /२२
जिसका अपना यहाँ दायरा कम है
आसमाँ को भी वो मानता कम है।१।
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मुझसे कहता है क्यों पूजता कम है
देख तुझ में भी तो देवता कम है।२।
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जो ठहरना नहीं चाहता साथी
उसके हिस्से में क्यों रास्ता कम है।३।
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बात औरों के सिर डालकर देखो
अपने ईमान को तौलता कम है।४।
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पास बैठा है लेकिन अबोला ही
कौन कहता है अब फासला कम है।५।
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हर बुराई …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 21, 2021 at 9:43am — 12 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
आँखों में नींद ला के जगाती है रात भर
पाकर अकेला याद जो आती है रात भर।१।
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कैसे हो चैन देह को मन को सुकून तब
शोलों सी चाँदनी ये जलाती है रात भर।२।
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होने लगी है जुल्फ जो उसकी सफेद यूँ
आँखों के आँसुओं से नहाती है रात भर।३।
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बजती हवा से दूर जो मंदिर की घन्टियाँ
आवाज दे के लगता बुलाती है रात भर।४।
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आता है याद माँ का वो दामन हमें बहुत
जब रात सर्दियों की सताती है रात…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 12, 2021 at 7:30am — 5 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
सेवा के नाम खाते हैं मेवा छिपा हुआ
इनके सिवा बताओ तो किसका भला हुआ।१।
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मिलती हैं रोटियाँ जो ये कुर्सी के खेल से
है रक्त बेबशों का भी इन में लगा हुआ।२।
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मुकरे हैं नेता सारे ही देकर वचन हमें
करके दिखाया देश में किसने कहा हुआ।३।
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नेता हुए हैं आज के गिरगिट सरीखे सब
खादी को ऐसे कर दिया सबसे गिरा हुआ।४।
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ये नीरो जैसे देश में रहते हैं …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 11, 2021 at 2:41am — 4 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
रस्ता बदल न और कभी काफ़िला बदल
केवल तू अपनी सोच का ये दायरा बदल।१।
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मिलती है राह कर्म से जन्नत की भी मगर
किस्मत को जीतने के लिए हौसला बदल।२।
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है जानकार जो भी वो पैसों के पीछे बस
जिसको पता न रोग का कहता दवा बदल।३।
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चेहरा ही अपना दाग से करता जो गुफ्तगू
क्या होगा हमको लाभ बता आईना बदल।४।
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पूजा का खुद को तौर तरीका न आता है
कहते पुजारी मुझ से हैं तू देवता बदल।५। …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 10, 2021 at 7:00am — 4 Comments
२१२२/२१२२/२१२२/२१२
कायराना काम कोई यार मत करवाइए
हर नदी नाले को हम से पार मत करवाइए।१।
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शेर पाला है तो शेरों से लड़ाओ खूब पर
गीदड़ों से तो उसे दो-चार मत करवाइए।२।
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वीरता की धार इससे कुंद सी पड़ जायेगी
रोजमर्रा दुश्मनों से प्यार मत करवाइए।३।
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जाति धर्मों के लवादे में सियासत हेतु यूँ
नित्य अपनों से तो इतनी रार मत करवाइए।४।
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चापलूसों को जमाकर रंग रोगन बस…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 9, 2021 at 7:43am — 6 Comments
कौन कहता घाव अपने सी रहा है आदमी
आजकल तो खून अपना चूसता है आदमी।१।
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देवता होना नहीं पर दानवों की बात सुन
आदमी की पाँत से ही लापता है आदमी।२।
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जब हुआ उत्पन्न होगा तब भले वरदान हो
आज धरती के लिए बस हादसा है आदमी।३।
*
प्यास होने पर मरुस्थल छान लेता नीर…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 1, 2021 at 6:42pm — 12 Comments
221-2121-1221-212
अखबार कोई आज भी अच्छा बचा है क्या
हर सत्य जिसमें नाप के छपता खरा है क्या।१।
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राजा से पूछा करता जो डंके की चोट पर
जन के दुखों को देख के मानस दुखा है क्या।२।
*
हट कर खबर के पृष्ठों से सम्पादकीय में
जनता के हित का मामला कोई उठा है क्या।३।
*
जिस का लगाता दाँव है पत्रकार जान तक
निष्पक्ष सत्य सुर्खी में आता सदा है क्या।४।
*
पीड़ा हो जिस में लोक की केवल छपी हुई
नेता के नित्य कर्म को लिखना घटा है…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 30, 2021 at 6:41am — 3 Comments
221/2121/1221/212
पत्थर जमाना बोये जो काटों की खेतियाँ
छोड़ो न तुम तो साथियों सुमनों की खेतियाँ।१।
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कर लेंगे ये भी शौक से बेटे किसान के
लिख दो हमारे हिस्से में जख्मों की खेतियाँ।२।
*
ये जो है लोकतंत्र का धोखा मिला हमें
बन्धक रखी हैं वोट दे हाथों की खेतियाँ।३।
*
बदलो स्वभाव काम का हर दुख मिटाने को
किस्मत पे छाप छोड़ती कर्मों की खेतियाँ।४।
*
उजड़े नगर…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 28, 2021 at 1:28pm — No Comments
2122/2122/2122/212
है नहीं क्या स्थान जीवन भर ठहरने के लिए
जो शिखर चढ़ते हैं सब ही यूँ उतरने के लिए।१।
*
स्वप्न के ही साथ जीवन हो सजाना तो सुनो
भावना की कूचियाँ हों रंग भरने के लिए।२।
*
ये जगत बैठा के खुश हैं लोग यूँ बारूद पर
भेज दी है अक्ल सबने घास चरने के लिए।३।
*
खिल के आयेगी हिना भी सूखने तो दे सनम
रंग लेता है समय कुछ यूँ उभरने के लिए।४।
*
मौत का भय है न जिनको जुल्म वो सहते नहीं
जिन्दगी का लोभ काफी यार …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 23, 2021 at 7:18pm — 8 Comments
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