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Sanjiv verma 'salil''s Blog (225)

narmadashtak : aadi shankaracharya - sanjiv 'salil'



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Added by sanjiv verma 'salil' on July 3, 2011 at 8:30pm — No Comments

-: हिंदी सलिला :- विमर्श १ भाषा, वर्ण या अक्षर, शब्द, ध्वनि, व्याकरण, स्वर, व्यंजन -संजीव वर्मा 'सलिल'-

 -: हिंदी सलिला :-

विमर्श १

भाषा, वर्ण या अक्षर, शब्द, ध्वनि, व्याकरण, स्वर, व्यंजन

-संजीव वर्मा 'सलिल'-

औचित्य…

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Added by sanjiv verma 'salil' on June 28, 2011 at 11:29pm — No Comments

नवगीत/दोहा गीत: पलाश... संजीव वर्मा 'सलिल'

नवगीत/दोहा गीत:

पलाश...

संजीव वर्मा 'सलिल'

*

बाधा-संकट हँसकर झेलो

मत हो कभी हताश.

वीराने में खिल मुस्काकर

कहता यही पलाश...

*

समझौते करिए नहीं,

तजें नहीं सिद्धांत.

सब उसके सेवक सखे!

जो है सबका कांत..

परिवर्तन ही ज़िंदगी,

मत हो जड़-उद्भ्रांत.

आपद संकट में रहो-

सदा संतुलित-शांत..

 

शिवा चेतना रहित बने शिव

केवल जड़-शव लाश.

वीराने में खिल मुस्काकर

कहता…

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Added by sanjiv verma 'salil' on June 15, 2011 at 1:23pm — 2 Comments

टेसू तुम क्यों लाल हुए......संजीव वर्मा 'सलिल'

नवगीत:-

टेसू तुम क्यों लाल हुए?

संजीव वर्मा 'सलिल'

*

टेसू तुम क्यों लाल हुए?

फर्क न कोई तुमको पड़ता

चाहे कोई तुम्हें छुए.....

*

आह कुटी की तुम्हें लगी क्या?

उजड़े दीन-गरीब.

मीरां को विष, ईसा को

इंसान चढ़ाये सलीब.

आदम का आदम ही है क्यों

रहा बिगाड़ नसीब?

नहीं किसी को रोटी

कोई खाए मालपुए...

*

खून बहाया सुर-असुरों ने.

ओबामा-ओसामा ने.

रिश्ते-नातों चचा-भतीजों…

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Added by sanjiv verma 'salil' on June 15, 2011 at 1:00pm — 4 Comments

मुक्तिका : भंग हुआ हर सपना संजीव 'सलिल'

मुक्तिका :
भंग हुआ हर सपना

संजीव 'सलिल'

*
भंग हुआ हर सपना,
टूट गया हर नपना.

माया जाल में उलझे
भूले माला जपना..

तम में साथ न कोई
किसे कहें हम अपना?

पिंगल-छंद न जाने
किन्तु चाहते छपना..

बर्तन बनने खातिर
पड़ता माटी को तपना..

************

Added by sanjiv verma 'salil' on May 31, 2011 at 12:02am — No Comments

सामयिक गीत : देश को वह प्यार दे दो... ----संजीव 'सलिल'

सामयिक गीत :

देश को वह प्यार दे दो...

संजीव 'सलिल'

*

रूप को अब तक दिया जो,

देश को वह प्यार दे दो...



इसी ने पाला हमें है.

रूप में ढाला हमें हैं.

हवा, पानी रोटियाँ दीं-

कहा घरवाला हमें है.



यह जमीं या भू नहीं है,

सच कहूँ माता मही है.

देश हित हो ज़िंदगी यह-

देश पर मरना सही है.



आँख के सब स्वप्न दे दो,

साँस का सिंगार दे दो...

*

देश हित विष भी पियें हम.

देश पर मरकर जियें हम.

देश का ही गान… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on May 12, 2011 at 3:57pm — 2 Comments

मुक्तिका: तुम क्या जानो ---- संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:

तुम क्या जानो

संजीव 'सलिल'

*

तुम क्या जानो कितना सुख है दर्दों की पहुनाई में.

नाम हुआ करता आशिक का गली-गली रुसवाई में..

 

उषा और संझा की लाली अनायास ही साथ मिली.

कली कमल की खिली-अधखिली नैनों में, अंगड़ाई में..

 

चने चबाते थे लोहे के, किन्तु न अब वे दाँत रहे.

कहे बुढ़ापा किससे क्या-क्या कर गुजरा तरुणाई में..

 

सरस परस दोहों-गीतों का सुकूं जान को देता है.

चैन रूह को मिलते देखा गजलों में,…

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Added by sanjiv verma 'salil' on May 10, 2011 at 10:03am — 11 Comments

मुक्तिका: मैं --- संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:

मैं
संजीव 'सलिल'
*
पुरा-पुरातन चिर नवीन मैं, अधुनातन हूँ सच मानो.
कहा-अनकहा, सुना-अनसुना, किस्सा हूँ यह भी जानो..



क्षणभंगुरता मेरा लक्षण, लेकिन चिर स्थाई हूँ.

निराकार साकार हुआ मैं वस्तु बिम्ब परछाईं हूँ.



परे पराजय-जय के हूँ मैं,…
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Added by sanjiv verma 'salil' on May 3, 2011 at 2:01pm — 5 Comments

मुक्तिका: मौन क्यों हो? संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:
मौन क्यों हो?
संजीव 'सलिल'
*
मौन क्यों हो पूछती हैं कंठ से अब चुप्पियाँ.
ठोकरों पर स्वार्थ की, आहत हुई हैं गिप्पियाँ..
 
टँगा है आकाश, बैसाखी लिये आशाओं की.
थक गये हैं हाथ, ले-दे रोज खाली कुप्पियाँ..
 
शहीदों ने खून से निज इबारत मिटकर लिखी.
सितासत चिपका रही है जातिवादी चिप्पियाँ..
 
बादशाहों को किया बेबस गुलामों ने 'सलिल'
बेगमों…
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Added by sanjiv verma 'salil' on May 1, 2011 at 5:13pm — No Comments

मुक्तिका : माँ _संजीव 'सलिल'

मुक्तिका "माँ"

संजीव 'सलिल'

*

बेटों के दिल पर है माँ का राज अभी तक.

माँ के आशिष का है सिर पर ताज अभी तक..



प्रभू दयालु हों इसी तरह हर एक बेटे पर

श्री वास्तव में माँ है, है अंदाज़ अभी तक..



बेटे जो स्वर-सरगम जीवन भर गुंजाते.

सत्य कहूँ माँ ही है उसका साज अभी तक..



बेटे के बिन माँ का कोई काम न रुकता.

माँ बिन बेटों का रुकता हर काज अभी तक..



नहीं रही माँ जैसे ही बेटा सुनता है.

बेटे के दिल पर गिरती है गाज अभी तक..…

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Added by sanjiv verma 'salil' on April 26, 2011 at 2:00pm — 1 Comment

षटपदियाँ : संजीव 'सलिल'

षटपदियाँ :

संजीव 'सलिल'

*
इनके छंद विधान में अंतर को देखें. प्रथम अमृत ध्वनि है, शेष कुण्डलिनी
*
भारत के गुण गाइए, मतभेदों को भूल.
फूलों सम मुस्काइये, तज भेदों के शूल..
तज भेदों के, शूल अनवरत, रहें सृजनरत.
मिलें अंगुलिका, बनें मुष्टिका, दुश्मन गारत..
तरसें लेनें. जन्म देवता, विमल विनयरत.
'सलिल' पखारे, पग नित पूजे, माता भारत..
*
कंप्यूटर कलिकाल का, यंत्र बहुत…
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Added by sanjiv verma 'salil' on April 19, 2011 at 8:30am — No Comments

एक मुक्तक: संजीव 'सलिल' *

एक मुक्तक:
संजीव 'सलिल'
*
हार मिलीं अनगिन मैंने जयहार समझ उनको पहना.
जग-जीवन ने अपमान दिया मैंने मना उसको गहना..
प्रभु से माँगा 'जो जब देना, मुझको सिखला देना सहना-
आखिर में साँसों-आसों की चादर को सीख सकूँ तहना..

Added by sanjiv verma 'salil' on April 19, 2011 at 8:25am — No Comments

कुछ द्विपदियाँ : संजीव 'सलिल'

कुछ द्विपदियाँ :

संजीव 'सलिल'

वक्-संगति में भी तनिक, गरिमा सके न त्याग.

राजहंस पहचान लें, 'सलिल' आप ही आप..

*

चाहे कोयल-नीड़ में, निज अंडे दे काग.

शिशु न मधुर स्वर बोलता, गए कर्कश राग..

*

रहें गृहस्थों बीच पर, अपना सके न भोग.

रामदेव बाबा 'सलिल', नित करते हैं योग..

*

मैकदे में बैठकर, प्याले पे प्याले पी गये.

'सलिल' फिर भी होश में रह, हाय! हम तो जी गए..

*

खूब आरक्षण दिया है, खूब बाँटी…

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Added by sanjiv verma 'salil' on April 16, 2011 at 10:15pm — 3 Comments

सामयिक गीत: राम जी मुझे बचायें.... -- संजीव 'सलिल'

सामयिक गीत:

राम जी मुझे बचायें....

-- संजीव 'सलिल'

*

राम जी मुझे बचायें....



एक गेंद के पीछे दौड़ें ग्यारह-ग्यारह लोग.

एक अरब काम तज देखें, अजब भयानक रोग..

राम जी मुझे बचायें,

रोग यह दूर भगायें....

*

परदेशी ने कह दिया कुछ सच्चा-कुछ झूठ.

भंग भरोसा हो रहा, जैसे मारी मूठ..

न आपस में टकरायें,

एक रहकर जय पायें...

*

कड़ी परीक्षा ले रही, प्रकृति- सब हों एक.

सकें सीख जापान से, अनुशासन-श्रम नेक..

समर्पण-ज्योति… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on March 31, 2011 at 12:06pm — 3 Comments

मुक्तिका: हुआ सवेरा संजीव 'सलिल

मुक्तिका:

हुआ सवेरा

संजीव 'सलिल'

*

हुआ सवेरा मिली हाथ को आज कलम फिर.

भाषा शिल्प कथानक मिलकर पीट रहे सिर..

भाव भूमि पर नभ का छंद नगाड़ा पीटे.

बिम्ब दामिनी, लय की मेघ घटा आयी घिर..

बूँद प्रतीकों की, मुहावरों की फुहार है.

तत्सम-तद्भव पुष्प-पंखुरियाँ डूब रहीं तिर..

अलंकार की छटा मनोहर उषा-साँझ सी.

शतदल-शोभित सलिल-धार ज्यों सतत रही झिर..

राजनीति के कोल्हू में जननीति वृषभ क्यों?

बिन पाये प्रतिदान रहा बरसों…

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Added by sanjiv verma 'salil' on March 31, 2011 at 9:30am — 1 Comment

नवगीत: कब होंगे आज़ाद हम संजीव 'सलिल'

नवगीत

 

कब होंगे आज़ाद हम



संजीव 'सलिल'

*

कब होंगे आजाद?

कहो हम

कब होंगे आजाद?



गए विदेशी पर देशी

अंग्रेज कर रहे शासन

भाषण देतीं सरकारें पर दे

न सकीं हैं राशन

मंत्री से संतरी तक कुटिल

कुतंत्री बनकर गिद्ध-

नोच-खा रहे

भारत माँ को

ले चटखारे स्वाद

कब होंगे आजाद?

कहो…

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Added by sanjiv verma 'salil' on March 26, 2011 at 12:29am — 2 Comments

मुक्तिका: गलत मुहरा ----- संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:                                                                          



गलत मुहरा



संजीव 'सलिल'

*

सही चहरा.

गलत मुहरा..



सिन्धु उथला,

गगन गहरा..



साधुओं पर

लगा पहरा..



राजनय का

चरित दुहरा..



नर्मदा जल

हहर-घहरा..



हौसलों की

ध्वजा फहरा..



चमन सूखा

हरा सहरा..



ढला सूरज

चढ़ा कुहरा..



पुलिसवाला

मूक-बहरा..



बहे पत्थर…

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Added by sanjiv verma 'salil' on March 21, 2011 at 6:40pm — 7 Comments

मुक्तिका: मन तरंगित ---- संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:                                                                                         



मन तरंगित



संजीव 'सलिल'

*

मन तरंगित, तन तरंगित.

झूमता फागुन तरंगित..



होश ही मदहोश क्यों है?

गुन चुके, अवगुन तरंगित..



श्वास गिरवी आस रखती.

प्यास का पल-छिन तरंगित..



शहादत जो दे रहे हैं.

हैं न वे जन-मन तरंगित..



बंद है स्विस बैंक में जो

धन, न धन-स्वामी तरंगित..



सचिन ने बल्ला घुमाया.…

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Added by sanjiv verma 'salil' on March 21, 2011 at 6:39pm — No Comments

मुक्तिका: हुई होली, हो रही, होगी हमेशा प्राण-मन की --- संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:



हुई होली, हो रही, होगी हमेशा प्राण-मन की



संजीव 'सलिल'

*

भाल पर सूरज चमकता, नयन आशा से भरे हैं.

मौन अधरों का कहे, हम प्रणयधर्मी पर खरे हैं..



श्वास ने की रास, अनकहनी कहे नथ कुछ कहे बिन.

लालिमा गालों की दहती, फागुनी किंशुक झरे हैं..



चिबुक पर तिल, दिल किसी दिलजले का कुर्बां हुआ है.

भौंह-धनु के नयन-बाणों से न हम आशिक डरे हैं?.



बाजुओं के बंधनों में कसो, जीवन दान दे दो.

केश वल्लरियों में गूथें कुसुम, भँवरे… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on March 20, 2011 at 10:24am — No Comments

नवगीत: तुमने खेली हमसे होली ----संजीव 'सलिल'

नवगीत:



तुमने खेली हमसे होली



संजीव 'सलिल'

*

तुमने खेली हमसे होली

अब हम खेलें.

अब तक झेला बहुत

न अब आगे हम झेलें...

*

सौ सुनार की होती रही सुनें सच नेता.

अब बारी जनता की जो दण्डित कर देता..

पकड़ा गया कलेक्टर तो क्यों उसे छुडाया-

आम आदमी का संकट क्यों नजर न आया?

सत्ता जिसकी संकट में

हम उसे ढकेलें...

*

हिरनकशिपु तुम, जन प्रहलाद, होलिका अफसर.

मिले शहादत तुमको अब आया है अवसर.

जनमत का हरि क्यों न मार… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on March 19, 2011 at 11:52pm — 2 Comments

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